Saturday - 13 January 2024 - 5:35 AM

गांधी से गांधी तक : पॉलिटिशियन को सूट करती है पदयात्रा

जुबिली स्पेशल डेस्क

राहुल गांधी इस वक्त भारत जोड़ो यात्रा पर अपना पूरा फोकस लगाये हुए है। दरअसल देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक्त बेहद खराब दौर से गुजर रही है।

केंद्र में उसकी सत्ता जा चुकी है जबकि राज्यों में उसकी स्थिति कोई अच्छी नहीं है लेकिन राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के सहारे फिर से वहीं कांग्रेस अपने पैरो पर खड़े होने के लिए बेताब नजर आ रही है। अगर भारतीय राजनीति में गौर किया जाये तो इससे पहले भी कई पॉलिटिशियन ने इस तरह का पदयात्रा की है और इसी के सहारे जनता का दिल भी जीतने की पूरी कोशिश की गई है।

हालांकि आजादी से पहले महात्मा गांधी ने पदयात्रा कॉन्सेप्ट को सबसे पहले सामने लेकर आ चुके हैं। गांधी की ये यात्रा बेहद सफल रही है। महात्मा गांधी के देश में कई ऐसे मौके आए है जिसमें कई पॉलिटिशियनों ने इस तरह की यात्रा का सहारा लेकर वोट बैंक को बढ़़ाया है। बात अगर महात्मा गांधी की जाये तो उन्होंने 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक दांडी मार्च निकाला था।

इसका रिजल्ट काफी अच्छा निकला था क्योंकि 1931 में गांधी-इरविन के बीच हुए समझौता होने के बाद ये मार्च खत्म हुआ था। वहीं आजादी से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 1946 को जिन्ना के ‘डायरेक्ट एक्शन’ एलान के बाद नोआखली (अब बांग्लादेश) में दंगा भडक़ गया।

हिन्दुओं की हत्याएं होने लगी। 7 नवंबर 1946 को महात्मा गांधी नोआखाली पहुंचे। चार महीने तक रहकर सैकड़ों गांवों का दौरा किए। इसे पीस मार्च के नाम से भारतीय इतिहास में जगह दी गई है। इसका गहरा असर ये हुआ कि हिन्दुओं के जिन मंदिरों को तोड़ा था बाद में उसी मंदिरों को फिर से बनाने में मुसलमानों ने पूरा योगदान दिया।

इसी तरह से एनटीआर ने 29 मार्च 1982 को तेलुगु देशम पार्टी का गठन करने के बाद 75 हजार किलोमीटर यात्रा निकाली और इसक असर ये हुआ कि विधानसभा चुनाव में एनटीआर को 294 में से 199 सीटें जीतकर सीएम जा पहुंचे। पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी के विवेकानंद स्मारक से एक यात्रा शुरू की थी और फिर ये 25 जून 1984 को दिल्ली में राजघाट पर खत्म की थी। इसका असर ये हुआ कि वो बाद में पीएम बनने में कामयाब हुए।

वहीं सत्ता पर काबिज रहते हुए राजीव गांधी ने 1985 में कांग्रेस संदेश यात्रा की लेकिन वो उतनी कामयाब साबित नहीं हुई। वहीं आडवाणी की राम रथयात्रा 25 सितंबर 1990 को निकाली थी लेकिन वो अयोध्या नहीं पहुुंच सकी लेकिन ये बीजेपी को फायदा जरूर पहुंचा सकी। अगर देखा जाये तो – ‘राम रथ यात्रा’, ‘जनादेश यात्रा’, ‘स्?वर्ण जयंती रथ यात्रा’, ‘भारत उदय यात्रा’, ‘भारत सुरक्षा यात्रा’ और ‘जनचेतना यात्रा’।

ये सभी यात्राएं आडवाणी के नाम पर हैं भले ही आडवाणी को उसका बड़ा फायदा न मिला हो लेकिन बीजेपी आज उनकी इस यात्रा का लाभ उठा रही है और सत्ता पर काबिज है। वहीं नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2002 में गुजरात गौरव यात्रा की शुरुआत की।

जिसका नतीजा ये हुआ कि गुजरात में उनको टक्कर देने वाला कोई नजर नहीं आया। साल 2003 में वाईएसआर रेड्डी ने पूरे राज्य में 1600 किलोमीटर की पदयात्रा निकाली और इसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस 2004 में विधानसभा चुनाव जीत गई। लोकसभा में भी भारी सफलता मिली और कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की।ए।

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