Sunday - 27 July 2025 - 1:45 PM

ठाकरे परिवार में पिघली रिश्तों की बर्फ: उद्धव के जन्मदिन पर राज ठाकरे का मातोश्री आगमन

जुबिली स्पेशल डेस्क

महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा विवाद के बीच एक सुखद और भावुक दृश्य सामने आया है—ठाकरे परिवार के दो चचेरे भाई, जो वर्षों से अलग-अलग राह पर थे, अब फिर से करीब आते नज़र आ रहे हैं। हिंदी बनाम मराठी के मुद्दे पर सियासी बहस के बीच राज और उद्धव ठाकरे की नज़दीकियां एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई हैं।

वर्षों बाद मातोश्री पहुंचे राज ठाकरे

रविवार को शिवसेना (उद्धव) प्रमुख उद्धव ठाकरे का 65वां जन्मदिन उनके आवास ‘मातोश्री’ में मनाया गया। इस मौके पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे अपनी पत्नी शर्मिला ठाकरे के साथ मातोश्री पहुंचे। वहां उन्होंने अपने भाई उद्धव ठाकरे को लाल गुलाबों का गुलदस्ता भेंट किया और उन्हें गले लगाकर जन्मदिन की बधाई दी।

करीब 20 मिनट की मुलाकात में दोनों भाइयों ने मुस्कुराते हुए बातचीत की, जिससे साफ है कि रिश्तों में जमी पुरानी बर्फ अब धीरे-धीरे पिघलने लगी है।

मातोश्री में सियासी हलचल

राज ठाकरे के साथ MNS नेता नितिन सरदेसाई भी मौजूद थे। वहीं, शिवसेना (उद्धव) के प्रमुख चेहरे—संजय राउत, अनिल परब और अम्बादास दानवे भी जन्मदिन समारोह में शरीक हुए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात सिर्फ एक पारिवारिक आयोजन नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की बदलती राजनीति की झलक भी है।

एक दशक बाद फिर से वही रास्ता

गौरतलब है कि 2012 में बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद राज ठाकरे आखिरी बार मातोश्री आए थे। इसके बाद जब उद्धव ठाकरे हार्ट ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल में भर्ती थे, तब भी राज उन्हें अपनी कार से मातोश्री छोड़ने आए थे। हालांकि, राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों के चलते दोनों भाइयों की दूरी बढ़ती गई थी।

राज ठाकरे कुछ साल पहले अपने बेटे अमित ठाकरे की शादी का कार्ड लेकर भी मातोश्री पहुंचे थे, लेकिन यह मुलाकात औपचारिक ही रही। इस बार मुलाकात में जो आत्मीयता दिखी, वो संकेत देती है कि ठाकरे परिवार फिर से एकजुट होने की राह पर है।

5 जुलाई की साझा रैली बनी थी संकेत

इससे पहले 5 जुलाई को राज और उद्धव ठाकरे एक साझा मंच पर नज़र आए थे, जिसने राजनीतिक गलियारों में दोनों के संभावित समीकरणों की अटकलें तेज कर दी थीं। अब एक बार फिर जन्मदिन के मौके पर हुई यह मुलाकात उस संभावना को और मजबूती दे रही है।

भाषाई राजनीति के बीच जब मराठी अस्मिता की बात तेज होती जा रही है, ऐसे में ठाकरे परिवार का साथ आना सिर्फ भावनात्मक नहीं, राजनीतिक रूप से भी अहम संकेत है। महाराष्ट्र की आगामी सियासत में ठाकरे बंधुओं की यह नजदीकी किस करवट बैठती है, यह देखने लायक होगा।

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