जुबिली स्पेशल डेस्क
भारतीय राजनीति के लिए ये साल काफी अहम है क्योंकि कई राज्यों में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस से लेकर बीजेपी के लिए राज्यों के चुनाव किसी सेमीफाइनल से कम नहीं है।
दरअसल अगले साल लोकसभा चुनाव भी होना है। इस वजह से कांग्रेस के लिए राज्यों का चुनाव काफी अहम होने जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की है। इस वजह से लग रहा है कि कांग्रेस फिर से वापसी कर सकती है।
भले ही हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी में घमासान मचा हो लेकिन कर्नाटक में उसकी जीत ने एक बार फिर उसको चुनावी दंगल में फिर से लाकर खड़ा कर दिया है।

कर्नाटक में नई सरकार बनते ही राहुल गांधी ने बीजेपी पर एक बार फिर तगड़ा वार किया। राहुल गांधी मंच से-कांग्रेस गरीबों, पिछड़ों के साथ खड़ी हुई। हमारे साथ सच्चाई थी, बीजेपी के पास ताकत थी। लेकिन कर्नाटक की जनता ने नफरत को हरा दिया। नफरत के बाजार में कर्नाटक ने मुहब्बत की दुकान खोली है। कांग्रेस ने जो 5 वादे किए हैं। हम झूठे वादे नहीं करते। एक दो घंटे में कर्नाटक सरकार की पहली कैबिनेट बैठक होगी।
उस मीटिंग में पांचों वादे कानून बन जाएंगे। हम आपको साफ सुथरी, भ्रष्टाचार मुफ्त सरकार देंगे। अगर देखा जाये तो अरसे बाद कांग्रेस पार्टी में इतनी बड़ी खुशी आई लेकिन कांग्रेस को ये मालूम है आने वाला लोकसभा चुनाव उसके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। अभी तक विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ लग रहा था।
इसका बड़ा कारण था कि कांग्रेस को लगातार मिल रही हार। इतना ही नहीं केजरीवाल, केसीआर जैसे बड़े नेताओं ने भी कांग्रेस बगैर चलने की रणनीति पर काम किया है।
हालांकि कांग्रेस ने उन दलों से दूरियां बना डाली जिसके उसको नुकसान उठाना पड़ा रहा है। आम आदमी पार्टी ने पंजाब में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की जबकि गुजरात, गोवा और अन्य राज्यों में ये पार्टी कांग्रेस का वोट बैंक काटती हुई नजर आ रही है।
कर्नाटक में नई सरकार के गठन के मौके पर इन दलों के नेताओं को शपथ ग्रहण में नहीं बुलाया गया। नीतीश कुमार और शरद पवार जैसे बड़े नेता भी अब मान रहे हैं कि कांग्रेस के बगैर मोदी सरकार को हटाया नहीं जा सकता है। इस वजह से नीतीश कुमार लगातार विपक्ष को एक जुट करने के लिए मेहनत कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आगे बढक़र नेतृत्व करना चाहती है लेकिन उसे क्षेत्रिय दलों के साथ तालमेल बैठाना होगा। कई राज्य ऐसे हैं जहां पर कांग्रेस कमजोर है लेकिन क्षेत्रिय दलों के सहारे बीजेपी को रोका जा सकता है।
क्षेत्रिय दल भी चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ रहे लेकिन सीटों के बटवारे के वक्त उनको उचित सम्मान मिले तभी वो कांग्रेस का नेतृत्व कबूल करेंगे। कुल मिलाकर कर्नाटक की जीत से कांग्रेस एक बार फिर चुनावी मैदान में मजबूत तरीके से वापसी करती हुई नजर आ रही है।
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