जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली | बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर जारी विवाद अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच चुका है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग को तो राहत दी, लेकिन उसकी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल भी उठाए।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ इस मुद्दे पर दायर 10 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग जल्दबाजी और भेदभावपूर्ण तरीके से मतदाता सूची को अपडेट कर रहा है, जिससे करोड़ों नागरिकों के नाम हटाए जाने का खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा:“मतदाता सूची में गैर-नागरिकों के नाम न रहें, यह सुनिश्चित करना जरूरी है। लेकिन अगर आप यह प्रक्रिया चुनाव से कुछ ही महीने पहले शुरू करते हैं, तो प्रक्रिया की मंशा पर सवाल उठते हैं।”
साथ ही कोर्ट ने कहा कि SIR प्रक्रिया एक बार पूरी हो गई और चुनाव घोषित हो गया, तो कोई भी अदालत उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी, इसलिए यह और भी संवेदनशील मुद्दा है।
मुद्दा क्या है?
निर्वाचन आयोग ने 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का आदेश जारी किया। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इसमें:
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7.9 करोड़ मतदाता प्रभावित हो सकते हैं
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आधार कार्ड और वोटर ID को पहचान दस्तावेज के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा
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मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डाला जा रहा है
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जज, पत्रकार और अन्य वर्गों को वैरिफिकेशन से बाहर रखा गया
याचिकाकर्ताओं के बड़े तर्क
गोपाल शंकरनारायणन (वरिष्ठ अधिवक्ता)“RP Act की धारा 21(3) में आयोग को पुनरीक्षण का अधिकार है, लेकिन प्रक्रिया समावेशी और निष्पक्ष होनी चाहिए। आधार और वोटर ID को पहचान से हटाना अधिनियम की भावना के खिलाफ है।”उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आधार एक सरल और प्रभावी पहचान प्रणाली है, जिसे हटाने का कोई तर्क नहीं बनता।
कौन-कौन याचिकाकर्ता हैं?
इस मामले में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। प्रमुख याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं:
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ADR (Association for Democratic Reforms)
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मनोज झा (RJD सांसद)
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महुआ मोइत्रा (TMC सांसद)
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केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस)
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सुप्रिया सुले (NCP)
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डी राजा (CPI)
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हरिंदर सिंह मलिक (SP)
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अरविंद सावंत (Shiv Sena – UBT)
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सरफराज अहमद (JMM)
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दीपांकर भट्टाचार्य (CPI-ML)
इन सभी नेताओं ने चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
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चुनाव आयोग की सफाई
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, केके वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह आयोग की ओर से पेश हुए। द्विवेदी ने कहा:“वोट देने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए उसे पहचान पत्र के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।”उन्होंने यह भी कहा कि आयोग 11 प्रकार के दस्तावेज स्वीकार कर रहा है।
कोर्ट की तीखी टिप्पणियाँ
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जस्टिस धूलिया: “अगर एक बार लिस्ट बन गई, तो कोर्ट कुछ नहीं कर सकेगा। सावधानी अब जरूरी है।”
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जस्टिस बागची: “RP Act के तहत आयोग को प्रक्रिया तय करने का अधिकार है, लेकिन पहचान के दस्तावेजों में से आधार को हटाना न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकता है।”