जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना। चुनावी साल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक के बाद एक लोकलुभावन घोषणाएं कर राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी है। इन योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए अब सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से 16,000 करोड़ रुपये के कर्ज की मांग की है।
खास बात ये है कि ये कर्ज जुलाई से सितंबर यानी चुनाव से ठीक पहले के लिए मांगा गया है। सरकार का कहना है कि सभी योजनाएं राज्यहित में हैं और कर्ज कानून के दायरे में मांगा गया है। मगर विपक्ष का आरोप है कि नीतीश सरकार चुनाव से पहले ‘घी पी रही है’, और चुनाव के बाद इनका हाजमा खराब हो जाएगा। यानी योजनाएं अधूरी छूट जाएंगी।
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कर्ज की वजह – लोकलुभावन योजनाओं का पिटारा, कुछ बड़ी योजनाएं, जिनके लिए भारी राशि चाहिए:
- सामाजिक पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1100, मासिक खर्च ₹1200 करोड़+
- पंचायत प्रतिनिधियों और जीविका कर्मियों के वेतन में वृद्धि
- 94 लाख परिवारों को ₹2 लाख की सहायता
- 125 यूनिट बिजली मुफ्त योजना 1 अगस्त से लागू
- इसके अलावा बड़ी संख्या में सरकारी भर्तियों का ऐलान भी किया गया है।
विपक्ष का वार: चुनावी लालच या आर्थिक बोझ?
विपक्षी दलों का कहना है कि यह पूरा फंड वोट बटोरने के लिए है। सरकार चुनाव बाद इन योजनाओं को चालू नहीं रख पाएगी और राजकोषीय बोझ अगले मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बन जाएगा।
- 2025 के अंत तक बिहार का कुल कर्ज: ₹4.06 लाख करोड़
- प्रतिदिन ब्याज भुगतान: ₹63 करोड़
- 2025-26 में मूलधन और ब्याज मिलाकर चुकाना होगा ₹45,813 करोड़
क्या वाकई संकट है?
- सरकार के मुताबिक 2025-26 में राजस्व सरप्लस ₹8,831 करोड़ रहने की उम्मीद है।
- मगर राजकोषीय घाटा GSDP का 9.2% (जो तय 3% से तीन गुना) है।
- 2025-26 के अंत में बिहार पर बकाया कर्ज GSDP का 37% रहने का अनुमान है।
विशेषज्ञों की राय – निवेश बढ़ाएं, टैक्स बेस मजबूत करें, अर्थशास्त्रियों के मुताबिक:
- यदि कर्ज का इस्तेमाल उत्पादक योजनाओं में हो रहा है तो ठीक है।
- लेकिन बिना राजस्व स्रोत बढ़ाए, इतनी बड़ी राशि कर्ज पर आधारित योजनाओं में लगाना जोखिम भरा है।
- सरकार को स्मॉल इंडस्ट्री क्लस्टर्स, नई टैक्स पॉलिसी और निवेश आकर्षण पर ध्यान देना चाहिए।
नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले बड़ी योजनाओं की घोषणा कर दी है, लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए लिया जाने वाला 16 हजार करोड़ का कर्ज भविष्य में नई सरकार के लिए एक चुनौती बन सकता है। क्या यह विकास की नीति है या चुनावी रणनीति? इसका फैसला अब जनता और वक्त करेगा।