Saturday - 13 January 2024 - 4:42 PM

किसने करायी भारतीय पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी

न्यूज डेस्क

फेसबुक के स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। व्हाट्सएप ने माना है कि भारत में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निगरानी के लिए इजरायल के स्पायवेयर पेगासस का उपयोग किया गया।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, यह खुलासा सैन फ्रांसिस्कों में एक अमेरिकी संघीय अदालत में 29 अक्टूबर को दायर एक मुकदमे के बाद हुआ। इसमें व्हाट्सएप ने आरोप लगाया कि इजरायली एनएसओ समूह ने पेगासस से करीब 1,400 व्हाट्सएप उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाया।

हालांकि, भारत में किसकी निगरानी की गई और कितने लोगों का किया गया, इसका खुलाया करने से व्हाट्सएप ने इनकार कर दिया। वहीं, व्हाट्सएप के प्रवक्ता ने बताया कि व्हाट्सएप को निशाना बनाए गए लोगों की जानकारी थी। व्हाट्सएप ने उनमें से प्रत्येक से संपर्क किया था।

प्रवक्ता ने कहा, ‘भारतीय पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निगरानी की गई। मैं उनकी पहचान और सटीक संख्या का खुलासा नहीं कर सकता। मैं कह सकता हूं कि यह एक बहुत ही छोटी संख्या नहीं है।’

हालांकि ऐसा पता चला है कि व्हाट्सएप द्वारा भारत में कम से कम दो दर्जन शिक्षाविदों, वकीलों, दलित कार्यकर्ताओं और पत्रकारों से संपर्क किया गया और उन्हें सचेत किया गया कि मई 2019 तक दो सप्ताह की अवधि के लिए उनके फोन अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर की निगरानी में थे।

व्हाट्सएप ने एनएसओ समूह और क्यू साइबर टेक्नोलॉजीज के खिलाफ मुकदमे में आरोप लगाया कि कंपनियों ने यूएस और कैलिफोर्निया कानूनों के साथ-साथ व्हाट्सएप की सेवा की शर्तों का उल्लंघन किया है, जो इस प्रकार के दुरुपयोग को रोकते हैं। यह दावा किया गया कि एक मिस्ड कॉल देकर निशाना बनाए गए लोगों के स्मार्टफोन में सेंध लगाई गई।

व्हाट्सएप ने कहा है कि, ‘हम मानते हैं कि इस हमले ने नागरिक समाज के कम से कम 100 सदस्यों को निशाना बनाया जो कि दुव्र्यवहार का एक अचूक तरीका है। अधिक पीडि़तों के सामने आने पर यह संख्या बढ़ सकती है।’

व्हाट्सएप के सूत्रों ने कहा कि उनके प्लेटफॉर्म पर आने और जाने वाले मैसेज को गोपनीय और सुरक्षित किया जाता है। समस्या तब शुरू होती है जब कोई सॉफ्टवेयर डिवाइस से समझौता कर लेता है और अपनी गोपनीयता को कमजोर कर देता है। इससे उपयोगकर्ता की स्वतंत्रता को तो खतरा होता ही है, साथ ही की बार लोगों की जान जाने का भी खतरा रहता है।

वहीं एनएसओ समूह ने अपने एक बयान में कहा, ‘हम पूरे दावे के साथ आज के आरोपों को खारिज करते हैं और पूरी ताकत से उनका मुकाबला करेंगे। हमारी तकनीक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ उपयोग के लिए न तो बनी है और न ही उसके पास ऐसा अधिकार है।’

एनएसओ समूह ने कहा है कि मई में पहली बार इस तकनीक के बारे में संदेह पैदा होने के बाद उसने 19 सितंबर को एक मानवाधिकार नीति लागू की जो हमारे व्यापार और शासन प्रणालियों में मानव अधिकारों की सुरक्षा को आगे बढ़ाती है।

समूह का दावा है कि पेगासस केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा गया है। उसने कहा, ‘हम अपने उत्पाद को केवल लाइसेंस प्राप्त और वैध सरकारी एजेंसियों को देते हैं।’

वहीं जब इस मामले पर इंडियन एक्सप्रेस ने गृह सचिव एके भल्ला और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एपी साहनी से संपर्क करने की कोशिश की तब उन्होंने ईमेल, फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज किसी का जवाब नहीं दिया।

सितंबर 2018 में, कनाडा स्थित साइबर सुरक्षा समूह सिटिजन लैब ने कहा, हमें भारत सहित 45 देशों में संदिग्ध एनएसओ पेगासस संक्रमण मिले जो कि 36 पेगासस ऑपरेटरों में से 33 से जुड़े थे। 2018 की रिपोर्ट जून 2017 से सितंबर 2018 तक भारत में सक्रिय रूप से काम करने की ओर संकेत करती है। हमने पांच ऑपरेटरों की पहचान की है, जो संभवतया एशिया पर ध्यान केंद्रित कर रहे  हैं। एक ऑपरेटर, गंगेज ने राजनीतिक रूप से थीम वाले डोमेन का उपयोग किया है।

सिटिजन लैब ने इसकी जांच तब की, जब अरब मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उनसे संपर्क किया गया और संदेह जताया कि उनकी निगरानी की जा रही है। ठीक इसी दौरान एनएसओ समूह ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या और सऊदी अरब के इंस्तांबुल स्थित दूतावास में खशोगी की हत्या से पहले उनका पता लगाने के लिए स्पायवेयर की भूमिका सामने आने का संकेत मिलने के बाद सऊदी अरब के साथ अपने समझौते को समाप्त कर दिया।

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