Tuesday - 22 July 2025 - 11:15 AM

उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग में फर्जी नियुक्तियों का खेल: बदायूं में नए खुलासे

जुबिली स्पेशल डेस्क

उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में फर्जी नियुक्तियों का मामला लंबे समय से चर्चा में रहा है। मिर्जापुर, बलिया, मेरठ जैसे जिलों में पहले भी ऐसी अनियमितताएं सामने आ चुकी हैं, लेकिन जांच के नाम पर मामलों को दबा दिया गया। अब बदायूं जिले में फर्जी नियुक्तियों के नए प्रकरण सामने आए हैं, जो स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं।

बदायूं में फर्जी नियुक्तियों का मामला

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने 25 जून 2025 को स्पष्ट किया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) कादरचौक पर उमेश सिंह नाम का कोई कर्मचारी तैनात नहीं है।

साथ ही, उमेश सिंह की नियुक्ति की जांच अपर निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, बरेली मंडल के स्तर पर विचाराधीन है। इसी तरह, PHC समरेर, बदायूं में वार्ड बॉय के पद पर राकेश सिंह की नियुक्ति पर भी सवाल उठे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, बदायूं जिले में चतुर्थ श्रेणी के 58 कर्मचारियों की नियुक्तियां फर्जी बताई जा रही हैं। ये नियुक्तियां मुख्य रूप से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) पर की गईं, जो वर्ष 2000 तक चलीं।

इन कर्मचारियों के नियुक्ति आदेश न तो आदेश पंजिका में दर्ज हैं और न ही गार्ड फाइल में। इसके बावजूद, कई कर्मचारियों के अन्य जिलों में स्थानांतरण कराकर लास्ट पे सर्टिफिकेट (LPC) और जीपीएफ लेजर तक तैयार कर लिए गए, ताकि फर्जी नियुक्तियों को वैधता दी जा सके।

PHC कादरचौक और समरेर में क्या है मामला?

उमेश सिंह का प्रकरण

सूत्रों के अनुसार, PHC कादरचौक पर फर्जी नियुक्तियों का बड़ा खेल हुआ। एक सेवानिवृत्त लिपिक पर इन अनियमितताओं का मुख्य आरोप है।

RTI के जवाब में साफ हुआ कि उमेश सिंह नाम का कोई कर्मचारी PHC कादरचौक पर कभी तैनात नहीं था। हालांकि, उमेश चंद्र पुत्र अजयपाल सिंह की नियुक्ति 1995-96 में होने का दावा किया गया, जिसके लिए CMO बदायूं के नाम से नियुक्ति पत्र जारी हुआ था।

इस पत्र की प्रति जुबिली पोस्ट को प्राप्त हुई, लेकिन इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई। इस नियुक्ति पत्र में पत्रांक और जारी करने की तारीख का अभाव इसे संदिग्ध बनाता है।

बताया जाता है कि उमेश सिंह ने इसी नाम का फायदा उठाकर 6 अक्टूबर 1997 को महानिदेशालय, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, लखनऊ से स्थानांतरण आदेश प्राप्त किया और जिला चिकित्सालय, मेरठ में 11 फरवरी 1998 को वार्ड बॉय के पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया।

आदेश में स्पष्ट था कि मूल नियुक्ति पत्र और अन्य अभिलेखों की जांच के बाद ही कार्यभार ग्रहण कराया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

राकेश सिंह का प्रकरण

PHC समरेर, बदायूं में वार्ड बॉय के पद पर राकेश सिंह की नियुक्ति भी संदेह के घेरे में है। उनका नियुक्ति पत्र जिला चिकित्सालय, बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के हस्ताक्षर से 5 दिसंबर 1994 को जारी हुआ। नियुक्ति पत्र में पत्रांक का उल्लेख नहीं है, और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक को PHC पर नियुक्ति आदेश जारी करने का अधिकार ही नहीं है; यह अधिकार केवल CMO को प्राप्त है। इस पत्र की प्रामाणिकता की भी पुष्टि नहीं हुई।

शासन के आदेशों की अनदेखी

उत्तर प्रदेश शासन ने 26 दिसंबर 1989 और 7 फरवरी 1990 को जारी आदेशों के माध्यम से राज्याधीन सेवाओं में सीधी भर्ती पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद, फर्जी नियुक्तियां की गईं, जिन्हें वेतन और भत्ते दिए गए। महानिदेशालय स्तर से स्थानांतरण तक हुए, जिससे राजस्व का अनुचित भुगतान हुआ और शासन के आदेशों की अवहेलना हुई।

जांच की मांग और योगी सरकार की भूमिका

संदिग्ध कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका और आवश्यक अभिलेखों की जांच की मांग उठ रही है, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके। अपर निदेशक, बरेली मंडल द्वारा जांच की जा रही है, लेकिन इसकी समयसीमा तय करना और प्रगति की समीक्षा करना जरूरी है। योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के तहत स्वास्थ्य विभाग में इन फर्जी नियुक्तियों पर सख्त कार्रवाई की उम्मीद है।

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