Monday - 8 January 2024 - 6:41 PM

विकल्प हैं इसीलिए कलाकारों को करनी होगी दुगनी मेहनत: अनुराग सिन्हा

मौजूदा सदी में विजुअल कल्चर और कम्यूनिकेशन को लेकर तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। जिनमें दर्शकों के सामने नए तरह के वीडियो कंटेन्ट को परोसा जा रहा है। सिनेमा हॉल से निकल चुका दर्शक अब मोबाइल में टकटकी लगाए हुए हैं। उसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, वूट, जी 5 जैसे तमाम चर्चित ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के मिल जाने से उसकी अपनी मोबाइल की दुनियाँ में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं।

दर्शक नया कंटेन्ट और नई प्रतिभाओं की सफल कोशिशों को देख रहे हैं। सिनेमाई पर्दे, टीवी और फिर अब मोबाइल से मनोरंजन में मशगूल समाज इनसे क्या और कितना सीख समझ रहा है यह शोध का विषय आज भी है, लेकिन नई टेक्नोलोजी के आने से बदलाव तो हुए हैं जिन्हें सामान्य ज़िंदगी में अमूमन देखा जा सकता है।

कोरोना के इस संकट काल में इसमें और भी ज्यादा तेजी देखी जा रही है। आप देखिए कि अभिनेता इरफान खान की फिल्म अंग्रेजी मीडियम का सालों से इंतजार रहे दर्शक भी इस कोरोना की चपेट का शिकार हो गए। वहीं निर्माता को इसका बहुत ज्यादा खामियामा भी भुगतना पड़ा।

दर्शकों के लिए ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ने इरफान खान की फिल्म और उनकी निजी ज़िंदगी से एक रिश्ता बनाने का मौका तो मिला लेकिन एक निर्माता की आर्थिक परेशानी का संकट दूर करने और फिल्म की वैश्विक पहचान से यह फिल्म रह गई। वहीं अन्य और भी हिन्दी फिल्में मजबूरन यहाँ दिखानी पड़ी।

लेकिन बड़ा सवाल यहाँ नए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के दर्शको के साथ- साथ इसके बाज़ार का भी है। इसके अलावा क्या इस अलग सी आधुनिक दुनियाँ किसी तरह का संकट है? नई प्रतिभाओं को इन प्लेटफॉर्म में आने से लिए कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं ? यहाँ स्ट्रीमिंग के कितने नफा नुकसान है ?

पायरेसी की समस्या से क्या यह नया मार्केट बच पाएगा ? क्या दर्शक याद रख पाएगा वो संवाद वो बड़े सिनेमाई पर्दे पर देख सुन कर आता रहा है ? कैसी होगी भविष्य की राह ? और वेब सीरीज तथा फिल्मों के निर्माण में आपसी द्वंद में दर्शक किसे चुने और अब तक किसे चुनता आ रहा है ? ऐसे ही कई सवाल जानना मौजूदा समय की जरूरत है।

शहर की मॉडर्न लड़कियों के किस्से दिखाती नेट फ्लिक्स की चर्चित वेब सीरीज फोर मोर शॉट्स-2 और कस्बे में पली बढ़ी और उसी में भविष्य देख रही बिन्नी बाजपेयी और इलाहाबाद के मनफोड़गंज के तमाम घरों से निकली कहानी दिखाती वेब सीरीज ‘मनफोड़गंज की बिन्नी’ हाल ही में ‘एमएक्सपेलयर’ में रिलीज हुई है। ऐसे में दर्शकों को कितना क्या पसंद आया यह कहना मुश्किल है लेकिन इन प्लेटफॉर्म में कस्बों को जगह मिलना और उनकी सामान्य कहानी को मोबाइल की स्क्रीन तक ले आ पाना वाकई सराहनीय दिखता है।

अमितोष नागपाल की लिखी गई स्क्रिप्ट और विकास चंद्रा द्वारा निर्देशित यह सीरीज शीर्षक से भले ही एक महिला विमर्श की तरफ ध्यान खींचे लेकिन सीरीज के भिन्न भागों में पुरुष पात्रों द्वारा वाकई दर्शकों को कस्बाई संस्कृति से रूबरू कराने की पुरजोर कोशिश की गई है।

