
न्यूज डेस्क
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने सोमवार को लिंक्डइन पर एक निबंध लिखा है, जोचर्चा में है। इस निबंध में उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाया है। उन्होंने इशारों-इशारों में बहुत कुछ कहा है।
निबंध में पूर्व गवर्नर राजन ने कहा है कि शासन में बैठे लोगों को आलोचनाओं को सहना ही पड़ता है और आलोचनाओं को दबाना नीतिगत गलतियों का कारण बनती हैं। जो सरकारें सार्वजनिक आलोचनाओं को दबाती हैं, वह स्वयं एक घोर असंतोष है।
अपने निंबध में राजन ने लिखा है, “शासन में बैठे के लोगों को आलोचना को सहन करना पड़ता है। बेशक मीडिया में आलोचना सहित कुछ गलत सूचनाएं और व्यक्तिगत हमले हो जाते हैं। मैंने इन सब चीजों को अपने पूर्व के काम में देखा है।
उन्होंने लिखा है- हालांकि, आलोचना को दबा देना नीतिगत गलतियों के लिए एक सुनिश्चित आग वाला नुस्खा है। यदि सभी आलोचकों को सरकारी अधिकारी की तरफ से फोन आए और उन्हें उन्हें चुप रहने को कहा जाए या फिर सत्ताधारी पार्टी के ट्रोल आर्मी उन्हें अपना निशाना बनाए, तो कई लोग आलोचना कम करते हैं। जब तक कि सरकार को कटु-सत्य से सामना नहीं होता, वह बेहद ही सुखद माहौल में रहती है।”
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राजन ने कहा कि निरंतर आलोचना नीति को समय-समय पर सुधार की अनुमति देती है और सार्वजनिक आलोचना वास्तव में सरकारी नौकरशाहों को अपने राजनीतिक आकाओं को सच बोलने के लिए जगह देती है।
उन्होंने कहा कि इतिहास को समझना अच्छा है, लेकिन इतिहास का उपयोग करके हमारी खुद की छाती ठोकना बहुत बड़ी असुरक्षा को दर्शाता है।
वह लिखते हैं, “जाहिर है हमारे इतिहास को समझना, एक अच्छी बात है, लेकिन खुद की छाती ठोकने में इतिहास का इस्तेमाल बड़ी असुरक्षा को दर्शाता है। यह हमारी वर्तमान क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं करता है। यह अतीत में हमारी गरीबी थी और विकासशील अकादिमियों और अनुसंधान प्रणालियों में अभी भी कई खामिया व्याप्त हैं, जो हमें सबसे आगे रखती हैं।”
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