जुबिली स्पेशल डेस्क
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 13 जुलाई 2025 को राज्यसभा के लिए चार विशिष्ट हस्तियों को नामांकित किया है। ये नामांकन संविधान के अनुच्छेद 80 के तहत किए गए हैं, जिसमें कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष योगदान देने वाले व्यक्तियों को उच्च सदन में मनोनीत किया जा सकता है।
इस सूची में पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, प्रख्यात वकील उज्ज्वल निकम, इतिहासकार डॉ. मीनाक्षी जैन, और समाजसेवी सदानंदन मास्टर शामिल हैं।
कौन हैं हर्षवर्धन श्रृंगला?
हर्ष श्रृंगला भारत की विदेश सेवा के अनुभवी अधिकारी रहे हैं। उन्होंने अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में भी कार्य किया है और बाद में देश के विदेश सचिव पद तक पहुंचे। अपने तीन दशकों के कूटनीतिक करियर में उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। सामरिक मामलों और विदेश नीति के विश्लेषण में उनकी गहरी समझ के लिए उन्हें जाना जाता है।
उज्ज्वल निकम: आतंकवाद के खिलाफ कानून की आवाज
उज्ज्वल निकम देश के उन गिने-चुने सरकारी वकीलों में से हैं, जो आतंकवाद और संगठित अपराध के मामलों में निर्णायक भूमिका निभा चुके हैं। उनका करियर 1991 में कल्याण बम ब्लास्ट केस से शुरू हुआ, और 1993 के मुंबई बम धमाकों के मुकदमे में उन्हें प्रमुख वकील के रूप में नियुक्त किया गया।
उनकी सबसे चर्चित भूमिका 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के दौरान रही, जहां उन्होंने पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब के खिलाफ सख्ती से पैरवी की। बाद में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि ‘कसाब द्वारा बिरयानी की मांग’ संबंधी अफवाह उन्होंने ही रणनीतिक रूप से फैलाई थी ताकि जनता में आक्रोश बना रहे।
इतिहास की गंभीर शोधकर्ता: डॉ. मीनाक्षी जैन
डॉ. मीनाक्षी जैन भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास की गहरी जानकार हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में इतिहास पढ़ा चुकी हैं और कई प्रमुख शोध संस्थानों से जुड़ी रही हैं। उनकी चर्चित पुस्तकों में ‘राम और अयोध्या’, ‘सती’, ‘राम के लिए युद्ध’ आदि शामिल हैं, जो ऐतिहासिक विमर्श को नई दृष्टि से प्रस्तुत करती हैं। वर्ष 2020 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
जमीनी बदलाव के प्रेरक: सदानंदन मास्टर
सदानंदन मास्टर दशकों से शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में सक्रिय हैं। विशेषकर दलितों, आदिवासियों और वंचित समुदायों के बीच उन्होंने शिक्षा की अलख जगाई है। वे एक समर्पित कार्यकर्ता की तरह जमीनी स्तर पर सामाजिक जागरूकता और सशक्तिकरण की दिशा में काम करते रहे हैं।
यह मनोनयन भारतीय लोकतंत्र की उस परंपरा को दर्शाता है, जिसमें विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों को उच्च सदन में शामिल कर देश के नीति निर्माण में उनकी भूमिका सुनिश्चित की जाती है।