बिन्नी बाजपेई एक मॉर्डन लड़की होने के साथ दिल से अभी भी जमीन से जुड़ी हुई है, सबको सुनने वाली और अपने मन की करने वाली है। जिसके इर्द गिर्द कस्बे के तमाम ऐसे युवा भी हैं जो बहुत कुछ अपने अंदर रखे हुए जीवन जी रहे हैं। इसमें अपना गाँव जवार, प्रेमिका के लिए फीलिंग और दोस्तों के लिए जान निछावर कर देने जैसी बाते प्रमुख हैं।

इस क्रम में हमने इस चर्चित सीरीज के प्रमुख पात्रों में से एक राजा सिंह के किरदार को निभाने वाले पटना निवासी अनुराग सिन्हा से बात की और जाना कि कैसा है वेब सीरीज का वर्तमान और क्या है इसमें भविष्य की संभावनाएं ? क्या कुछ हैं खास इस मनफोड़गंज की बिन्नी में … जानें राजा सिंह की जुबानी …

राजा सिंह का किरदार क्यों चुना ?

मेरा मानना है कि कोई भी किरदार का सीधा संबंध अभिनेता के दिल से होना चाहिए। 2008 में सुभाष घई के निर्देशन में बनी मेरी फिल्म ब्लैक एंड में भी मेरा नुमैर काजी का रोल दिल से निभाया हुआ किरदार था। जिसमें आपने देखा होगा कि वह भारत में टेरर अटैक करने आता है लेकिन उसका मन बदल जाता है । एक अभिनेता के तौर पर मुझे मज़ा आना चाहिए, वही किरदार मैं बेहतर तरीके से कर सकता हूँ। मैंने निखिल आडवाणी की वेब सीरीज ‘पीओडब्लू बंदी युद्ध के’ में लेफ्टिनेंट सिद्धान्त का भी रोल किया। वहाँ भी एक लेफ्टिनेंट सिद्धान्त ठाकुर के किरदार को मैंने जीने की पूरी कोशिश की। और यहाँ अब राजा सिंह को भी मैंने पूरी तरह जिया। एक सामान्य सा लड़का जो गुंडई करता है मार पीट करता है लेकिन उसके साथ समाज में किस तरह का कट रहा वह उसे खुद नहीं पता चलता। राजा सिंह जैसे आज भी तमाम ऐसे युवा है हमारे समाज में जो बहुत कुछ अंदर रखते हुए जिये जा रहे हैं। इसीलिए इसे चुना।

‘मनफोड़गंज की बिन्नी’ में राजा सिंह ने कैसे पहचान बनाई ?

एक किरदार के लिए कलाकार का ईमानदार होना जरुरी है। बिन्नी बाजपेई के साथ राजा सिंह उस कस्बाई संस्कृति को पूरा करता है जिसे दिखाने का मकसद हमारी टीम ने सीरीज से पहले सोचा था। उसे मैं पूरा कर पाया या नहीं ये दर्शको पर है।

वेब सीरीज में नए कलाकारों के लिए किस तरह की चुनौतियां है ?

कलाकार के लिए चुनौतियाँ हर एक शॉट में लगभग वही रहती है। लेकिन मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर यह थोड़ा आसान रहा। चूंकि मैंने सुभाष घई जैसे निर्देशको के साथ फिल्में की, फिर निखिल आडवाणी की वेब सीरीज में मजबूत किरदार मिला और फिर इसमें राजा सिंह का किरदार किया। कहानी में किरदार अगर कलाकार ने पहचान लिया, उससे जोड़ लिया उसके लिए कोई संकट नहीं। फिर चाहे आप फिल्म में हो या वेब सीरीज में काम करें। अभिनेता को अपने काम में लापरवाही से बचना चाहिए क्योकि उसे तरह- तरह से जज किया जाता है। कई चरण को पार करते हुए उसे दर्शको तक पहुंचना होता है।

एक सीन में … वह स्थिति क्या सामान्य जीवन में कभी बनी है ?

