Sunday - 7 January 2024 - 6:09 AM

कोरोना वायरस: टीका बनाने के कितनी करीब दुनिया?

  • दुनिया भर में वैक्सीन बनाने के चल रहे है 115 प्रॉजेक्ट
  •  तीन तरह की वैक्सीन बनाने पर चल रहा है काम
  • लाइव वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड वैक्सीन और डीएनए वैक्सीन की हो रही है कोशिश

न्यूज डेस्क

जब से दुनिया में कोविड 19 का पर्दापण हुआ है तब से एक ही बात कही जा रही है कि दुनिया को इस वायरस से तभी निजात मिलेगा जब इसका टीका आ जायेगा। दुनिया भर के वैज्ञानिक कोविड 19 का वैक्सीन बनाने के लिए दिन-रात लगे हुए हैं, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। हालांकि वैज्ञानिकों ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है।

पूरी दुनिया में कोरोना संक्रमितों की संख्या 36.59 लाख से अधिक हो गई है। इसके संक्रमण से अब तक 2,57,207 लोगों की मौत हो चुकी है।

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इस साल के शुरुआत से ही दवा कंपनियां और शोध संस्थान कोविड 19 का वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। जर्मन एसोशिएसन ऑफ रिसर्च बेस्ड फार्मास्युटिकल कंपनीज के अनुसार दुनियाभर में कम से कम ऐसे 115 प्रॉजेक्ट चल रहे हैं जिनमें वैक्सीन बनाने की कोशिश जारी है।

हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इनकी संख्या कम से कम 102 है। फिलहाल तीन तरह की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। इनमें लाइव वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड वैक्सीन और डीएनए अथवा आरएनए वैक्सीन (जीन बेस्ड वैक्सीन) बनाने की कोशिश चल रही हैं, लेकिन इन सबमें अंतर क्या है?

लाइव वैक्सीन

लाइव वैक्सीन की शुरुआत एक वायरस से होती है, पर ये वायरस नुकसानदायक हीं होते हैं। इस वायरस से बीमारियां नहीं होती हैं। ये शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्या को बढ़ाते हैं। दरअसल इससे शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है।

इस तरह की वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते जुलते जेनिटिक कोड और उस तरह के सतह वाले प्रोटीन वाले वायरस होते हैं जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

जब किसी व्यक्ति को इस तरह की वैक्सीन दी जाती है तो इन ‘अच्छे’ वायरसों के चलते बुरे वायरसों से लडऩे के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है और जब बुरा वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र के चलते वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है।

ऐसी वैक्सीन को वेक्टर वैक्सीन भी कहा जाता है। इस तरह की वैक्सीन स्मॉल पॉक्स में काम आती है। इबोला की सबसे पहले बनी वैक्सीन भी वेक्टर वैक्सीन है।

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इनएक्टिवेटेड वैक्सीन

इस तरह की वैक्सीन में कई सारे वायरल प्रोटीन और इनएक्टिवेटेड वायरस होते हैं। बीमार करने वाले वायरसों को पैथोजन या रोगजनक कहा जाता है।

ये एक बहुत ही भरोसेमंद तरीका है। बड़े पैमाने पर फैली कई बीमारियों को काबू करने के लिए इस तरीके को अपनाया गया है। इन्फ्लुएंजा, काली खांसी, हेपेटाइटिस बी, पोलियो और टिटनेस से बचने के लिए इस तरीके का उपयोग होता है।

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन में मृत रोगजनक होते हैं। ये मृत रोगजनक शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते लेकिन शरीर इनको बाहरी आक्रमण ही मानता है और इसके विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगते हैं।

दरअसल इनएक्टिवेटेड वायरस से बीमारी का कोई खतरा नहीं होता। शरीर में विकसित हुए एंटीबॉडी में असल वायरस आने पर भी बीमारी नहीं फैलती।

जीन बेस्ड वैक्सीन

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन की तुलना में जीन बेस्ड वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इनका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है। अभी दुनिया में जो हालात हैं उस हिसाब से यह तय है कि कोविड 19 की वैक्सीन तैयार होने के बाद इसकी करोड़ों डोज की एक साथ जरूरत होगी। इस मांग को पूरा करने के लिए करोड़ों की संख्या में ही इस वैक्सीन का उत्पादन किया जाएगा।

