Saturday - 6 January 2024 - 1:21 AM

सरकारी स्वास्थ्य सेवा बेहाल, कोरोना मरीज हो रहे प्राईवेट नर्सिंग होम के लूट के शिकार 

बरेली

बात करते हैं बरेली जनपद का,यहाँ लाख कोशिश कर लो कोविड-19 के मरीज़ को बेड नहीं नसीब हो रहा है जबकि सरकार का सूचना विभाग बता रहा है कि बेड की कोई कमी नहीं है और पर्याप्त आक्सीजन भी है।वैसे बात भी सही है पैसा है तो वो प्राईवेट नरसिंह होम में दस बेड है तो भी बीस भर्ती कर रहे हैं,लेकिन बरेली के रूहेलखंड मेडिकल कॉलेज ने अपने मेन गेट पर ही कोरोना मरीज़ों के प्रवेश पर पाबंदी लगा रखी है।बीते दिन आक्सीजन की कमी से 7 कोरोना मरीज़ों के मरने की ख़बर भी आयी थी।

 

 

जानकारी करने पर पता चला है कि रूहेलखंड मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन प्लांट काफ़ी दिनों से ख़राब पड़ा है। योगी जी की सरकार के मंत्री ताल ठोंक रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में आक्सीजन सपोर्टेड बेड बढ़ाये दिए गए हैं। जबकि एक मेडिकल कालेज का आक्सीजन प्लांट अर्से से ख़राब है और उसे कोविड की महामारी के इस आपात काल में भी ठीक नहीं करा पा रहे हैं तो किस बिना पर बड़े बड़े दावे ठोकें जा रहे हैं।

बरेली के सी एम ओ डा सुधीर गर्ग कह रहे हैं कि काफ़ी दिन से अक्सर आक्सीजन प्लांट ख़राब रहता है,उनका ये भी कहना है कि प्राइवेट संस्था होने के कारण कालेज वाले सुनते नहीं हैं। जब इस मेडिकल कॉलेज को कोविड के मरीज़ों के लिए अधिग्रहीत कर लिया गया है तबसे दवा सहित सारी सुविधा सरकार से मिलती है।वह कब चाहेंगे कि हम भर्ती करें,प्राइवेट रहता तो लाखों की कमाई होती।

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तो ,अब मुख्य चिकित्साधिकारी और ज़िलाधिकारी की  जिम्मेदारी है देखना है की मरीज़ क्यों नहीं भर्ती हो रहे हैं। आक्सीजन प्लांट नहीं चलता है तो अधिग्रहण क्यों किया,क्या प्रशासन इसे ठीक करा नहीं सकता। क्या केवल कागजी खानापूर्ति की गई है।

असलियत यह है कि प्रशासन चाहता ही नहीं कि मरीज़ यहाँ भर्ती हों।अगर यहां भर्ती हो गये तो प्राइवेट में कौन जायेगा।

 

सवाल बड़ा है कि क्या मुख्यमंत्री या फिर अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा के संज्ञान में आक्सीजन प्लांट ख़राब होने का मामला लाया गया, क्या बताया गया कि भर्ती नहीं ले रहा है रूहेलखंड मेडिकल कॉलेज।

बरेली का एकमात्र 300 बेड का सरकारी कोविड अस्पताल है जहां पिछले साल आए कोविड के समय 135 बेड कोविड के मरीज़ों के लिए स्वीकृत थे,लेकिन अब तक उसमें कोई बेड नहीं बढ़ाए गए है। मुख्य चिकत्साधिकारी बरेली ने बताया कि ज़रूरी समान नहीं हैं इसलिए बेड नहीं बढ़ाए गए हैं। सूत्रों के अनुसार बेड न होने पर कोरोना के मरीज़ अस्पताल के बरामदे में बैठे हैं और भर्ती के लिए कराह रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार प्रशासन का तो ज़ोर इस बात पर है की कोविड -19 से संक्रमित मरीज़ प्राइवेट चिकित्सालयों में ज़्यादा से ज्यादा भेजे जायँ, क्योंकि यहाँ फ़्री इलाज नहीं है। जबकि सरकारी अधिग्रहीत चिकित्सालयों में बेड ख़ाली पड़े हैं।यदि सरकार द्वारा अधिग्रहीत मुफ़्त इलाज देने वाले राजकीय चिकित्सालयों/मेडिकल कॉलेज में कुछ कमी भी है तो उसे ठीक करने में प्रशासन की कोई रुचि नहीं है।

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सूत्र बता रहे हैं कि ऐसे प्राइवेट नरसिंग होम को कोविड अस्पताल बनाए गए हैं जहां नाम मात्र सुविधाएँ हैं,अपुष्ट आधार पर आरोप ये भी लग रहा है कि सरकारी अस्पताल में सुविधा न देकर प्राइवेट नरसिंग होम की सुविधा का ख़्याल ज़्यादा रखा जा रहा है। इस कारण प्राइवेट नरसिंग होम में भर्ती में मनमानी तो हो ही रही है साथ ही भारी भरकम बिल भी थमाया जा रहा है जिससे कोरोना के मरीज़ों और उनके परिजनों पर दुहरी मार पड़ रही है। सरकारी अस्पताल में बेड की संख्या न बढ़ाने से इस आरोप को तो बल मिलता ही है।

जानकार बता रहे हैं की कोविड की महामारी के कठिन समय में भी प्राइवेट नरसिंग होम को फ़ायदा देने में प्रशासन और सीएमओ कार्यालय में कोविड कंट्रोल की कमान सम्भाल रहे डी एस ओ की मिली भगत है। कहने वाले तो यह कह रहे हैं कि इस आपदा काल में भी अधिकारी अपना फायदा देख रहे हैं।

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 सच देखा जाय तो कमोबेश अधिकांश ज़िलों के यही हालात हैं। यदि इन पर ध्यान दिया जाय तो काफ़ी हद तक अफ़रातफ़री पर रोक लगेगी।

उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी जी यदि एक बार प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं का जायज़ा अपने दरबारी अधिकारियों के चश्मे से न देखकर स्वयं के चश्मे से देखें फिर वास्तविकता खुद जान जाएँगें।

Radio_Prabhat
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