Friday - 5 January 2024 - 9:42 PM

‘मानवाधिकार के वकील उस समय कहां थे जब मेरे अधिकार छीने गए?

न्यूज डेस्क

कश्मीर की बात होती है तो कश्मीरी पंडितों का जिक्र होना लाजिमी है। जब जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किया गया था तो सबसे ज्यादा ये लोग खुश हुए थे। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही वह अपने घर लौट जाएंगे। आतंकवादियों ने उन्हें कितनी पीड़ा दी है, इसको वही महसूस कर पायेगा जिसने यह त्रासदी झेली है।

अमेरिकी संसद में गुरुवार को एक बार फिर कश्मीरी पंडितों का दर्द सामने आया। संसद में जम्मू-कश्मीर के मानवाधिकार हालात पर सुनवाई हुई, जिसमें स्तंभकार (कॉलमनिस्ट) सुनंदा वशिष्ठ ने भारत का पक्ष रखा।

वशिष्ठ ने कहा कि कश्मीर तब से इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसी आतंकी संगठन की क्रूरता का सामना कर रहा है, जब पश्चिमी देशों को आतंक के बारे में मालूम नहीं था। उन्होंने कहा कि भारत की लोकतांत्रिक साख काफी ऊंची है। हमने पंजाब और पूर्वोत्तर राज्यों में आतंक को हराया है।

स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ 14 नवंबर को वाशिंगटन में टॉम लैंटोस एचआर कमीशन द्वारा आयोजित मानवाधिकार पर कांग्रेस की सुनवाई में कहा, ’30 साल पहले हमने आईएस के स्तर वाला डर और क्रूरता देखी है, तब पश्चिमी देशों को आतंकवादी संगठन आईएस की क्रूरता के बारे में पता तक नहीं था। मुझे खुशी है कि ये सुनवाई आज यहां हो रही है क्योंकि मेरे परिवार और मेरे जैसे हर व्यक्ति ने अपने घरों, हमारी आजीविका को खो दिया है। तब दुनिया ने उस पर चुप्पी साधी हुई थी।’

सुनवाई कर रहे दल के सदस्यों से सुनंदा ने पूछा, ‘ मानवाधिकार के वकील उस समय कहां थे जब मेरे अधिकार छीने गए? 19 जनवरी, 1990 की रात को वह कहां थे, जब कश्मीर की सभी मस्जिदों से आवाजें लगाई जा रही थीं कि वे कश्मीर में हिंदू महिला चाहते हैं लेकिन हिंदू पुरुषों को नहीं? मानवता के उद्धारक उस समय कहां थे जब मेरी मां और मुझे मारने के लिए मेरे कमजोर बूढ़े दादाजी रसोई के चाकू और एक पुरानी जंग लगी कुल्हाड़ी के साथ खड़े थे ताकि हमें उस बदतर परिस्थिति से बचा सकें जो हमारा इंतजार कर रही थी?’

सुनंदा ने कहा, ‘हमारे लोगों को आतंकियों ने तीन विकल्प दिए थे- भाग जाओ, धर्मांतरण कर लो या फिर उसी दिन उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा। लगभग 400,000 कश्मीरी हिंदू उस डरावनी रात को घाटी से भागने पर मजबूर हो गए थे। जिन्हें नहीं मारा गया वह जिंदा रहे। आज 30 साल बाद भी कश्मीर स्थित मेरे घर में मेरा स्वागत नहीं किया जाता।’

वशिष्ठ ने कहा, ‘ घाटी में मुझे मेरे धर्म का पालन करने की इजाजत नहीं है। कश्मीर स्थित मेरे घर पर किसी और का अवैध कब्जा है। यही हाल मेरे समुदाय के अन्य लोगों के साथ हुआ। जो लोग घर छोड़कर नहीं गए उन्हें या तो मार दिया गया या लूट लिया गया। भारत ने कश्मीर पर कभी कब्जा नहीं किया। यह भारत का ही अंग था और रहेगा। कश्मीर के बिना भारत नहीं और भारत के बिना कश्मीर नहीं।’

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