Saturday - 12 July 2025 - 11:58 AM

नीतीश राज में अपराधी बेखौफ क्यों? सिर्फ 11 दिनों में 31 हत्याएं…

जुबिली स्पेशल डेस्क

पटना। बिहार में अपराध का ग्राफ थमने का नाम नहीं ले रहा। जुलाई के पहले 11 दिनों में राज्यभर में कम से कम 31 लोगों की हत्या हो चुकी है। राजधानी पटना से लेकर भागलपुर, पूर्णिया, नवादा, मधुबनी और वैशाली जैसे जिलों में हत्याओं की एक के बाद एक घटनाएं सामने आई हैं। हालात इतने गंभीर हैं कि आम जनता और व्यापारी वर्ग खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा है।

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4 जुलाई से शुरू हुआ मर्डर का सिलसिला, अब तक थमा नहीं

  • 4 जुलाई को पटना के जाने-माने कारोबारी गोपाल खेमका की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • इसके बाद बालू कारोबारी रमाकांत यादव, किराना दुकानदार, और कई निर्दोष ग्रामीण हत्याओं के शिकार बन चुके हैं।

 जुलाई की 11 हत्याओं पर एक नजर

  • 10 जुलाई – पटना: बालू कारोबारी रमाकांत यादव की गोली मारकर हत्या।
  • 10 जुलाई – जहानाबाद: खेत में सोए बुजुर्ग की गोली मारकर हत्या।
  • 10 जुलाई – समस्तीपुर: वृद्ध महिला की पीट-पीट कर हत्या।
  • 8 जुलाई – भागलपुर: मोहम्मद सद्दाम की चाकू से हत्या।
  • 8 जुलाई – भागलपुर: साजन कुमार की गोली मारकर हत्या।
  • 8 जुलाई – नवादा: बेटे ने तलवार से पिता को मार डाला।
  • 7 जुलाई – मधुबनी: किसान बद्री यादव की गोली मारकर हत्या।
  • 7 जुलाई – वैशाली: सुरेंद्र झा की बाइक सवार बदमाशों ने हत्या की।
  • 6 जुलाई – दानापुर: स्कूल संचालक अजीत कुमार की हत्या।
  • 6 जुलाई – पूर्णिया: एक ही परिवार के 5 लोगों की हत्या।
  • 6 जुलाई – नालंदा: जमीनी विवाद में दो लोगों की हत्या।

धारदार हथियार, गोली और तलवार – हर तरीके से हो रही हत्याएं

हत्या के मामलों में हथियारों की कोई कमी नहीं — कहीं गोली से मर्डर, कहीं तलवार या चाकू से हत्या।
पूर्णिया, सिवान, बेतिया, मुजफ्फरपुर, मधेपुरा और किशनपुर जैसे इलाकों में तो एक ही दिन में दो से तीन लोगों की हत्याएं हुईं।

चश्मदीद, रंजिश और लचर कानून-व्यवस्था

इन वारदातों के पीछे पारिवारिक रंजिश, पुराने विवाद, जमीनी झगड़े, लूट और रंगदारी की घटनाएं सामने आई हैं। लेकिन सवाल उठता है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की हालत आखिर इतनी बदहाल क्यों हो गई है?

विपक्ष का सवाल – ‘सुशासन’ सिर्फ नारे तक?

बढ़ती हत्याओं और बेलगाम अपराध पर विपक्ष लगातार सरकार को घेर रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यह मुद्दा आगामी चुनावों में नीतीश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।

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