देखिये वह दृश्य हम सब की ज़िंदगी में एक बार जरूर आता है। लेकिन कम्यूनिकेशन के बढ़ते साधनों ने इस स्थिति को बदल सा दिया है। अब आप माता पिता बहनों के साथ काफी खुले विचारों के साथ बातें कर लेते हैं। लेकिन कस्बों की स्थिति में राजा सिंह आज भी कहीं न कहीं दिखता है वही एक सामाजिक प्रसंग आपको राजा सिंह और उसके दोस्तों के सामने भी दिखता है जब उसके पिता अचानक कस्बे में रह रहे पुत्र के कमरे का ‘रंगारंग’ माहौल देखते हैं। इस रंगारंग को जानने के लिए आपको हमारी सीरीज जरूर देखनी चाहिए।

नई प्रतिभा में … दर्शकों से कोई शिकायत ?

दर्शकों का इसमें कोई उत्तरदायित्व नहीं। अभिनेता इसमें खुद अपना 100 फीसदी दे चाहे वो सीन भले ही एक सेकेंड का हो। अपने काम को दर्शकों पर थोपना कलाकार के लिए सही नहीं है। नई प्रतिभा को नए प्लेटफॉर्म आने से मौके मिले हैं उन्हें यूं ही गवाना ठीक नहीं। समाज में कई सारे अनुराग सिन्हा है जिन्हें अब एक भी मौके नहीं मिले उन सभी को मौका मिलना चाहिए। और उन्हें चाहिए कि वो इसका भरपूर फायदा उठाए।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में सेंसरशिप नहीं है ? जरूरत महसूस होती है आपको ?

हाँ जरूर। यहाँ भी कुछ भी दिखा देने की परंपरा बंद हो तभी सेलेक्टेड कंटेन्ट आ पाएगा। यूं ही सीन और संवाद जोड़ देना जिसका कहानी से कोई ताल्लुक नहीं वह वाकई यहाँ से अलग हो ऐसी नीति बने।

पायरेसी की समस्या से कितना खतरा महसूस कर रहे हैं ?

वन टाइम निर्माता बनने की कगार अगर किसी व्यक्ति की आई तो यह वाकई हम जैसे कलाकारों के लिए मुश्किलों भरा हो जाएगा। निर्माता ने मौके दिये हैं तो उसे दूसरे और दूसरों को मौके देने के लिए धन की जरूरत जरूर होगी। लोगो को आज़ादी है डाउनलोड करने की पर ऐसे कृत्यों पर सरकारों और इस नई प्रोद्योगिकी की दुनियाँ को जरूर ध्यान देने की जरूरत है। एंटी पायरेसी मुहिम जल्द ही सक्रिय हो, मैं तो यही कह सकता हूँ। हालांकि हाल ही में जो मेरी सीरीज आई है वो मुफ्त में ही मौजूद है ऐसे में कुछ और भी ऐसे माध्यम हो सकते हैं जिससे पायरेसी की समस्या से बचा जा सकेगा। दर्शकों को भी इस पायरेसी से जुड़ने से पहले निर्माता निर्देशकों और कलाकारों की वैल्यू को समझना जरूरी है।

आने वाले दिनों में क्या चाहते हैं ?

फिलहाल कोरोना जैसी महामारी से जल्द से जल्द लोग छुटकारा पाएँ और अपने पुराने काम धंधों की तरफ नई एनर्जी के साथ लौटें। बाकि हम कलाकारों का काम तो चलता ही रहेगा। हमें तो समाज से सीखना है और उन्हीं को फिर रिटर्न करना है।

राजा सिंह का फेवरेट डायलॉग ?

राजा सिंह हमेशा यही कहता रहा है कि- हमेशा दिल की सुनो। दिल हमेशा सही रास्ता दिखाता है।

(यह साक्षात्कार डॉ. मनीष जैसल द्वारा लिया गया है, जो सहायक प्रोफेसर, मन्दसौर विश्वविद्यालय है। )

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