यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल को सुपुर्द-ए-खाक करने के पीछे जेन जी आंदोलन नहीं हो सकता। सुडान गुरूंग जिसे इस आंदोलन का सूत्रधार कहा जाता है, आखिर वे भी क्यों चाहेंगे कि उनका नेपाल भस्म हो जाय। वे हामी नेपाल नाम से एक एनजीओ के कर्ता-धर्ता हैं। हामी नेपाल मतलब हमारा नेपाल! नवनियुक्त प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने इस बात पर प्रतिबद्धता जताई है कि नेपाल को आग के हवाले करने वालों की शिनाख्त कर उनके खिलाफ कार्रवाई होगी लेकिन शिनाख्त शायद इतना आसान न हो। नेपाल के भीतर चर्चा है कि इस सुनियोजित आगजनी के पीछे नेपाल पर अधिपत्य जमाने की ताक में बैठा कोई विदेशी षणयंत्र भी हो सकता और सत्ता में वापसी को लेकर छटपटा रहा नेपाल के अंदर का कोई राजनीतिक संगठन भी हो सकता है।
मालूम हो कि आठ सितंबर को नेपाल की राजधानी काठमांडू में जेन जी समूह ने शोसल मीडिया पर बैन के खिलाफ शांत प्रिय ढंग से आंदोलन की अनुमति ले रखी थी। सोशल मीडिया पर बैन ओली का अपना फैसला नहीं था। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुपालन के तहत ऐसा किया था जो उनकी सरकार के लिए भस्मासुर बन गया।
आंदोलन जिस तेजी से अग्नि को समर्पित होता गया,यह चकित करने वाला था। इसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस को फायरिंग का सहारा लेना पड़ा जिसमें करीब 72 लोगों की मौत हुई है और सैकड़ों घायल हैं। यहां एक सवाल उपजना स्वाभाविक है कि यदि जेन जी आंदोलन में बाहरी तत्व घुस आए और काठमांडू को आग के हवाले कर दिया तो पुलिस की फायरिंग में क्या एक भी ऐसा शख्स हताहत नहीं हुआ जो बाहरी हो? सैकड़ों घायलों में भी ऐसे किसी एक का भी शिनाख्त नहीं हो पाया? यह बड़ा सवाल है और यहीं से असल उपद्रवियों की शिनाख्त भी संभव है।
बहरहाल यह सुशीला कार्की के नेतृत्व वाली नई सरकार को सोचना है कि वह क्या करे? अभी चिंता इस बात पर की जानी चाहिए कि यहां लोकतंत्र बकइंया भी ठीक से नहीं सरक पा रहा है कि इस नन्हे राष्ट्र पर किसकी नजर लग गई? देखा जाए तो इस इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि राजशाही खत्म होने के बाद भी नेपाल के लोगों को परिवर्तन की अनुभूति नहीं हो पाई। इसके इतर नेताओं ने वे चाहे जिस दल के हों,अदल बदल कर सत्ता की मलाई जरूर काटते रहे। उनकी औलादें विदेशों में ऐसो आराम की जिंदगी जी रहे हैं, यहां आम आदमी के बच्चे छोटी-छोटी चीजों के लिए तरसते रहे। विपक्ष हो या सत्ता दल लूट खसोट और घूसखोरी में लिप्त रहे। इस दो तरफा जीवन शैली को लेकर युवाओं में गुस्सा तो था ही।
दो दिनों के हिंसात्मक आंदोलन और आगजनी के बाद ओली सरकार धराशाई हो गई, इसके बाद आंदोलन थम जाना चाहिए था लेकिन इसके बाद जिस तरह नेपाल को तहस-नहस करने का क्रम जारी था वह विस्मयकारी था।
राजधानी काठमांडू जिसे काष्ठमंडप भी कहा जाता था,अब स्वाहा हो चुका है। मात्र 48 घंटे की अराजकता में नेपाल बर्बाद हो गया। सरकार और विपक्ष भाग खड़े हुए। मंत्रियों को अपनी जान बचाने को इधर उधर भागना पड़ा। उन्हे घर के पिछवाड़े,नदी नालों में कूद कर भागते हुए देखा गया। आंदोलनकारियों के पकड़ में जो आया उसकी जमकर कुटाई हुई। युवाओं में सरकार हो या विपक्ष सभी नेताओं के प्रति ऐसा गुस्सा था कि चाहे संसद भवन हो या राष्ट्र पति कार्यालय, सिंह दरबार हो या रेबन्यू भवन सब में आग लगा दी गई। सारे जरूरी दस्तावेज जलकर स्वाहा हो गए। जेलों से भारी संख्या में कैदी फरार हो गए। पूर्व प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री, दर्जनों मंत्रियों के आवास फूंक दिए गए। भारत नेपाल संबंधों को नया आयाम देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री, जिन्हें नेपाल का गांधी भी कहा जाता है, स्वर्गीय गिरिजा प्रसाद कोइराला की प्रतिमा पर वीरगंज में हथौड़ा चलाते हुए देखा गया।
आगजनी और तोड़ फोड़ में नेपाल को अरबों खरबों का नुकसान हुआ है। नेपाल को फिर से बनाने में इतनी बड़ी रकम जुटाना आसान नहीं है। इसके लिए कौन कौन देश आगे आता है,यह काफी कुछ नई सरकार के विदेश नीति पर निर्भर करेगा।टूरिस्ट जो नेपाल के आर्थिक स्रोत का बड़ा जरिया है,उसे स्थापित करना भी बड़ी चुनौती है।नेपाल यूं तो आंदोलनों का देश है। सबसे भयावह आंदोलन लोकतंत्र बहाली को लेकर था, जिसे जनयूद्ध के नाम से भी जाना जाता है, उसमें जनहानि खूब हुई लेकिन सरकारी इमारतों को क्षति नहीं पहुंचाई गई थी। बीच बीच में और भी तमाम आंदोलन हुए लेकिन वे इतना भयाक्रांत नहीं रहे। इस बार के आंदोलन की भयावहता देख भारत सहित अन्य देशों के टूरिस्टों का रुख नेपाल की ओर होने में वक्त लगेगा। काठमांडू में भारतीय पत्रकारों को चुन चुन कर मारा गया यह जानते हुए कि जले भुने नेपाल के पुनर्निर्माण में भारत ही मुख्य सहायक होगा।