Wednesday - 10 January 2024 - 8:57 AM

जलवायु परिवर्तन की ऐसी मार, मार्च में पारा 40 के पार

डॉ. सीमा जावेद

गर्मी के मौसम में मध्यम और उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मी का दौर शुरू होना कोई नयी बात नहीं है. मगर मार्च के बीच पारा 40 डिग्री सेल्सियस के पार हो जाना जरूर नयी बात लगती है. कुछ वक्त की राहत के बाद 27-28 मार्च से तापमान एक बार फिर बढ़ने वाला है.

मार्च में ही मध्य भारत, खासतौर से राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश और तेलंगाना से सटे क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से काफी ऊपर पहुंच चुका है. मुम्बई 13 से 17 मार्च तक लगातार पांच दिन भयंकर तपिश से गुजरी. मुम्बई शहर में तपिश एक बार फिर चरम पर पहुंच रही है क्योंकि 23 मार्च को वहां अधिकतम तापमान 38.2 डिग्री सेल्सियस हो गया. मार्च के महीने में मुम्बई  में अब तक औसत तापमान 32.8 डिग्री सेल्सियस रहा है.

उत्तर-पश्चिम के मैदानों में भी पारा चढ़ रहा है, जिससे ग्रीष्मलहर के हालात के लिये जमीन तैयार हो रही है. जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी राज्यों में भी गर्मी महसूस की जा रही है, जहां पहले मार्च के महीने में भी बर्फ गिरा करती थी.

सरकार द्वारा संचालित भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार मैदानी इलाकों, तटीय क्षेत्रों तथा पर्वतीय इलाकों में अधिकतम तापमान क्रमश: 40 डिग्री सेल्सियस, 37 डिग्री सेल्सियस और 30 डिग्री सेल्सियस पहुंचने पर उसे हीटवेव घोषित किया जाता है. ये तापमान सामान्यर से 4-5 डिग्री सेल्सियस अधिक होते हैं. अगर यह सामान्य से 5-6 डिग्री सेल्सियस अधिक होते तो इसे प्रचंड हीटवेव कहा जाता है.

स्काइमेट वेदर में मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन के एवीपी महेश पलावत बताते हैं, “जहां हम यह उम्मी्द कर रहे थे कि तपिश मार्च के अंत तक मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत के हिस्सों पर अपना असर दिखायेगी लेकिन हमें इसके इतनी जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी. मगर यह हमारे लिये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, क्यों कि पिछले कुछ सालों में हम दिन के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होते देख रहे हैं. अधिकतम तापमान रिकॉर्ड तोड़ रहा है और अब यह वैश्विक मध्य तापमान में वृद्धि के साथ खड़ा है.”

वैश्विक तापमान बढ़ चुका है और अगर आने वाले समय में इसे रोका नहीं गया तो इसमें और भी वृद्धि होने की सम्भावना है. दुनिया भर के वैज्ञानिक बार-बार इसे दोहरा भी रहे हैं. हाल ही में जलवायु के प्रभावों, जोखिमशीलता और अनुकूलन में आईपीसीसी की डब्यू व जी 2 रिपोर्ट के मुताबिक अगर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सदर्जन मं तेजी से कमी नहीं लायी गयी तो गर्मी और उमस ऐसे हालात पैदा करेंगी जिन्हें सहन करना इंसान के वश की बात नहीं रहेगी. भारत उन देशों में शामिल है जहां ऐसी असहनीय स्थितियां महसूस की जाएंगी.

इस रिपोर्ट में यह भी जिक्र किया गया है कि लखनऊ और पटना ऐसे शहरों में शुमार हैं जहां अगर उत्सर्जन की मौजूदा दर जारी रही तो वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाने का अनुमान है. वहीं, अगर उत्स‍र्जन का यही हाल रहा तो भुवनेश्वर, चेन्नई, मुम्बई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट-बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा. कुल मिलाकर असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे, लेकिन अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो सभी भारतीय राज्यों में ऐसे क्षेत्र होंगे जो 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक वेट-बल्ब तापमान का अनुभव करेंगे.

