सुरेंद्र दुबे
नागरिकता संशोधन कानून पर चल रहे धरने प्रदर्शन अब सीधे-सीधे दो धड़ों में बंटने वाले हैं। कल से संशोधित नागरिकता कानून के समर्थन में भी रैलियों का दौर शुरू हो गया। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के रामलीला मैदान में नागरिकता कानून के समर्थन में एक रैली कर पूरे देश में समर्थन में रैलियां किए जाने का संदेश दे दिया।
जाहिर है विपक्ष भी जगह-जगह रैलियां करने की कोशिश करेगा। यानी कि नागरिकता कानून पर अभी तक हो रहे स्वत: स्फूर्त विरोध अब पूरी तरह से नेताओं की मर्जी से संचालित होगा।
ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है। बस आज ही महाराष्ट्र में लोक अधिकार मंच, बीजेपी, आरएसएस और अन्य संगठनों द्वारा नागपुर में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में एक रैली निकाली गई। इस रैली में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ दिख रही है। यानी कि पक्ष-विपक्ष में इस कानून को लेकर घमासान मचने की शुरूआत हो सकती है।

पूरे देश में नागरिकता कानून को लेकर जगह-जगह धरना प्रदर्शन हो रहे थे, जिन्हें सामान्यत: स्वत: स्फूर्त समझा जा रहा था। ये आंदोलन देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों तक भी पहुंच गया है, जिनमें आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान भी हैं, जिन पर भ्रमित होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। आंदोलन की आग ज्यादा न फैलने पाए विश्वविद्यालयों में 5 जनवरी तक छुट्टी घोषित कर दी गई है।

विश्वविद्यालय खुलने पर क्या होगा ये तो बाद में ही पता चलेगा पर इस बीच सामान्य नागरिक जिसमें मुसलमानों की बड़ी संख्या है, इस कानून के विरोध में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। अब मस्जिदों में नमाज के बाद प्रदर्शन शुरू हो गये हैं, जिसमें हिंसक घटनाएं भी हो रही हैं। इसलिए परिदृश्य हिंदू-मुस्लिम में बंट जाने का खतरा मंडरा रहा है।
आज जब नरेंद्र मोदी कानून के समर्थन में स्वयं मैदान में उतर गए हैं तो एक बात तो कानून विरोधियों को स्पष्ट समझ लेनी चाहिए कि सरकार किसी भी कीमत पर कानून को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है, जिसकी मांग विशेष रूप से मुस्लिम पक्ष कर रहा है।
अगले वर्ष फरवरी में दिल्ली और बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। इसलिए यह भी स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि नए वर्ष आगाज नागरिकता कानून के पक्ष और विपक्ष में हो रहे प्रदर्शनों से ही होगा।

मामला पूरी तरह राजनैतिक गुणा-भाग का हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह आज दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर हमला बोला और लोगों को ये बताया कि दिल्ली वासियों की असली हितैषी भाजपा ही है। उससे साफ हो गया है कि वोट बैंक सत्ता पक्ष की निगाह में है और भाजपा इसे हथियाने के लिए हरसंभव दांव खेलेगी। जाहिर है विपक्ष भी नागरिकता कानून से ज्यादा वोट बैंक की पीठ सहलाने पर ध्यान देगी। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठेगा?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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