जुबिली स्पेशल डेस्क
महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा ही अप्रत्याशित रही है। अब चर्चा का केंद्र बने हैं उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे, जो लंबे समय के बाद एक साथ नजर आए। मौका था संजय राउत की पोती के नामकरण का, जहां राजनीतिक फोटोग्राफी से ज्यादा पारिवारिक माहौल था।
कार्यक्रम खत्म होने के बाद राज ठाकरे सीधे मातोश्री पहुंचे—शिवसेना की राजनीति की सबसे बड़ी कहानियों का गवाह। राज का मातोश्री आगमन राजनीतिक दृष्टि से बड़ा संदेश माना गया।

करीब दो महीने पहले संजय राउत ने संकेत दिए थे कि ठाकरे बंधु मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ सकते हैं। मुंबई के अलावा नासिक, ठाणे और कल्याण-डोंबिवली में भी उनकी संयुक्त ताकत दिखाई जा सकती है। राउत का कहना था कि ठाकरे भाइयों की एकजुटता मराठी अस्मिता की असली ताकत है।
बीएमसी चुनाव सिर्फ नगर निगम का नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा का सवाल है। शिवसेना (UBT) ने पिछले 25 सालों से इस चुनाव में जीत दर्ज की है, और अगर चुनाव उनके हाथ से फिसला तो राजनीतिक जमीन कमजोर हो सकती है। वहीं राज ठाकरे भी एमएनएस की ओर से राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
हालांकि उनका पहला संयुक्त चुनाव—बेस्ट कर्मचारियों की कोऑपरेटिव सोसायटी—सफल नहीं रहा। यह नतीजा दिखाता है कि ठाकरे ब्रांड पहले जैसा अजेय नहीं रहा।
राज ठाकरे ने हाल के महीनों में उद्धव के घर कई बार दस्तक दी है—जन्मदिन और गणेशोत्सव जैसे अवसरों पर दोनों भाई साथ नजर आए। बीजेपी और शिंदे गुट ने इसे राजनीतिक मजबूरी और वोट बैंक की कवायद बताया।
फिलहाल आम जनता इसे हल्के-फुल्के अंदाज में देख रही है। सवाल यही है कि यह मुलाकात चुनाव तक बनी रहेगी या फिर सत्ता की लड़ाई दोनों भाइयों को फिर अलग कर देगी।
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