नवेद शिकोह
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव का नतीजा यूपी में भाजपा विरोधी वोटरों के लिए एक सबक साबित हो सकता है। ये सबक भाजपा के खिलाफ मतदाताओं को एकजुट करने का फार्मूला पेश कर सकता है।
यूपी के भाजपा विरोधी मतदाताओं को पश्चिम बंगाल का चुनावी नतीजा ये संदेश देगा कि भाजपा से लड़ाई में किसी एक मजबूत पार्टी का दामन थामना है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा को इस बात की उम्मीद थी कि उसके विरोधी मतदाताओं का मत टीएमसी, कांग्रेस -लेफ्ट गठबंधन और अन्य छोटे दलों में बंट जाएगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ।
अनुमान लगाया जा रहा है कि मुसलमानों सहित सभी भाजपा विरोधियों ने एकजुट होकर टीएमसी की ताकत बनने की साइलेंट रणनीति तैयार कर ली थी। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट का सूपड़ा साफ हो गया।
साथ ही छोटे दलों के मोर्चे का भी प्रयोग फेल हुआ। टीएमसी के पक्ष में जनाधार आने का मुख्य कारण ये रहा कि पार्टी मुखिया और मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी बिना डरे मेहनत और संघर्ष के साथ चुनाव लड़ीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अन्य दिग्गजों ने ममता के गढ़ बंगाल में धुआंधार प्रचार किया और उन्हें घेरा। मुख्यमंत्री ममता के भाई और पार्टी के अन्य नेता केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे।
पूरा चुनाव ममता वर्सेज भाजपा के दिग्गजों के बीच केंद्रित हो गया। ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिशें को गईं। लेकिन ममता डरीं नहीं और अकेले दम पर डट कर मुकाबला करती रहीं।
ऐसे में तृमूण के पारंपरिक वोट के साथ वो मतदाता भी ममता के साथ आ गया जो नहीं चाहता था कि भाजपा जीते। मुस्लिम समाज भी एकजुट हो गया। अंदाजा लगाया जा रहा है कि मुसलमानों ने कांग्रेस और अन्य छोटे दलों में वोट ना देकर टीएमसी के समर्थन में एकजुटता साबित की।
अब उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव नजदीक है। यहां भाजपा विरोधी ताकतों का बिखराव भाजपा को दोबारा सत्ता दिलवा सकता है। यूपी में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में विपक्षियों के अलग-अलग गठबंधन असफल हो चुके हैं।
इस सूबे में कांग्रेस बहुत बेहतर करके भी भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। सूबे के दूसरे प्रभावशाली दल बसपा के बारे में एक आम राय ये पैदा हो गई है कि इसने भाजपा से साइलेंट दोस्ती कर ली है।
अब सीटों के लेहाज़ से उत्तर प्रदेश में बची समाजवादी पार्टी। जिसके पास जनाधार, संगठन, कार्यकर्ताओं और एम-वाई का आजमाया हुआ चुनावी समीकरण है।

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यदि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अभी भी नींद ट्वीट की राजनीति से जमीनी राजनीति में उतर आएं, ममता बेनर्जी की तरह बिना डरे सड़कों पर उतरें, मुख्य विपक्षी दल की जिम्मेदारी निहाएं और सरकार की खामियों के खिलाफ लड़ें तो भाजपा को नापसंद करने वाले सपा को विकल्प मान सकते हैं। यदि पश्चिम ब़गाल की तर्ज पर विपक्षी दलों की एकता के बजाय भाजपा से नाखुश मतदाता एकजुट हो गए तब ही यूपी में भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है।
कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में किसान नेता टिकैत ने भाजपा को किसान विरोधी साबित करने के लिए जो किसान पंचायत की उसने भी भाजपा को नुकासान पंहुचया।
इसके अलावा देश में कोरोना वायरस का आउट ऑफ कंट्रोल होना, ऑक्सीजन की हाहाकार में मौती की आंधी भी पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए घातक रही। किसानों की नाराजगी और कोरोना से बचाव में सरकार की खामियों के मुद्दे भी यूपी में भाजपा सरकार के खिलाफ बड़े हथियार बन सकते हैं।
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