Saturday - 6 January 2024 - 10:33 PM

गोरखपुर में ठीक, तो मुजफ्फरपुर में क्यों नहीं

न्‍यूज डेस्‍क

बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार कहे जाने वाले अक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा हैं। अस्पतालों से हर पल बच्चों के शव के पास रोती-बिलखती मांओं के दिल झकझोर कर रख देने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। पिछले 24 घंटों में 20 बच्चों की मौत से बिहार में अब तक 100 मांओं की गोद सूनी हो चुकी है।

एक बेड पर दो या दो से अधिक बच्चों को भर्ती

चमकी बुखार से जिन बच्‍चों की हालत गंभीर बनी हुई है, उनके परिजन डॉक्टरों से आस लगाए बैठे हैं। लगातार बढ़ती संख्या से अस्पताल में मरीजों के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं। नतीजा एक बेड पर दो या दो से अधिक बच्चों को भर्ती कराया गया है।

मुजफ्फरपुर में साल दर साल एक ही बीमारी से बच्चे मरते रहे

लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्‍चों की मौत का सिलसिला इसी साल शुरू हुआ है। इससे पहले भी चमकी बुखार ने बच्‍चों की जान ली है। बिहार के मुजफ्फरपुर में साल दर साल एक ही बीमारी से बच्चे मरते रहे हैं।

बिहार सरकार को योगी सरकार से सीख लेनी चाहिए। यूपी के गोरखपुर में इस से बचाव के लिए टीकाकरण सफलतापूर्वक हुआ, जिससे बीमारी 60 फीसदी तक काबू में आ गई।

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में यूपी, बिहार और नेपाल से आने वाले इंसेफेलाइटिस प्रभावित बच्‍चों के लिए सीएम योगी आदित्‍यनाथ के ‘पशेंट ऑडिट फार्मूला’ एक वरदान साबित हुआ है। इस साल 2019 में 78 मरीजों में से 15 बच्‍चों को मौत हुई हैं।

सवाल यह उठ रहा है कि जब गोरखपुर में टीकाकरण हुआ, तो ऐसा मुजफ्फरपुर में क्यों नहीं हो सका। इंसेफलाइटिस के सबसे ज्यादा शिकार गोरखपुर और मुजफ्फरपुर रहे हैं।

मुजफ्फरपुर में इसके रोकथाम के नाम पर अमेरिका से जापान तक का दौरा होता रहा लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस बार भी जब बच्चों की मौतें जारी हैं, तो स्वास्थ्य विभाग इलाज के बजाय ऊपर वाले के रहम पर भरोसा कर रहा है।

विभाग चाहता है कि जल्द बारिश हो, जिससे महामारी का प्रकोप थमे। गर्मी बढ़ने के साथ मुजफ्फरपुर में हालात और खराब हो गए हैं। अगर सरकार ने बनी योजना पर अमल किया होता तो मुजफ्फरपुर में बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।

100 करोड़ से ऊपर खर्च किया है

वहां अब तक इंसेफलाइटिस पर रोकथाम के लिए सरकार ने रिसर्च और इलाज का उपाय खोजने में 100 करोड़ से ऊपर खर्च किया है लेकिन फिर भी मौतें जारी हैं। रिपोर्ट के अनुसार जिन बच्चों की मौत छोटे अस्पतालों में या घर पर ही हो गईं, उनके आंकड़े शामिल नहीं किए गए। गैर सरकारी आंकड़ा है कि दो हजार से ज्यादा बच्चे पीड़ित हैं।

बिहार के लिए एईएस ऐसे ही अबूझ पहेली नहीं बनी है। इस बीमारी ने 24 साल पहले यानी 1995 में दस्तक दी थी। तब एईएस ने महामारी के रूप में दस्तक दिया था जिसका कहर आज भी जारी है।

पिछले 8 सालों की बात करें तो इस दौरान 1134 बच्चे बीमारी का शिकार हुए हैं, जिनमें से 344 बच्चों की मौत हो गई है। कई बच्चे विकलांगता के शिकार हो गए हैं।

साल 2010 से पहले सरकारी आकंड़े तैयार नहीं किए जाते थे, लेकिन उसके बाद से हरेक साल बच्चों की मौत का आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग में दर्ज होता रहा है। वर्ष 2010, 2012 और 2015 में बच्चों की मौत का सिलसिला बढ़ता चला गया।

यूं तो बिहार के 12 जिले इस जानलेवा रोग से प्रभावित हैं लेकिन मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी और वैशाली जिले से सबसे अधिक मामले एईएस के आते रहे हैं।

इस साल भी मुजफ्फरपुर समेत आस-पास के जिलों से इस बीमारी की शुरूआत हुई और तापमान में बढ़ोतरी के साथ इसकी संख्या और शरीर से पसीना निकलने वाली ऊमस भरी गर्मी शुरू होने पर एईएस के मामले बढ़ने की आशंका है।

 

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