शबाहत हुसैन विजेता खालिस्तान का सपना तो 1984 में ही मर गया था. इस सपने ने कितना खून बहाया उसका हिसाब जोड़ पाना भी बहुत मुश्किल बात है. यह सपना तोड़ने के लिए हमें प्रधानमंत्री की कुर्बानी देनी पड़ी थी. यह सपना टूटने के बाद पंजाब में फिर से खुशहाली …
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