जुबिली न्यूज
लखनऊ- उत्तर प्रदेश में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियों को लेकर बड़ा प्रशासनिक कदम उठाया गया है। पंचायती राज विभाग ने राज्य स्थानीय ग्रामीण निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन का प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। यह आयोग विशेष रूप से ओबीसी आरक्षण को लेकर जनसंख्या आधारित डेटा तैयार करेगा ताकि आरक्षण की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी, विवाद-मुक्त और न्यायसंगत हो सके।
आयोग का गठन और भूमिका
पंचायती राज विभाग ने छह सदस्यीय आयोग के गठन का प्रस्ताव तैयार किया है, जिस पर अंतिम निर्णय कैबिनेट बैठक में होगा। प्रस्ताव पारित होते ही आयोग गठन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और उसके बाद ओबीसी वर्ग की जनसंख्या से संबंधित विस्तृत आंकड़े एकत्र करने का कार्य शुरू होगा।
आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के चुनावों में आरक्षण तय किया जाएगा और इसी के आधार पर चुनाव की तारीखें घोषित की जाएंगी।
क्यों जरूरी है यह आयोग?
पिछले नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर कई विवाद और कानूनी चुनौतियां सामने आई थीं। उस अनुभव को देखते हुए राज्य सरकार इस बार जनसंख्या आधारित वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाना चाहती है, जिससे कोई भी पक्षपात या भ्रम की स्थिति न बने।
सरकार का स्पष्ट मानना है कि सटीक आंकड़ों और स्थानीय दौरे के आधार पर आयोग की रिपोर्ट तैयार होगी, जिससे हर वर्ग को उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिल सकेगा।
आरक्षण का गणित: कौन कितना?
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SC (अनुसूचित जाति): 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में इनकी जनसंख्या 20.6982% है।
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ST (अनुसूचित जनजाति): केवल 0.5677% जनसंख्या।
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OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग): कुल मिलाकर प्रदेश स्तर पर 27% आरक्षण सुनिश्चित किया जाएगा, भले ही किसी ब्लॉक में उनकी जनसंख्या इससे अधिक क्यों न हो।
हालांकि यदि किसी स्थान पर ओबीसी जनसंख्या 27% से कम है, तो आरक्षण उसी अनुपात में दिया जाएगा।
चुनाव की गति बढ़ाने के संकेत
इस आयोग के गठन से स्पष्ट है कि सरकार चुनाव की तैयारी में तेजी लाना चाहती है। आयोग की रिपोर्ट आने के तुरंत बाद ही आरक्षण सूची जारी की जाएगी और चुनावी प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा।
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पंचायतीराज विभाग ने सभी जिला स्तर के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दें ताकि चुनाव प्रक्रिया में कोई देरी न हो।