Tuesday - 16 January 2024 - 3:21 AM

‘खतरा तब पैदा होता है जब आजादी को दबाया जाता है’

न्यूज डेस्क

‘मानवता के समग्र विकास के लिए कला को स्वतंत्र रूप से सभी दिशाओं में विस्तारित करने की आवश्यक है। खतरा तब पैदा होता है जब आजादी को दबाया जाता है, चाहे वह राज्य के द्वारा हो, लोगों के द्वारा हो या खुद कला के द्वारा हो।’

यह बातें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक अधिक समावेशी समाज बनाने के लिए कला की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा। उन्होंने कहा, ‘विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हम लोगों को उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि, ‘स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं।’

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इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार इमेजिनिंग फ्रीडम थ्रू आर्ट पर मुंबई में लिटरेचर लाइव इंडिपेंडेंस डे में व्याख्यान देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मेरी समझ से सबसे अधिक परेशानी की बात राज्य द्वारा कला का दमन है। चाहे वह बैंडिट क्वीन हो, चाहे नाथूराम गोडसे , चाहे पद्मावत या दो महीने पहले पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा भोभिश्योतिर भूत पर लगाया गया प्रतिबंध हो, क्योंकि उसमें राजनेताओं के भूत का मजाक उड़ाया गया था। राजनेता इस बात से बहुत परेशान थे कि यहां एक निर्देशक है, जिसके पास राजनीति में मौजूद भूतों के बारे में बात करने की धृष्टता थी।’

उन्होंने कहा, ‘हमें नहीं भूलना चाहिए कि सभी कलाएं राजनीतिक होती हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कला केवल रंगों, शब्दों या संगीत का गहना बनकर रह जाता।’ 

कला समुदाय, कानून और थियेटर के प्रतिष्ठित लोगों से भरे कमरे में करीब 50 मिनट तक दिए अपने भाषण में उन्होंने कहा, ‘उत्पीड़ित समुदायों के जीवित अनुभव को अक्सर मुख्यधारा की कला से बाहर रखा जाता है। कुछ खास समुदायों को आवाज देने से इनकार करके कला खुद उत्पीडि़त बन जाएगी और एक दमनकारी संस्कृति विकसित कर सकती है।’

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सितंबर 2018 में आपसी सहमति वाले वयस्कों के बीच समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने वाला महत्वपूर्ण फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों में से एक जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब एलजीबीटीक्यू अधिकारों के मुद्दे पर हमारे पहले के फैसले को चुनौती दी जा रही थी, तो वकीलों में से एक ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट के पहले के दौर में, पीठ से आए सवालों में से एक था, ‘क्या आपने कभी किसी समलैंगिक से मुलाकात की है?’  हमें कई दशकों के बाद एक गलत को सही करना था।’

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