Sunday - 27 July 2025 - 6:40 PM

बिहार में SIR का पहला चरण पूरा: 7.24 करोड़ मतदाता सूची में दर्ज, 65 लाख नाम हटाए गए, विपक्ष ने उठाए सवाल

जुबिली स्पेशल डेस्क

बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के पहले चरण का काम पूरा हो चुका है और चुनाव आयोग ने इसका अंतिम आंकड़ा जारी कर दिया है।

आयोग के अनुसार, राज्य में अब कुल 7.24 करोड़ मतदाता सूची में दर्ज हैं। वहीं 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, जिनमें मृतक, विस्थापित, विदेश में रहने वाले और स्थायी रूप से दूसरे राज्य में बस चुके लोग शामिल हैं।

कौन-कौन हुए बाहर?

  • चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को SIR की शुरुआत की थी, जिसके तहत मतदाता सूची का व्यापक रूप से पुनरीक्षण किया गया। आयोग ने बताया कि पहले चरण में:
  • 22 लाख लोग मृत पाए गए
  • 36 लाख लोग विस्थापित या स्थानांतरित पाए गए
  • 7 लाख मतदाता स्थायी रूप से दूसरे स्थानों पर चले गए

इस पूरी प्रक्रिया के बाद कुल 7.24 करोड़ लोगों ने अपने गणना प्रपत्र जमा किए, जो अब संशोधित मतदाता सूची का आधार बनेंगे।

SIR की प्रक्रिया और BLO-BLA की भूमिका

इस व्यापक अभियान में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) और बूथ लेवल एजेंट (BLA) ने घर-घर जाकर मतदाता जानकारी एकत्र की।

  • बीएलओ की संख्या 77,895
  • बीएलए की संख्या में 16% की बढ़ोतरी देखी गई, जो अब 1.60 लाख तक पहुंच गई है।
  • आयोग ने राज्य के CEO, सभी 38 जिलों के निर्वाचन अधिकारी, 243 EROs, लगभग 3,000 AEROs और सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को इस चरण की सफलता का श्रेय दिया है।

आगे क्या?

चुनाव आयोग ने बताया कि 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक ऐसे पात्र मतदाता, जिनके नाम गलती से सूची से हट गए हों, उन्हें ड्राफ्ट सूची में शामिल किया जा सकेगा। इस दौरान दोहरे पंजीकरण पाए जाने पर नाम केवल एक स्थान पर ही रखा जाएगा।

चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि बिहार में SIR की सफलता के बाद इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की योजना है।

विपक्ष का आरोप: “यह बैकडोर एनआरसी है”

SIR को लेकर बिहार की राजनीति गर्माई हुई है। राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को “षड्यंत्र” करार दिया है। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों को मतदाता सूची से बाहर करने की कोशिश है।

तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि,“यह एनडीए सरकार का वोटबैंक सुरक्षित रखने का तरीका है। लोगों के पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं, जिससे लाखों मतदाताओं के नाम कटने की आशंका है।”

विपक्ष ने इसे ‘बैकडोर एनआरसी’ की संज्ञा दी है और कहा कि 2001-2005 के बीच जन्म प्रमाणपत्र रखने वालों की संख्या बिहार में महज 2.8% है, जो इसे और अधिक चिंता का विषय बनाता है।

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