जुबिली स्पेशल डेस्क
मुंबई। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे के हालिया भाषणों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन वरिष्ठ वकीलों ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (DGP) को पत्र लिखकर राज ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत कार्रवाई की मांग की है। वकीलों ने इस भाषण को भड़काऊ और असंवैधानिक करार दिया है।
भाषाई हिंसा पर चिंता, संविधान का उल्लंघन बताया
वकीलों की शिकायत के मुताबिक, 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली में एक जनसभा में राज ठाकरे ने कथित रूप से कहा था, “जो भी हमसे गलत भाषा में बात करेगा, उसे एक मिनट में चुप करा देंगे” और साथ ही सभा में मौजूद लोगों से कहा कि इसे वीडियो रिकॉर्ड न किया जाए।
वकीलों का कहना है कि ये बातें न केवल कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेदों का भी उल्लंघन करती हैं।
MNS कार्यकर्ताओं पर हिंसा के आरोप
वकीलों ने यह भी दावा किया है कि भाषण के बाद MNS कार्यकर्ताओं ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर हमले, तोड़फोड़ और गैर-मराठी लोगों के साथ हिंसा की। कई घटनाओं में महिलाओं और बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट के आरोप भी सामने आए हैं।
वकीलों की ओर से उठाए गए संवैधानिक बिंदु
- शिकायत में राज ठाकरे के बयानों को भारतीय संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेदों का उल्लंघन बताया गया है
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 19(1)(a): विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 19(1)(d) व (e): भारत में कहीं भी आने-जाने और बसने का अधिकार
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
एनएसए लगाने की मांग और राज्य की ज़िम्मेदारी पर सवाल
वकीलों का कहना है कि ऐसे बयान राज्य में क्षेत्रीय विभाजन और नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे समाज का सामंजस्य प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि इस तरह की घटनाएं न केवल महाराष्ट्र, बल्कि देश की एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकती हैं।
राज ठाकरे और उनके समर्थकों पर NSA लगाने की मांग करते हुए, उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी नागरिक को भाषा, धर्म या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े।
सरकार पर कर्तव्य निभाने का दबाव
वकीलों का कहना है कि यह सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह राज्य में शांति, कानून और सामाजिक सौहार्द बनाए रखे। ऐसे वक्तव्य और उनसे उपजे घटनाक्रम को लेकर यदि समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो सामान्य नागरिकों का विश्वास लोकतांत्रिक संस्थाओं से डगमगा सकता है।