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Lok Sabha Election : जानें गोरखपुर लोकसभा सीट का इतिहास

पॉलिटिकल डेस्क

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की राजनीति में गोरखपुर लोकसभा सीट की अहम भूमिका है। यह विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस, गुरु गोरखनाथ मंदिर, गीता वाटिका, टेराकोटा शिल्प के लिए मशहूर तो है ही, मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली, फिराक गोरखपुरी, पंरामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थली है। लोकसभा हो अथवा विधान सभा चुनाव, पिछले तीन-चार दशकों से यहां का गोरखनाथ मठ इसकी धुरी बना हुआ है।

आबादी/ शिक्षा

गोरखपुर लोकसभा सीट में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं। ये विधानसभा सीटें- कैंपियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवा विधानसभा हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार गोरखपुर की कुल आबादी 44,40,895 है जिनमें 22,77,777 पुरुष और 21,63,118 महिलायें है। उत्तर प्रदेश के औसत लिंगानुपात 912 के मुकाबले गोरखपुर में प्रति 1000 पुरुषों पर 950 महिलायें है।

यहां की आबादी में 21.08 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति और 0.41 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति का है। जनसंख्या का 81.17 प्रतिशत लोग शहरों में और 18.83 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं।

गोरखपुर की औसत साक्षरता दर 60.81 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 69.98 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर 51.15 प्रतिशत है।

गोरखपुर में मतदाताओं की कुल संख्या 19,03,988 है जिसमें महिला मतदाताओं की संख्या 848,621 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,055,209 है।

राजनीतिक घटनाक्रम

अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और एक उपचुनाव में बीजेपी ने सात बार, कांग्रेस ने छह बार, निर्दलीय ने दो बार, हिंदू महासभा ने एक बार और भारतीय लोकदल ने एक बार जीत दर्ज की है।

1952 में अस्तित्व में आई यह लोकसभा सीट 1957 के आम चुनाव तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी लेकिन तीसरे आम चुनाव के वक्त यह सीट सामान्य श्रेणी में आ गई। 1962 तक हुए सभी आमचुनावों में कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज की। चौथे आम चुनावों में कांग्रेस का विजय रथ 1967 में गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजय नाथ ने रोका, वह इस सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।

1970-1971 में महंत दिग्विजय नाथ ने दोबारा जीत दर्ज करके लोकसभा में गोरखपुर का प्रतिनिधित्व किया। 1971 के चुनाव में नरसिंह नारायण(कांग्रेस) और 1977 में हरिकेश बहादुर (भारतीय लोकदल) ने इस सीट पर कब्जा किया। 1980 में हरिकेश बहादुर दोबारा यह सीट जीतकर लोकसभा पहुंचे मगर इस बार कांग्रेस(इंदिरा) की टिकट पर।

आठवीं लोकसभा में कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी करके जीत हासिल की। 1989 में गोरक्षपीट के महंत अवैध नाथ हिन्दू महासभा की टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे।

1991 और 1996 के लोकसभा चुनाव में महंत अवैधनाथ ने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीतकर सांसद बने। उनके बाद इस सीट से 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार जीत दर्ज की। एक तरह से गोरखपुर की सीट गोरक्षपीठ के लिए अघोषित रूप से आरक्षित हो गई।

2017 में योगी आदित्यनाथ ने यहां के सांसद पद से इस्तीफा दे दिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। 2018 में हुए यहां उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रवीन निषाद ने जीत हासिल करके गोरक्षपीठ के सांसद निर्वाचित होने की परंपरा तोड़ दी।

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