डॉ. अभिनन्दन सिंह मैं अपने मालिकों की संवेदना का टूटा हुआ तार हूँ। मैं शहर और सरकारों के सपनों का शिल्पकार हूँ।। मैं सफ़र में फंसा हुआ घर जाने को बेकरार हूँ। मैं भी बचाना चाहता हूँ अपने बच्चों का लाचार जीवन। हाँ, साहब मैं ही मजदूर हूँ और गाँव …
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