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जीन बेस्ड वैक्सीन में कोरोना वायरस के डीएनए या एम-आरएनए की पूरी जेनेटिक सरंचना मौजूद होगी। इन पैथोजन में से जेनेटिक जानकारी की महत्वपूर्ण संरचनाएं नैनोपार्टिकल्स में पैक कर कोशिकाओं तक पहुंचाई जाती हैं। ये शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती है। जब ये जेनेटिक जानकारी कोशिकाओं को मिलती है तो वह शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देती है, जिससे बीमारी को खत्म किया जाता है।

ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी और भारत समेत कई देशों में वैक्सीन बनाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। अभी सारी वैक्सीन विकास के स्तर पर हैं। जर्मनी में जिस वैक्सीन को पहले चरण की मंजूरी मिली है वो एक एम-आरएनए वैक्सीन ही है। उम्मीद की जा रही है कि ये वैक्सीन सफल होकर जल्दी ही बाजार तक पहुंच सकेगी।

आखिर वैक्सीन बनकर तैयार कब होगी?

पूरी दुनिया वैज्ञानिकों की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए हर किसी के मन में सिर्फ एक ही सवाल आखिर वैक्सीन बनकर तैयार कब होगी।

दरअसल वैक्सीन बन जाने पर ही निर्भर नहीं करता है। सबसे पहले किसी भी वैक्सीन के प्रयोगशाला में टेस्ट होते हैं। फिर इनको जानवरों पर टेस्ट किया जाता है.।इसके बाद अलग-अलग चरणों में इनका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है। फिर अध्ययन करते हैं

कि क्या ये सुरक्षित हैं, इनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है और क्या ये प्रायोगिक रूप से काम कर रही हैं। जब ये सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती हैं तो इन्हें बनाने की परेशानियां सामने आती हैं।

पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है। फिलहाल दुनिया की किसी एक कंपनी के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वह सबको वैक्सीन उपलब्ध करवा दे।

दवाई कंपनियां अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखना चाह रही हैं। इसलिए जिन वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो रहा है वो उन्हें बड़े पैमाने पर बनाने की तैयारी भी कर रही हैं। हर कंपनी हर संभावित वैक्सीन के लिए अपनी क्षमता बढ़ा रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी वैक्सीन विकसित होकर सारे चरणों को सफलतापूर्वक पार करने के बाद 2021 तक ही दुनिया के लिए उपलब्ध हो पाएगी।

दुनियाभर में हो रहा है पैसे का इंतजाम

कोविड 19 का वैक्सीन बनाने में खर्च हो रही धनराशि और एक संभावित वैक्सीन बन जाने पर उसके बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए दुनियाभर में जरूरी धनराशि को इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग कैंपेन चल रहे हैं।

यूरोपीय संघ ने इस काम के लिए डोनर्स कॉन्फ्रेंस कर 7.4 अरब यूरो इकट्ठा किया है, लेकिन दुनिया भर में वैक्सीन को उपलब्ध कराने के लिए और धन की जरूरत होगी।

इबोला के बाद गरीब देशों को ऐसी किसी और महामारी से बचाने के लिए विश्व आर्थिक फोरम ने 2016 में कॉइलेशन ऑफ एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) नाम की संस्था बनाई थी। इसका काम ऐसी महामारियों से लडऩे के लिए शोध करना है। इसके शोध भी लगातार जारी है। सेपी भी आठ अलग-अलग वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रही कंपनियों की सहायता कर रहा है।

भारत और नॉर्वे की सरकार ने भी बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, विश्व आर्थिक फोरम और ब्रिटिश वेकलम ट्रस्ट के साथ वैक्सीन निर्माण के लिए हाथ मिलाया है। वैक्सीन बनाने के लिए कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय कोष के गठन में हिस्सेदारी की है। इनमें जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, इथियोपिया, जापान, सऊदी अरब, नीदरलैंड्स और स्विटजरलैंड भी शामिल हैं।

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