Sunday - 7 January 2024 - 9:13 AM

जब हिस्सा आधा- आधा तो दर्जा समान क्यों नहीं!  

जुबिली पोस्ट ब्यूरो

लखनऊ। देश में एकल कर व्यवस्था जीएसटी लागू होने के बाद कर संग्राह की बात करें तो उत्तर प्रदेश के वाणिज्य कर विभाग व केन्द्रों के सेवाकर विभाग एक तरह से आपस में समाहित हो गये हैं। अगर किसी वस्तु पर 12 फीसद की दर से जीएसटी लगता है, तो उसमें 6 फीसद राज्य और 6 फीसद केन्द्र सरकार का टैक्स होता है।

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इस तरह अगर सेन्ट्रल जीएसटी के अधिकारी टैक्सचोरी का कोई मामला पकड़ते हैं तो वसूला गये टैक्स व जुर्माने का आधा हिस्सा राज्य के खाते में आता है, ठीक उसी तरह से राज्य के अधिकारी अगर टैक्स चोरी का कोई मामला पकड़ते हैं तो भी सेन्ट्रल के अधिकारी आधे के हिस्सेदार होतें है।

जीएसटी एक्ट जिसके तहत केन्द्र व राज्य के अधिकारी काम करते हैं वो दोनों भी समान है। ये सब बातों के समान होने के बाद कई बातें ऐसी असमान हैं, जिन्होंने विभाग के अधिकारियों के हौसलों को कमजोर कर दिया है, लेकिन बार- बार कहने के बाद भी उस असमान्ता को दूर नहीं किया जा सका है।

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पिछले महीने वाणिज्यकर प्रोन्नत संघ के अध्यक्ष सुनील वर्मा ने अपने सहयोगी संगठन वाणिज्य कर अधिकारी सेवा संघ के अध्यक्ष कपिल देव तिवारी की सहमति से आल इंडिया कंफाड्रेशन ऑफ कामर्शियल टैक्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल के साथ दिल्ली में केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीता रमण से मिलकर उनके सामने विभाग की समस्याओं को रखा था, लेकिन अब तक इसका कोई पुरसाहाल नहीं हुआ है।

उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि के तौर पर जो समस्याएं वित्तीय मंत्री के सामने रखी हैं वो वास्तव में विभाग के सभी अधिकारियों/ कर्मचारियों के लिए किसी बंद कमरे में होने वाली घुटन से कम नहीं है।

जीएसटी में केन्द्र व राज्य दोनों की जिम्मेदारियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो तराजू के पाले में कांटा एक दम सीधा यानी पूरी बराबरी है, लेकिन कार्य के बोझ व सुविधा के मामले में राज्य जीएसटी के अधिकारी केन्द्र की तुलना में काफी हल्के हैं।

राज्य जीएसटी के सचल दल अधिकारी अपनी खटारा गाड़ियों से 24 घंटे राजमार्ग पर जान हथेली पर लिए दौड़ते नजर आते हैं, जान हथेली पर लेकर चलने का आश्य ये बताया जाता है कि वे जिन गाड़ियों में चलते हैं, उनका स्टेरिंग व ब्रेक दोनों राम भरोसे चलतें है।

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वहीं केन्द्र के जीएसटी के अधिकारियों पर चेकिंग का कोई दबाव नही है, न तो उनकी सचल दल की गाड़ियां दौड़ती नजर आती हैं और न ही उन्होंने अभी चेकिंग के दौरान पकड़ कर लायी गयी गाड़ियों को खड़ा करने के लिए कोई जगह ही बनायी है।

वहीं राज्य के अधिकारियों पर मुख्यालय का दबाव है कि वे राजमार्गो पर चेकिंग करके गाड़िया पकड़े, ये अधिकारी टैक्सचोरी के मामले में जो गाड़ियां पकड़ कर लाते हैं, उनसे वसूला गया टैक्स व जुर्माने का आधा भाग सेन्ट्रल जीएसटी के हिस्से में जरूर चला जाता है।

अब तो कमिश्नर वाणिज्यकर कार्यालय में तैनात कई ऐसे अधिकारी जिनके लिए विभाग में आम चर्चा हैं कि ये अधिकारी मुख्यालय रूपी प्रयोगशाला में बैठकर इसरो के वैज्ञानिकों की तरह अपने ही अधिकारियों पर कितना और दबाव बनाया जाए।

इस क्रम में सचल दल अधिकारियों के लिए एक नया फरमान ये है कि किस अधिकारी ने चेकिंग के दौरान कितनी गाड़ियां चेक की इसका भी रजिस्टर तैयार करना हैं। अगर सरकार इसका तुल्नात्मक अध्ययन कराए तो साफ हो जाएगा कि चेकिंग के जरिए सबसे अधिक टैक्स सेन्ट्रल ने वसूला है कि राज्य ने।

केन्द्रीय वित्तीय मंत्री से राज्यों के वाणिज्यकर विभाग के अधिकारियों से जो वार्ता हुई है, उसमें राज्य की समस्याओं को उठाते हुए बराबरी का दर्ज दिए जाने की मांग की गयी है। लेकिन मजे की बात ये है कि महीनों बीतने के बाद भी अब तक केंद्रीय वित्त विभाग ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।

जबकि यूपी सरकार भी इसमें कोई रूचि नहीं ले रही है, जिसका खामियाजा सूबे के हज़ारों अधिकारियों को उठाना पड़ेगा। हालांकि इस मामले को लेकर शासन स्तर पर कई बार बैठकें हो चुकी है, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है।

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