Saturday - 6 January 2024 - 3:32 AM

आखिर क्यों हो रहा कृषि बिल का विरोध

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

मोदी सरकार के कृषि बिल के खिलाफ किसानों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लोकसभा में पारित कृषि से जुड़े तीन अहम विधेयकों का पंजाब से लेकर महाराष्ट्र तक विरोध हो रहा है। एक तरफ जहां बीजेपी इन विधेयकों को किसानों के लिए क्रांतिकारी बता रही है, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इन विधेयकों को किसानों के लिए नुकसानदह बता रहे हैं। इन विधेयकों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल से मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मोदी कैबिनेट से अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया है।राष्ट्रपति ने पीएम मोदी से बातचीत के बाद हरसिमरत कौर का इस्तीफ़ा संविधान के अनुच्छेद 75 के खंड (2) के तहत स्वीकार किया है।

हरसिमरत कौर का इस्तीफ़ा स्वीकार करने के बाद राष्ट्रपति ने निर्देश दिए कि कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को उनके मौजूदा विभागों के अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का प्रभार भी सौंपा जाए।

इस बीच पंजाब के मुक्तसर स्थित बादल गांव में प्रदर्शन कर रहे एक किसान ने जहर खा लिया। खास बात है कि यह पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का गांव है और उनके घर के बाहर ही किसान धरना दे रहा था।

Kisan Bill 2020: लोकसभा में पास हुआ कृषि संबंधित बिल, जानें विधेयक का क्यों हो रहा इतना विरोध - Farm bills why farmers protest agaisnt agriculture bill know all key points pm

बताया जा रहा है कि पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के घर के बाहर धरने पर बैठे प्रीतम सिंह नामक किसान ने आज सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर जहर पी लिया। वह मानसा के अकाली गांव का रहने वाला है। प्रीतम सिंह को सबसे पहले बादल गांव के सरकारी अस्पताल में एडमिट कराया गया। इसके बाद उसे बठिंडा के मैक्स हॉस्पिटल में ले जाया गया है। उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।

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क्यों हो रहा है विरोध

ये पूरा विवाद केंद्र के उन तीन कृषि विधेयकों को लेकर है। इसमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल) और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल शामिल है।

इन अध्यादेशों को लेकर यह कहा जा रहा है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, अध्यादेश इसे भी खत्म कर देगा। इसके अलावा कहा जा रहा है कि ये अध्यादेश साफ तौर पर मौजूदा मंडी व्यवस्था का खात्मा करने वाले हैं।

गौरतलब है कि कृषि से संबंधित दो अध्यादेशों को गुरुवार के दिन 5 घंटे चली लंबी बहस के बाद इसे पारित कर दिया गया है। कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य, सवर्धन और विधेक-2020 और किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020 अब लागू हो चुका है। हालांकि, ऐसे में इसके पास होने के फौरन बाद भाजपा को विपक्षियों के साथ साथ अपने सहयोगियों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।

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बता दें कि तमाम विरोधों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोकसभा में ऐतिहासिक कृषि सुधार विधेयकों का पारित होना देश के किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे। उन्होंने ट्वीट किया,

‘किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं. मैं अपने किसान भाइयों और बहनों को आश्वस्त करता हूं कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी. ये विधेयक वास्तव में किसानों को कई और विकल्प प्रदान कर उन्हें सही मायने में सशक्त करने वाले हैं.’

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सहयोगी पार्टी भी कर रही विरोध

इससे पहले सदन में बिल पर हो रही चर्चा के बीच NDA सहयोगी सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि किसानों की भावनाओं को सरकार को बता दी गई है। हमने काफी प्रयास किया कि लोगों की आशंकाएं दूर की जाएं, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। पंजाब राज्य में कृषि के आधारभूत ढांचे को तैयार करने में सरकारों ने कठिन परिश्रम किया है और इसमें 50 वर्ष का समय लगा है। यह अध्यादेश सरकारों की 50 साल की मेहनत को बर्बाद कर देगा।

बता दें कि इस अध्यादेश का विरोध विपक्षी दलों ने भी खूब जोर-शोर से किया। उनका मानना है कि यह कानून किसानों को सुरक्षाकवच के रूप में दिए जा रहे MSP (न्यूनतम ब्रिक्री मूल्य) प्रणाली को कमजोर कर देगा। ऐसे में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा और बड़ी कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी।

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बिल में क्या है?

अगर बिल के विरोध की बात करें तो किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020 में एक परिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का प्रावधान किया गया है। यानी एक ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा, जहां किसान और व्यापारी किसी भी राज्य में जाकर अपनी फसलों को बेच और खरीद सकेंगे। इस बिल के मुताबिक जरूरी नहीं कि आप राज्य की सीमाओं में रहकर ही फसलों की बिक्री करें। साथ ही बिक्री लाभधायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का भी लाभ ले सकेंगे।

वहीं अगर दूसरे बिल किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) का मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 की बात करें तो इसके तहत कृषि समझौते पर राष्ट्रीय ढांचे को तैयार करने का प्रावधान किया गया है। यानी इसके जरिए किसानों को कृषि व्यापार में किसानों, व्यापारियों, निर्यातकों इत्यादि के लिए पारदर्शी तरीके से सहमति वाला लाभदायक मूल्य ढांचा उपलब्ध कराना है।

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बिल में ये चीजे हैं शामिल

1- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक,2020 के तहत किसान देश के किसी भी कोने में अपनी उपज की बिक्री कर सकेंगे। अगर राज्य में उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा या मंडी सुविधा नहीं है तो किसान अपनी फसलों को किसी दूसरे राज्य में ले जाकर फसलों को बेंच सकता है। साथ ही फसलों को ऑनलाइन माध्यमों से भी बेंचा जा सकेगा, और बेहतर दाम मिलेंगे।

2- मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के तहत किसानों की आय बढ़ाने को लेकर ध्यान दिया गया है। इसके माध्यम से सरकार बिचौलिओं को खत्म करना चाहती है। ताकि किसान को उचित मूल्य मिल सके। इससे एक आपूर्ति चैन तैयार करने की कोशिश कर रही है सरकार।

3- आवश्यक वस्तु (संशोधन), 2020 के तहत अनाज, खाद्य तेल, आलू-प्याज को आनिवार्य वस्तु नहीं रह गई हैं।  इनका अब भंडारण किया जाएगा। इसके तहत कृषि में विदेशी निवेश को आकर्षित करने का सरकार प्रयास कर रही है।

क्‍या कहते हैं किसान  

1- इसमें किसानों व अन्य राजनैतिक पार्टियों का कहना है कि अगर मंडियां खत्म हो गई तो किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Selling Price) नहीं मिल पाएगी। इसलिए एक राष्ट्र एक MSP होना चाहिए।

2- विरोध का कारण यह भी है कि कीमतों को तय करने का कोई तंत्र नहीं है। इसलिए किसानों और राजनैतिक दलों की चिंता यह है कि कहीं निजी कंपनियां किसानों का शोषण न करें।

3- चिंता यह भी है कि व्यापारी इस जरिए फसलों की जमाखोरी करेंगे। इससे बाजार में अस्थिरता उत्पन्न होगी और महंगाई बढ़ेगी। ऐसें में इन्हें नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।

4- राज्य सरकारों को चिंता यह भी है कि अगर फसलों के उचित दाम राज्य में नहीं दिए जाएंगे तो किसान पड़ोसी राज्य में जाकर अपनी फसलें बेंच सकेंगे। ऐसे में राज्य सरकारों को फसल संबंधित दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

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