जुबिली न्यूज डेस्क
भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड अंतर्गत दामोदरपुर पंचायत का जवईनिया गांव गंगा नदी के प्रचंड कटाव का ताज़ा शिकार बन गया है। हर दिन गंगा की धारा गांव की ज़मीन को निगलती जा रही है। अब तक करीब 150 से 200 घर नदी में समा चुके हैं, और गांव के वार्ड संख्या 4 व 5 लगभग खाली हो चुके हैं। लोगों के आशियाने पलभर में बर्बाद हो रहे हैं और गांव का अस्तित्व खतरे में है।
गंगा का रौद्र रूप, हर दिन निगल रही बस्तियां
उत्तर दिशा से गांव को काट रही गंगा अब दक्षिण छोर तक पहुंच गई है। गांव का मध्य विद्यालय ही अंतिम संरचना बची है, बाकी सबकुछ नदी में विलीन हो चुका है। गांव के ऐतिहासिक मंदिरों और स्थलों—जैसे घुरूहु ब्रह्म बाबा मंदिर, गोवर्धन मंदिर और काली मंदिर—का अब सिर्फ नाम ही रह गया है।
प्रशासन के टेंट, पर राहत अधूरी
प्रशासन की ओर से टेंट और राहत शिविरों की व्यवस्था की गई है। लोग अब तटबंधों पर प्लास्टिक के टेंट में रह रहे हैं। वहां भोजन, पानी और जरूरी सामान तो हैं, लेकिन तेज़ बारिश और गर्मी में यह राहत नाकाफी साबित हो रही है। महिलाओं और बच्चों की हालत सबसे ज़्यादा दयनीय है।
“मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस घर चाहिए…”
जाखड़ चौधरी, जिनका घर उनके सामने गंगा में समा गया, फूट-फूट कर रोते नज़र आए। उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वे कहते हैं, “चार पीढ़ियों से यहां रहते आए हैं। 16 लाख लगाकर 11 कमरों का घर बनाया था, अब कुछ नहीं बचा।” अब वे तटबंध पर अपने परिवार के साथ आश्रय लिए हुए हैं।
सरकार से मुआवजा नहीं, पुनर्वास की मांग
गांववालों ने सरकार से कहा है कि मुआवजा नहीं, नया घर चाहिए। गांव के मुखिया प्रतिनिधि ने बताया कि ठोकर बांध अधूरा और खराब तरीके से बना था, जिसकी वजह से गांव का बड़ा हिस्सा कट गया। अब जो हिस्सा बचा है, उसे बचाने के लिए बोल्डर पिचिंग और मज़बूत ठोकर निर्माण की मांग की जा रही है।
2500 लोगों के सामने सवाल: “अब कहां जाएं?”
जवईनिया गांव में रहने वाले करीब 2500 लोग आज बिखर चुके हैं। न तो कोई स्थायी ठिकाना है, न भविष्य की योजना। हर आंख नम है, हर चेहरा मायूस। बच्चों की स्कूलिंग रुकी हुई है, महिलाओं की सुरक्षा और बुज़ुर्गों की सेहत खतरे में है।
प्रशासन की कोशिशें जारी, पर लोग कह रहे – काफी नहीं
जिला प्रशासन और बक्सर बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल की टीमें मौके पर कैंप कर रही हैं। शुक्रवार को फिर 11 और घर गंगा में समा गए। अधिकारी युद्ध स्तर पर राहत पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों का साफ कहना है कि यह समस्या हर साल लौटती है और अब स्थायी समाधान के बिना कोई राहत उन्हें संतोष नहीं दे सकती।
जवईनिया का भविष्य अधर में है। यह गांव अब सरकारी उपेक्षा और गंगा के कोप का प्रतीक बनता जा रहा है। सवाल ये है कि क्या सरकार इस संकट को सिर्फ “आपदा” मानकर हर साल अस्थायी राहत देती रहेगी या इस बार सच में कुछ बदलेगा?