सुरेन्द्र दुबे
 आइये आज आपको एक कथा सुनाते हैं। कथा सुनाने का प्राचीन काल से रिवाज है। कथा सही है या गलत इस पर कभी कोई बहस नहीं होती। होनी भी नहीं चाहिए। जो हमने पुरखों से सुना वही सत्य वचन है। वैसे भी कथा का मतलब होता है कोई सत्य घटना या फिर कोई बात हम कहना चाहते हैं तो उसकी कहानी गढ़ लेते हैं।
आइये आज आपको एक कथा सुनाते हैं। कथा सुनाने का प्राचीन काल से रिवाज है। कथा सही है या गलत इस पर कभी कोई बहस नहीं होती। होनी भी नहीं चाहिए। जो हमने पुरखों से सुना वही सत्य वचन है। वैसे भी कथा का मतलब होता है कोई सत्य घटना या फिर कोई बात हम कहना चाहते हैं तो उसकी कहानी गढ़ लेते हैं।
हमारे देश में गाय पर बड़ी कथाएं हैं और उनके नाम पर सदियों से बहुत बड़े गोरखधंधे भी हैं। पर भैंस के नाम पर कोई कथा नहीं है। ये बात शायद अनादिकाल से भैंसों को पसंद नहीं आ रही थी। परंतु जैसे हर प्राणी के दिन बहुरते हैं वैसे ही गाय के साथ-साथ भैंस के भी दिन बदल गए हैं। गाय हमारी माता है, ऐसा हमें बचपन से सिखाया जाता है। पर आजतक दूध देने का ही काम करने वाली भैंस को मौसी या चाची का दर्जा नहीं दिया गया। ये शायद रंगभेद का भी असर हो सकता है। कहा जाता है कि गाय के शरीर में 64 हजार देवी-देवता वास करते हैं, इसलिए गाय को हिंदू समाज में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। हर सरकार में गोरक्षा के नाम पर हजारों गौशालाएं चलती है , जिसमें करोड़ों की घास गौशाला वाले खा जाते हैं। पुन्य कमाते हैं सो अलग।
21वीं सदी में विशेषत: पिछले कुछ वर्षों में गाय के नाम पर पोलिटिक्स चमकने लगी है। और तो और गौरक्षा के नाम पर आदमी मार दिए जाते हैं। इसे कहते हैं देवताओं के प्रति श्रद्धाभाव। गाय बच गई तो देवी-देवता बच गए। आदमी मर गया तो क्या हुआ। उसके शरीर में किसी देवता के निवास का कभी कोई जिक्र नहीं होता है। अधिकांश मॉब लिंचिंग गाय को बचाने के लिए ही होती है। ये सब देखकर भैंसे ‘हीन भावना’ से ग्रसित चल रहीं थीं। यहां तक की यमराज के दरबार में भी भैंस के बजाए भैंसे का जिक्र आता है। शायद ये हमारी पुरुषवादी मानसिकता का प्रतीक है।

हिंदू समाज में आम धारणा है कि जब किसी व्यक्ति का इस दुनिया से टिकट कट जाता है, या कटने वाला होता है तो उसे लेने के लिए यमराज भैंसे पर आते हैं। अब इस युग में यमराज का भी स्तर बढ़ गया होगा। इसलिए शायद वे बीएमडब्ल्यू कार में बैठकर आते हों। पर अभी तक पंडितों ने इस दिशा में कोई कलम नहीं चलाई है। इसलिए ये कहना मुश्किल है कि यमराज ने भैंसे की सवारी छोड़ी है या नहीं। पर कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं है कि यमराज के दरवार में भैंस थी या नहीं। हो सकता है भैंस रही हो, इसीलिए हमारे पंडितों ने देवी-देवताओं के काम में गायों को लगाया।
चलिए मूल बात पर आते हैं। आपको याद होगा अखिलेश यादव की सरकार में मोहम्मद आजम खान नाम के एक बहुत ही ताकतवर मंत्री हुआ करते थे। उनका जलवा कुछ ऐसा था कि गाय के दूध का धंधा करने वाले राजा के जमाने में उन्होंने अपनी भैंस खो जाने को लेकर जमकर बवाल काटा। फिर क्या था मुलजिमों का वर्षों तक पता न लगा पाने वाली पुलिस ने कुछ ही घंटों में भैंसे खोज निकाली। ये आज तक भी रहस्य बना हुआ है कि क्या ये वही भैंसे थी जो आजम खान के दरबार से चुरायी गई थीं या कहें कि किडनैप की गई थी। भैंस कोई छोटी चीज नहीं होती है, इसलिए किडनैपिंग ही हुई होगी।
राजा ने अपनी इज्जत बचाने के लिए चोरी की खबर फैला दी होगी। परंतु इस एक घटना से पृथ्वी लोक पर भैंसों का जीवन धन्य हो गया, क्योंकि आजतक उन्हें ढूंढने कभी पुलिस नहीं गई थी, भले ही वे कसाई के हाथों कट मर गई थीं। मुझे लगता है कि यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसका इतिहास में जिक्र होगा कि किस तरह गाय का दूध का धंधा करने वाले राजा ने अपने एक सिपह सलाहकार की भैंस खोजने के लिए अपने कारिंदों को गली-गली दौड़ा दिया था।
अब हाल ही में या कहें तो कल परसों में ही भैंस के स्वर्णिम युग का एक दृश्य सामने आया। पता चला कि रामपुर वाले राजा के खिलाफ कुछ किसानों ने भैंस चोरी की रपट दर्ज करा दी है। अभी तक इन साहब के खिलाफ जमीन हड़पने, गलत ढंग से विश्वविद्यालय बना लेने तथा सरकारी नाले पर पटरा डालकर रिसार्ट बना लेने जैसे तुच्छ आरोपों पर लगभग 29 मुकदमें दर्ज कराए जा चुके हैं। लगभग की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हो सकता है जब तक ये खबर आप लोग पढ़ें तब तक कई और मुकदमें दर्ज हो चुके हो।
संविधान में ये कहीं नहीं लिखा है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ अधिकतम कितने मुकदमें दर्ज कराए जा सकते हैं। ये खबर पढ़कर रामपुर की भैंसे और उनके परिवार की जहां-जहां भैंस बिरादरी है, सभी फूली नहीं समा रही हैं। ऐसा सौभाग्य उन्हें पहली बार मिला है, जब उनकी चोरी की खबर दो बार इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। पहली बार अखिलेश यादव की सरकार में जब आजम साहब के दरबार से उन्हें चुरा लिया गया था, दूसरी बार तब जब वे आजम खान द्वारा चुरा ली गई हैं। दोनों बार भैंसों ने अपने को गौरवान्वित महसूस किया। कथा यहीं समाप्त होती है। जस रामपुर की भइसिन के दिन बहुरे, तइसे सबै भैंइसन के दिन बहुरै।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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