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आखिर टीएन शेषन से क्यों डरते थे नेता

न्यूज डेस्क

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा किसी को याद किया गया तो वह थे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन। जैसे ही चुनाव आयोग कमजोर फैसले करता है तो शेषन के दौर की चर्चा शुरु हो जाती है कि उनके समय में नेता टीएन शेषन के नाम से कैसे भय खाते थे।

चुनाव आयोग को रुतबा दिलाने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का रविवार को निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे और चेन्नई में रह रहे थे। वह काफी सालों से बीमार चल रहे थे। चेन्नई में रह रहे थे।

शेषन का पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन था। वह भारत के दसवें चुनाव आयुक्त रहे। उन्होंने 1990 से 1996 के दौरान चुनाव प्रणाली को मजबूत बनाया। इसकी बदौलत चुनाव प्रणाली की दशा और दिशा बदल गई। उस वक्त यह कहा जाता था कि नेताओं को या तो भगवान से डर लगता है या फिर शेषन से।

टीएन शेषन को अब तक का सबसे कड़क मुख्य चुनाव आयुक्त माना जाता है। आज हम जिस आचार संहिता की बात करते हैं, उनके ही कार्यकाल से आचार संहिता का पालन शुरु हुआ। उससे पहले तो शायद नेता जानते भी नहीं थे।

शेषन के ही कार्यकाल में चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा शक्तियां मिली। चुनाव प्रक्रिया में सुधार हुआ। मतदाताओं के लिए मतदान पत्र अनिवार्य हुए। फर्जी मतदान पर रोक लगी और लोकतंत्र की नींव और ज्यादा मजबूत हुई।

राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया का सख्ती से पालन हुआ। शेषन ने ही चुनाव में राज्य मशीनरी का दुरुप्रयोग रोकने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती को और ज्यादा मजबूत बनाया। इससे नेताओं की दबंगई कम हुई।

गौरतलब है कि शेषन के कार्यकाल से पहले तक चुनाव में बेहिसाब पैसा खर्च होता था और पार्टी और प्रत्याशी इसका हिसाब भी नहीं देते थे। उन्होंने आचार संहिता के पालन को इतना सख्त बना दिया कि कई नेता शेषन से खार खाते थे। इनमें लालू प्रसाद यादव प्रमुख थे। यह शेषन की ही देन है कि अब चुनावों में राजनीतिक दल और नेता आचार संहिता के उल्लंघन की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।

फर्जी मतदान रोकने के लिए शुरु हुआ वोटर आईडी

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के कार्यकाल के दौरान ही पहचान पत्र बने। चुनाव में वोट डालने के लिए वोटर आईडी कार्ड का इस्तेमाल होने लगा। इससे फर्जी मतदान पडऩे कम हुए। यह भी कहा जाता है कि शेषन जब चुनाव आयुक्त थे उस वक्त वोट देने के लिए शराब बांटने की प्रथा एकदम खत्म हो गई थी। चुनाव के दौरान धार्मिक और जातीय हिंसा पर भी रोक लगी थी।

राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े थे शेषन

टीएन शेषन तमिलनाडु कार्डर के 1955 वैज के आईएएस अधिकारी थे। चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी निभाने से पहले वह सिविल सेवा में थे। वह स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम वक्त तक सेवा देने वाले कैबिनेट सचिव बने। 1989 में वह सिर्फ आठ महीने के लिए कैबिनेट सचिव बने। शेषन ने के आर नारायणन के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ा। वह तब के योजना आयोग के सदस्य भी रहे।

शेषन को अपने जनता दरबार में कोसते थे लालू

टीएन शेषन के बारे में कहा जाता है कि वह जरा-सा शक होने पर चुनाव रद्द कर देते थे। उनके कार्यकाल के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे और वहां चुनाव हो रहा था। बिहार फर्जी वोट और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम था। शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान चुनाव में इसे रोकने के लिए सूबे को अर्धसैनिक बलों से पाट दिया।

लालू यादव फिर से कुर्सी पर बैठने की राह ताक रहे थे। शेषन ने सूबे में सुरक्षा व्यवस्था को इतना मजबूत कर दिया था कि बिहार में चुनाव प्रक्रिया तीन महीने तक चली। यह पहली बार था जब बिहार में पिछले चुनावों के मुकाबले कम हिंसा हुई और फर्जी वोट भी कम पड़े।

संकर्षण ठाकुर अपनी किताब ‘द ब्रदर्स बिहारी’ में लिखते हैं कि लालू प्रसाद यादव अपने जनता दरबार में टीएन शेषन को खूब कोसते थे। वह अपने हास्य और व्यंग्य के लहजे में कहते थे- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर गंगाजी में हेला देंगे। शेषन 11 दिसंबर 1996 तक चुनाव आयुक्त रहे और इस दौरान भारत का चुनाव आयोग सबसे ज्यादा शक्तिशाली और मजबूत हुआ।

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