Wednesday - 10 January 2024 - 3:19 AM

सलाहकार अफसर और योगी सरकार

यशोदा श्रीवास्तव

यूपी में आज और कुछ माह पहले विपक्षी खासकर कांग्रेस नेताओं के साथ देखा गया सरकार का नजरिया साफ संकेत करता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके अफसरों की टीम सच से दूर रखने की साज़िश कर रही है। ऐसे अफसरों का नाम लेने की ज़रूरत नहीं क्योंकि वे खुद ही नामचीन है।

योगी के कथित विश्वसनीय अफसरों की यह टीम पूर्व की सरकारों की भी विश्वसनीय रही है। अफसरों की वहीं टीम आज योगी की भी विश्वसनीय है। यह मेरा निजी विश्लेषण है कि राजनीतिक दृष्टि से सत्ता के विपरीत असर डालने वाली तमाम घटनाओं के साइड-इफेक्ट का फीडबैक मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पा रहा जिस वजह से सरकार की किरकिरी होती रही।

ताजा मामला लखीमपुर-खीरी का है। यहां किसानों के साथ जो बर्बरता हुई,उसे लेकर सरकार को जिस तरह डिफेंसिव मोड में देखा गया, दरअसल वह सरकार की किरकिरी ही है।

जाहिर है घटना के बाद सरकार को क्या करना चाहिए इसपर सलाहकार अफसरों की राय अहम होती है, लखीमपुर-खीरी के मामले में भी सरकार ने जो कदम उठाए,जाहिर है सलाहकार अफसरों की बनाई रणनीति के तहत ही उठाए गए होंगे। लेकिन सबकुछ होने के बाद के माहौल पर नजर डालें तो लगेगा कि सरकार कहीं चूक गई।

जी हां! केवल लखीमपुर-खीरी की घटना के वक्त ही नहीं,कोरोना के पहली लहर में जब हजारों लोग हजार-हजार कीमी पैदल अपने घरों की ओर भाग रहे थे तब भी यूपी सरकार के फैसले झकझोरने वाले थे और सरकार के निशाने पर तब भी कांग्रेस थी और इस बार भी कांग्रेस रही।

हाथरस की घटना में भी सरकार की सारी घेराबंदी कांग्रेस को लेकर ही थी। कांग्रेस के प्रति सरकारी रवैया कांग्रेस को संजीवनी देता गया। इसे सिलसिलेवार समझना होगा लेकिन पहले लखीमपुर-खीरी प्रकरण पर यूपी सरकार के फैसलों पर गौर करें।

लखीमपुर-खीरी में एक उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रम में विरोध प्रदर्शन करने आए किसानों की किसी रसूखदार नेता की जीप से कुचल दिया जाता है जिसमें कई किसानों की मौत हो जाती है। इस घटना पर सरकार विरोधी गुस्सा स्वाभाविक है वह भी तब जब किसानों को कुचलकर मौत के घाट उतार देने वाला आरोपी सत्ता पक्ष का हो।

विपक्ष जब सरकार के खिलाफ ऐसे मौकों की तलाश में हो तो उसका उस ओर लपकना स्वाभाविक है। और हम इसे इस तर्क पर नहीं रोक सकते कि विपक्ष किसानों को भड़का रहा है या कांग्रेस लाशों पर राजनीति करती है।आज का सत्ता पक्ष जब विपक्ष में था तो उसे भी इसी तरह विरोध करते देखा गया।

आज मंहगाई पर खामोश इसी सत्ता पक्ष को लौकी,प्याज,टमाटर का माला पहनकर विरोध करते देखा गया,गैस सिलेंडर के साथ सड़कों पर धरना रत होते देखा गया।खैर!

हैरत है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार अफसर उन्हें विपक्ष की ताकत की झूठा फीडबैक देने से बाज नहीं आ रहे। वेशक 5–7 विधायकों वाली कांग्रेस यूपी में कमजोर है लेकिन उसने कम से कम तीन मौकों पर सरकार का दमदारी से विरोध कर अपनी मौजूदगी और ताकत का एहसास कराया है।

याद होगा कोरोना के पहली लहर में पैदल चल रहे महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो को उनके घरों तक पंहुचने के लिए कांग्रेस ने बसों की व्यवस्था की थी और यूपी सरकार से बसों का उपयोग करने का आग्रह इस शर्त पर भी किया था कि भाजपा चाहे तो अपने झंडे का इस्तेमाल कर लें।

याद होगा कि यूपी का परिवहन विभाग उन बसों को ऐसी जांच पड़ताल कर खारिज कर दिया मानों बसों को सहायता के लिए नहीं यूपी सरकार को बेचने के लिए लाया गया हो। जाहिर है यह फैसला मुख्यमंत्री का नहीं रहा होगा,उनके सलाहकार अफसरों ने ही ऐसा करने की सलाह दिए होंगे।

