Saturday - 6 January 2024 - 7:37 AM

राज्यसभा या सीएम उम्मीदवार किसको चुनेंगे शरद यादव ?

न्‍यूज डेस्‍क

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव खत्‍म होने के बाद अब बिहार की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। एक तरफ जहां विपक्ष में बैठी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी)  ने चुनाव के लिए प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। वहीं, बीजेपी और जदयू दिल्‍ली की हार को भूला कर मिशन बिहार पर लग गए हैं। इस बीच एक बार फिर थर्ड फ्रंट की चर्चा शुरू हो गई है।

दरअसल, बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ महागठबंधन में दो फाड़ हो गए हैं और तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई है। बिहार में महागठबंधन से बगैर विचार विमर्श किए आरजेडी ने तेजस्‍वी यादव को मुख्‍यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया गया है।

दूसरी ओर इसकी काट के लिए महागठबंधन के नेता शरद यादव को मुख्‍यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया गया है। जाहिर है इन परिस्थितियों में महागठबंधन में रार बढ़ गई है और मुख्‍यमंत्री पद को लेकर तकरार चरम पर है।

तेजस्‍वी यादव को सीएम का चेहरा घोषित करने के बाद महागठबंधन महागठबंधन के तीन दलों के नेता जीतन राम मांझी (HAM), उपेंद्र कुशवाहा (RLSP) और मुकेश साहनी (VIP) ने पटना में लोकतांत्रिक जनता दल प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव को सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की मांग की।

इशारा साफ है कि लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी नेतृत्व से ज्यादा तवज्जो ना मिलने के कारण इन नेताओं के पास अब अपना रास्ता ढूंढने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। वहीं आरजेडी का कहना है कि इन नेताओं से बातचीत एक सीमा से ज्यादा संभव इसलिए भी नहीं है कि सब मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और सीटों की संख्या की मांग उनके पार्टी में मौजूद नेताओं से कहीं अधिक होती हैं।

फिलहाल आरजेडी  सुप्रीमो लालू यादव की तरफ से इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि विधानसभा चुनाव में इन लोगों को साथ रखना हैं या नहीं। हालांकि, शरद यादव  ने महागठबंधन के पांच में से तीन घटक दलों के प्रमुख नेताओं से बंद कमरे में बातचीत कर आरजेडी और कांग्रेस  की बेचैनी बढ़ा दी है। साथ ही तीसरे मोर्चे की चिंगारी को भी हवा दे दी है।

आपको बता दें कि बिहार में सत्‍ताधारी गठबंधन जदयू और बीजेपी में सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार खींचतान जारी है। साथ ही सीएए और एनआरसी को लेकर भी दोनों के बीच अभी तक सामंजस्य नहीं स्थापित हो पाया है। इसके अलावा लगातार तीन बार मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के‍ खिलाफ सत्‍ता विरोधी लहर भी चलने की संभावना बन सकती है।

दूसरी ओर लालू यादव की गैर मौजूदगी में आरजेडी सत्‍ता में वापसी के लिए लगातार मेहनत कर रही है और तेजस्‍वी यादव का चेहरा आगे कर चुनाव में उतरने जा रही है। बिहार की सियासत में जमीदोज हो चुकी कांग्रेस उसके साथ कदम-कदम से मिलाकर चल रही है। 2015 में विधानसभा चुनाव में जनता ने आरजेडी और जदयू गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन बहुमत किसी को नहीं दिया थ।

इन चर्चाओं के बीच शरद यादव की क्रियाशीलता को प्रत्यक्ष तौर पर तीसरे मोर्चे  की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की माने तो थर्ड फ्रंट का गठन कर शरद यादव जनता के सामने एक और विकल्‍प रखना चाहते हैं। लेकिन पर्दे के भीतर की कहानी यह भी है आरजेडी पर दबाव डालकर वे लालू प्रसाद यादव से अपने लिए राज्यसभा  की सदस्यता सुनिश्चित करना चाहते हैं।

गौरतलब है कि बिहार कोटे की राज्यसभा की पांच सीटें अप्रैल में खाली होंगी। आरजेडी के खाते में दो सीटें आनी तय हैं। शरद यादव भी इसके लिए दावेदार हैं। इसी मकसद से उनकी रांची में शनिवार को लालू से मुलाकात भी हुई। इस दौरान दोनों नेताबों के बीच बड़े मुद्दों पर बातचीत हुई।

सूत्रों का कहना है कि शरद के नाम पर तेजस्वी सहमत नहीं हैं। पटना में तीन दिनों तक रहते हुए भी दोनों नेताओं के बीच मुलाकात नहीं हो सकी। जबकि, तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा मानने से परहेज करने वाले जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी से शरद की लंबी मंत्रणा हुई। इसके भी दो मायने निकाले जा रहे हैं। पहला यह कि शरद को तेजस्वी की सरपरस्ती स्वीकार नहीं है और दूसरा, 74 वर्षीय शरद बताना-जताना चाह रहे हैं कि राजनीति में अभी वह पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुए हैं।

बहरहाल, शरद यादव महागठबंधन के अन्य घटक दलों के सहयोग से तेजस्वी यादव के चारों ओर घेरा डालने की कोशिश में हैं। शरद यादव के फ्रंट पर आकर खेलने की बेचैनी का असर है कि मांझी, कुशवाहा और मुकेश सहनी को उनमें नेतृत्व का अक्स दिखने लगा है। हालांकि,  आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह  कहते हैं कि शरद देश के नेता हैं। बिहार तेजस्वी के लिए है।

ऐसे में साफ है कि अगर शरद यादव और तेजस्‍वी यादव में बात नहीं बनती है तो बिहार की राजनीति में नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं। जनता के पास एक और विकल्‍प होगा तो बीजेपी और जदयू की राह आसान हो जाएगी। इस दौरान सबकी नजरें जेल में बैठकर बिहार में झारखंड जैसी जीत के सपने देख रहे लालू यादव पर होगी।

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