
अविनाश भदौरिया
हाथरस गैंगरेप कांड के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। सवाल यह है कि अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त तेवर दिखाने वाले सीएम योगी आखिर हर बार कहां चूक कर जाते हैं कि विपक्ष के सामने उन्हें बैकफुट पर जाना पड़ जाता है।
हाथरस की घटना कोई पहली घटना नहीं है जब सरकार को जबर्दस्त बदनामी झेलनी पड़ रही है और लोगों में आक्रोश चरम पर है। इससे पहले भी बुलंदशहर की सुदीक्षा भाटी छेड़छाड़ मामले में, कानपुर के संजीत यादव अपहरण मामले में, महोबा के क्रेशर व्यापारी की मौत के मामले में और बिकरू मामले में भी योगी सरकार की भद्द पिट चुकी है।
यह सभी घटनाएं तो अलग-अलग तरह की थी लेकिन इनमे कुछ बाते हैं जो कॉमन हैं। जैसे स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की लापरवाही और कार्रवाई में हीलाहवाली, ऊपर बैठे अधिकारियों की सुस्ती और दमनात्मक नीति। मुख्यमंत्री का घटनाओं पर देर से एक्टिव होना और अपने ईर्द-गिर्द के अधिकारियों के आलावा किसी और माध्यम से सूचनाओं को एकत्रित न करने का प्रयास।
कुलमिलाकर देखा जाए तो नीचे से लेकर ऊपर तक सभी की गलतियों का परिणाम है कि इन घटनाओं पर विपक्ष को राजनीति करने का अवसर मिला और मामला यहां तक बढ़ा कि कहीं न कहीं अब योगी आदित्यनाथ की मंशा और छवि पर लोगों को शंका होने लगी है।
इतना सब होने के बावजूद एकबात किसी भी राजनीतिक पंडित या बुद्धिजीवी को समझ नहीं आ रही कि आखिर जब बराबर मीडिया और सोशल मीडिया में ये चर्चा हो रही है कि सीएम योगी को आगामी विधानसभा चुनाव में वापस सत्ता में आना है तो चाटुकार और असफल अधिकारियों के चंगुल से बाहर निकलकर सीधे जनता के बीच संवाद बनाने के प्रयास करने चाहिए तो भी योगी आदित्यनाथ अपने कार्यशैली में बदलाव क्यों नहीं कर रहे ?
यह भी पढ़ें : पहले चरण के चुनाव में RJD और JDU से लड़ेंगे यह प्रत्याशी
अगर सीएम योगी ईमानदार हैं और न्यायप्रिय हैं तो फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि हाथरस के डीएम पर अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ आखिर कानून व्यवस्था की समस्या हो या फिर समाजिक सद्भाव के बिगडऩे की समस्या हो तो इसकी जवाबदेही डीएम की होती है फिर उन पर एक्शन क्यों नहीं होता ? यही हाल महोबा की घटना का भी है वहां भी व्यापारी इंद्रकांत त्रिपाठी के हत्यारों को अब तक बचाने की कोशिश की जा रही है।
यह भी पढ़ें : बिहार के चुनाव में कितना कारगर साबित होगा दलित कार्ड !
एक और बात है जब भी कोई मामला तूल पकड़ने लगता है और विपक्ष सक्रीय होने लगता है तो सरकार उनके खिलाफ भी अटैकिंग मूड में आ जाती है। आरोप लगाया जाता है कि विपक्ष राजनीति कर रहा है। अरे भाई विपक्ष को मौका मिलेगा तो वह राजनीति क्यों नहीं करेगा। सरकार विपक्ष को राजनीति करने का मौका ही क्यों देती है और क्या सत्ताधारी पार्टी को राजनीति नहीं आती।
जब मामला राजनीतिक हो तो इनके संगठन के लोग आगे क्यों नहीं आते या फिर भेजे नहीं जाते। राजनीतिक मसलो के हल के लिए प्रशासन को आगे किया जाएगा तो हश्र जाहिर सी बात है यही होगा जो हो रहा है।
क्या योगी आदित्यनाथ को यह मालूम नहीं है कि चंद अधिकारियों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर अधिकारी और जनता के बीच कैसे संबंध होते हैं ? जबकि एक नेता की जनता के बीच पकड़ इन अधिकारियों की तुलना में काफी अच्छी होती है फिर वहां पार्टी के नेताओं को न भेजकर हैंडलिंग अधिकारियों को क्यों दी जाती है ?
वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह का कहना है कि, मुख्यमंत्री को सब मालूम है लेकिन वह अपने जिद्दी स्वभाव के कारण इस बात को मानने को तैयार नहीं है, उन्हें अधिकारियों पर जरुरत से ज्यादा भरोसा है। उन्होंने यह मान रखा है कि अधिकारी नेताओं की तुलना में ज्यादा अच्छे हैं।
उन्होंने राजनीतिक मशीनरी को पूरी तरह निष्क्रीय कर रखा है। वो जो ठान लेते हैं फिर किसी की मानते नहीं। वो अपना रुख नहीं बदलते उन्हें लगता है कि इससे उनकी बेइज्जती हो जाएगी। अधिकारी निरंकुश हो गए हैं। अधिकारियों को लगता है की उन पर कोई एक्शन नहीं होगा।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र कुमार ने बताया कि, प्रॉपर वे में पुलिसिंग नहीं है। सीएम उन अधिकारियों पर भरोसा कर रहे हैं। जो फ्लॉप हो चुके हैं।
सबसे बड़े लापरवाह अधिकारी एडीजी लॉ एंड आर्डर हैं जो हर घटना पर नियम विरुद्ध कार्रवाई करते हैं। यहां बस पंचायत होती रहती है और संवेदनशील मामलों को लोकल के अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। हाथरस में डीएम या लोकल प्रशासन ने रात में बॉडी इसलिए जलाई होगी क्योंकि लखनऊ से किसी अधिकारी ने कहा होगा।
विपक्ष पर सरकर आरोप लगा रही हैं कि दंगा भड़काने की साजिश की जबकि अधिकारी खुद ही उल्टे-सीधे बयान दे कर माहौल ख़राब कर रहे हैं। मुख्यमंत्री फ्लॉप हो चुके पुलिस के अधिकारियों के माध्यम से आतंक का माहौल बना के लोगों को डरा धमका के काम करना चाहते हैं।
हाथरस में तो इतने हंगामे के बाद कुछ अधिकारियों को निलंबित किया गया लेकिन बलरामपुर में भी कोई खास कार्रवाई नहीं हुई। वहां कोई अधिकारी निलंबित क्यों नहीं किया। क्या एक्शन लिया गया अब तक ?
यह भी पढ़ें : तो यूपी में दंगे फ़ैलाने की रची जा रही थी साजिश
यह भी पढ़ें : हाथरस के बहाने दल पहुंचे राजनीति चमकाने
 Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
				
 
						
					 
						
					 
						
					 
						
					 
						
					