अरे भाई कांग्रेस द्वारा उपलब्ध कराई गई उन बसों का इस्तेमाल पैदल चल रहे प्रवासियों के लिए कर लिया गया होता तो सरकार का क्या बिगड़ जाता? सरकार की ओर से ऐसी ही दूसरी गलती हाथरस कांड के दौरान हुई जब कांग्रेस के नेताओं को वहां जाने रोका गया। प्रियंका गांधी से पुलिस अफसरों ने बदसलूकी तक की। और अब लखीमपुर-खीरी प्रकरण में वही सब दोहराया गया।

प्रियंका गांधी को बिना किसी कानूनी कारण के हिरासत में रखा गया,सीतापुर में पुलिस अफसरों ने फिर उनके साथ बदसलूकी की,सांसद दीपेंद्र हुड्डा के साथ धक्का मुक्की की।

यूपी में हर रोज खुशफहमी के बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं।कानून व्यवस्था बिल्कुल चुस्त दुरुस्त है, मुख्यमंत्री अपने हर भाषणों में कहते हैं लेकिन इसके इतर सच्चाई यह है कि मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में घूमने आए कानपुर के व्यवसाई मनीष गुप्ता की होटल में घुसकर पुलिस वाले ही मार डाला रहे हैं, जिसमें एक भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं होती।

यूपी से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अपने पूर्व के इतिहास को देखने की चुनौती सरेआम दे रहे। यहां कानून व्यवस्था के सरकारी दावे की धज्जियां हर रोज तार तार हो रही जो सरकार के कथनी और करनी का फर्क साफ बयां कर रहे हैं।

ऐसे तमाम वजह है जो योगी सरकार को न केवल कटघरे में खड़ी कर रही, 2022के विधानसभा चुनाव में उनकी राह भी मुश्किल कर रही है। और इसकी वजह निश्चित ही मुख्यमंत्री के सलाहकार अफसर हैं। सवाल उठता है कि लखीमपुर-खीरी जाने से दो दो मुख्यमंत्रियों को रोका जा रहा है,राहुल प्रियंका को हाउस अरेस्ट कर दिया जा रहा, सरकार खुद जा नहीं रही तो फिर पीड़ितों का दुखदर्द कौन बांटेगा।

आखिर मुख्यमंत्री ने वह सब किया जो एक सरकार को करनी चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री यदि वहां जाकर करते तो न केवल यह शानदार पहल होती,विपक्ष के पास खामोश रहने के अलावा कोई चारा न होता। आखिर मुख्यमंत्री के सलाहकार अफसर यह सलाह क्यों नहीं देते?

विधानसभा के चुनाव नजदीक है, हालतक कहीं न दिखने वाली कांग्रेस चहुंओर चर्चा में है। विधानसभा के चुनाव में बीजेपी से नाराज़ लोगों के समक्ष विकल्प एक बड़ा सवाल था। ऐसे लोग वोट भले न दें,वे सपा और बसपा को वोट देने बूथ पर न जाते।

बताने की जरूरत नहीं कि मध्यम वर्ग को मंहगाई और बेरोजगारी ने निचोड़ कर किनारे कर दिया। उन्हें न कोई इमदाद है न कोई सहूलियत। कांग्रेस के हालिया आंदोलनों ने मध्यम वर्ग को अपनी ओर आकर्षित किया है। हम जानते हैं कि बीजेपी से नाराज़ इन वोटरों के छिटक जाने से या कांग्रेस की ओर चले जाने से कांग्रेस की सरकार नहीं बनने वाली लेकिन बीजेपी का नुक़सान मुमकिन है।

यूपी के राजनीति का पैमाना समझना होगा जहां एक प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टी के विधायकों की संख्या छह प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टी से अधिक है। कहना न होगा एक,दो प्रतिशत वोट का इधर उधर होना बड़े बदलाव का कारण बन सकता है।

2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। एक सर्वेक्षण में युपी के 43 प्रतिशत वोटर बीजेपी के साथ हैं। दूसरे नंबर पर बसपा को बताया गया है और तीसरे नंबर पर सपा को।

सर्वेक्षण में बाकी दलों का कहीं अतापता नहीं है। इतने भारी समर्थन के दावे के बावजूद बीजेपी नेतृत्व का फरमान है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के सारे बड़े नेता चुनाव लड़ेंगे। कथित सर्वेक्षण का दावा यहीं सवालों के घेरे में आ जाता है। भारी समर्थन भी और यूपी के बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने का हुक्म भी?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com