जुबिली स्पेशल डेस्क
पटना. बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान सामने आए तथाकथित “घुसपैठियों” को लेकर नई बहस छिड़ गई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, निर्वाचन आयोग के सूत्रों ने दावा किया है कि पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) को बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध लोग मिले हैं।
हालांकि आयोग ने अब तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, जिससे सवाल उठने लगे हैं कि यह खबर अगर गलत है तो उसका खंडन क्यों नहीं किया गया?
तेजस्वी यादव का तीखा रिएक्शन
इस खबर के सामने आने के बाद बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने नाराज़गी जताई और चुनाव आयोग के “सूत्रों” की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस तरह की खबरों के जरिए माहौल को राजनीतिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश हो रही है।
तेजस्वी का मानना है कि अगर आयोग के पास इस तरह के बड़े दावे करने की जानकारी है, तो उसे खुले तौर पर सामने आकर बात करनी चाहिए, न कि “सूत्रों के हवाले” से मीडिया रिपोर्ट्स प्लांट करनी चाहिए।
क्या चुनाव आयोग को नागरिकता जांचने का अधिकार है?
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, निर्वाचन आयोग को सीधे तौर पर नागरिकता जांचने का अधिकार नहीं है। यह जिम्मेदारी गृह मंत्रालय और नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत संबंधित प्राधिकरणों की होती है। लेकिन भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 और Representation of the People Act, 1950 के अनुसार आयोग को यह अधिकार है कि वह यह तय करे कि कोई मतदाता भारत का नागरिक है या नहीं।
इसी के तहत बीएलओ घर-घर जाकर गणना फॉर्म भरवा रहे हैं और मतदाता पहचान के लिए 11 अलग-अलग प्रकार के दस्तावेजों की मांग की जा रही है। इसमें जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षिक प्रमाण पत्र, बैंक दस्तावेज, जाति प्रमाण पत्र, स्थायी निवास प्रमाण पत्र आदि शामिल हैं।
क्या यह ‘बैकडोर एनआरसी’ है?
विपक्षी दलों—आरजेडी, कांग्रेस और एआईएमआईएम—का आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया एनआरसी को पीछे के रास्ते से लागू करने की कोशिश है। उनका मानना है कि इस बहाने गरीब, दलित और मुस्लिम समुदाय के लोगों को टारगेट किया जा रहा है।
हालांकि सरकार और चुनाव आयोग पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यह केवल मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने की कानूनी प्रक्रिया है, जिसका मकसद किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना नहीं है।
क्या नागरिकता जांच ECI के दायरे में है या नहीं?
यह एक संवैधानिक तकनीकी बहस है। हालांकि आयोग का मुख्य कार्य मतदाता सूची तैयार करना है, लेकिन अगर किसी व्यक्ति की नागरिकता को लेकर शक हो तो उसके दस्तावेजों की जांच करना और उसका नाम सूची से हटाना आयोग का अधिकार क्षेत्र बनता है।
संदिग्ध मतदाताओं को 1 से 30 अगस्त के बीच अपनी नागरिकता साबित करने का मौका दिया जाएगा, और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित की जाएगी। यह पूरा प्रोसेस Registration of Electors Rules, 1960 की धारा 21 और 22 के अंतर्गत वैध माना गया है।
ज़रूरी सवाल और संभावित समाधान
-
क्या भारत को एक सटीक जनसंख्या रजिस्टर नहीं होना चाहिए?
दुनिया के ज़्यादातर देशों में जनसंख्या का समुचित रिकॉर्ड रखा जाता है। भारत में भी ऐसी कोशिशें होनी चाहिए ताकि योजनाओं का सही लाभ वास्तविक नागरिकों को मिल सके। -
क्या ऐसे आरोपों से मतदाता प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित हो रही है?
अगर चुनाव आयोग इन मुद्दों पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं देगा, तो यह शक पैदा करेगा कि कहीं कोई राजनीतिक उद्देश्य तो नहीं जुड़ा है।
चुनाव आयोग पर निष्पक्षता बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है। अगर तेजस्वी यादव जैसे वरिष्ठ नेता सवाल उठा रहे हैं, तो उसका संवैधानिक और पारदर्शी जवाब दिया जाना आवश्यक है। अगर घुसपैठियों की पहचान हुई है, तो उस पर स्पष्ट और तथ्य आधारित सूचना जनता के सामने रखी जानी चाहिए, न कि सिर्फ “सूत्रों के हवाले” से खबरें प्लांट की जाएं।