जुबिली स्पेशल डेस्क
अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर—दो ऐसे नाम जो भारतीय राजनीति में लगातार प्रयोग कर रहे हैं, अब लगभग एक जैसे रास्ते पर बढ़ते नज़र आ रहे हैं।
हालिया घटनाक्रम को देखें तो दोनों नेताओं की रणनीति और मंशा लगभग समान प्रतीत होती है, बस भूगोल अलग है। केजरीवाल जहां गुजरात में नये सिरे से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर बिहार की ज़मीन पर ‘जन सुराज’ की परिक्रमा में जुटे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टी को बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों और गुजरात की सभी सीटों पर बिना किसी गठबंधन के उतारने की तैयारी में हैं।
हालांकि केजरीवाल की ओर से अभी गुजरात को लेकर कोई औपचारिक रोडमैप सामने नहीं आया है, लेकिन उनके राजनीतिक मूवमेंट संकेत काफी साफ़ दे रहे हैं।
बीते उपचुनावों ने दी ऊर्जा
अपनी सरकार बनाने का दावा तो हर नई पार्टी करती है, लेकिन केजरीवाल और किशोर की हालिया उपलब्धियों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
केजरीवाल ने गुजरात के विसावदर उपचुनाव में आम आदमी पार्टी को जीत दिलाकर फिर से चर्चा में आ गए हैं। वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार के चार उपचुनावों में 10% वोट हासिल करके सभी को चौंकाया है।
गुजरात में केजरीवाल की वापसी
दिल्ली की हार और शराब नीति विवाद में जेल भेजे जाने के बाद केजरीवाल की राजनीतिक दिशा कुछ समय के लिए धुंधली हो गई थी।
किन, ठीक उसी तरह जैसे गूगल मैप गलत टर्न लेने पर नया रूट दिखाता है, केजरीवाल ने भी अपनी राजनीति को ‘रीरूट’ किया—गुजरात के रास्ते। विसावदर और पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट पर मिली जीत ने उनमें नया जोश भरा है।
हालांकि विसावदर कोई नई ज़मीन नहीं थी। यह वही सीट थी, जिसे आम आदमी पार्टी ने 2022 में भी जीता था। यानी इस उपचुनाव में उन्होंने अपनी पुरानी सीट ही बचाई है। फिर भी, ये जीत उन्हें कांग्रेस के मुकाबले एक बार फिर आगे खड़ा कर रही है।
अब जब गुजरात चुनाव में अभी दो साल बाकी हैं, तो सवाल है क्या अरविंद केजरीवाल को असल फायदा होगा या सिर्फ कांग्रेस के वोट काटने का ठप्पा लगेगा?
पिछली बार की तरह, इस बार भी संभावना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की ज़मीन पर ही सेंध लगाएगी, और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है—जैसे दिल्ली और पंजाब में हुआ।
बिहार में प्रशांत किशोर की सधी रणनीति
बिहार में प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान बेहद सुनियोजित और जमीनी स्तर पर केंद्रित है। लेकिन असली सवाल यह है कि किशोर किसका वोट बैंक तोड़ेंगे?
आरजेडी, कांग्रेस या फिर नीतीश कुमार की जेडीयू—सब उनके निशाने पर दिखते हैं।
कई राजनीतिक जानकारों को यह रणनीति 2020 के विधानसभा चुनाव की याद दिला रही है, जब चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़कर जेडीयू को तगड़ा नुकसान पहुंचाया था। इस बार वैसी ही भूमिका में प्रशांत किशोर दिख सकते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि उनका निशाना छुपा हुआ है, सीधा नहीं।
किशोर और चिराग पासवान के बीच हालिया मेल-मिलाप और एक-दूसरे की तारीफें यह संकेत दे रही हैं कि पर्दे के पीछे कोई सियासी रसायन पक रहा है।
गुजरात में केजरीवाल हों या बिहार में किशोर—दोनों नेताओं के पास सीटें जीतने की संभावना भले सीमित हो, लेकिन इनकी मौजूदगी चुनावी समीकरणों को बिगाड़ने के लिए काफी है।
केजरीवाल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाकर बीजेपी को अप्रत्यक्ष लाभ दिला सकते हैं, और किशोर—नीतीश, आरजेडी और कांग्रेस—तीनों की जमीन खिसका सकते हैं।
राजनीति में परिणाम अक्सर इरादों से नहीं, असर से तय होते हैं—और इन दोनों के असर को फिलहाल नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।