आईपीसीसी की ताजा डब्ल्यू  जी 2 रिपोर्ट के मुख्य लेखक और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में शोध निदेशक एवं एडजंक्ट प्रोफेसर डॉक्टर अंजल प्रकाश ने कहा कि “भारत के कई हिस्से मार्च के महीने में अभूतपूर्व गर्मी से तप रहे हैं. आईपीसीसी की रिपोर्ट में इस बात पर खासा विश्वास जाहिर किया गया है कि चरम स्तर पर गर्म जलवायु की वजह से पिछले कुछ दशकों के दौरान आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर खड़े नागरिकों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है. जोखिम वाले इलाकों में ग्लोबल वार्मिंग खाद्य उत्पादन पर दबाव लगातार बढ़ाती जा रही है क्यों कि डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस ग्लो्बल वार्मिंग के बीच और हीटवेव स्थितियों के तहत सूखा पड़ने की आवृत्ति, सघनता और तीव्रता बढ़ रही है.

ऐसी उम्मीद है कि ये चरम मौसमी स्थि‍तियां न सिर्फ निकट भविष्य में बल्कि दीर्घकाल में भी खराब स्वास्थ्य और अकाल मृत्यु की घटनाओं में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी का कारण बनेंगी. आईपीसीसी ने काफी मजबूती से माना है कि अतिरिक्त गर्मी के साथ हीटवेव की चपेट में आने की घटनाओं में वृद्धि जारी रहेगी, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त अनुकूलन के बिना गर्मी से संबंधित मृत्यु दर होगी.”

आईपीसीसी की ताजा डब्ल्यू जी  2 रिपोर्ट की प्रमुख लेखक और इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स की वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर चांदनी सिंह ने कहा कि “किसी एक शहर में गर्मी के एक समान प्रभाव महसूस नहीं किये जाते. ऐसे लोग जिनके पास खुद को ठंडा रखने के उपकरण उपलब्ध नहीं हैं या जिन्हें बाहर जाकर काम करना पड़ता है, जैसे कि मजदूर, रेहड़ी वाले इत्यादि. यह महत्वपूर्ण है कि भयंकर तपिश के समाधानों के भी असमान नतीजे हो सकते हैं. लिहाजा, अत्यधिक गर्मी के असमान प्रभावों को भी जहन में रखना महत्वपूर्ण है.”

आगे, स्काइमेट वेदर के महेश पलावत कहते हैं, “विकास के साथ शहरों का मौसम भी बिल्कुल बदल गया है. कंक्रीट और निर्माण सामग्री में हवा के बंध जाने की वजह से मौसम गर्म बना रहता है. द अरबन हीट आइलैंड (यूएचआई) नगरीय क्षेत्रों को गर्म करने में अहम भूमिका निभा रहा है. हरित आवरण को नुकसान और अधिक लोगों को समायोजित करने के लिये पर्याप्त छाया नहीं होने के जन स्वास्थ्य को  विनाशकारी प्रभाव पड़ेंगे.”

फ़िलहाल गर्मी की स्थिति को समझाते हुए वो कहते हैं, “राजस्थान और उससे सटे पाकिस्तान पर कोई मौसमी विक्षोभ नहीं होने और किसी एंटीसाइक्लोन की उपस्थिति की वजह से गर्म हवाएं उत्तर और मध्य भारत की तरफ बढ़ रही हैं. मार्च का महीना एक गर्म माह के तौर पर खत्म होने जा रहा है और अप्रैल की शुरुआत तक राहत की कोई उम्मीद भी नहीं है. मंद हवा और सूखा मौसम उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान को एक बार फिर बढ़ाएंगे जिसकी वजह से हीटवेव के हालात पैदा होंगे. धीरे-धीरे उत्तकर मध्य महाराष्ट्र तथा विदर्भ में भी हीटवेव अपना असर दिखाने लगेगी. मानसूनपूर्व बारिश की गतिविधियां अप्रैल के मध्य से ही शुरू होंगी जिससे लोगों को जबर्दस्त तपिश से कुछ राहत मिल सकती है.”

वर्ष 2020, 2021 और 2022 में मार्च के दूसरे पखवाड़े के दौरान दर्ज किए गए अधिकतम तापमान ये तापमान बताते हैं कि उनमें पिछले तीन वर्षों में वृद्धि देखी गई है.

लेखिका : पर्यावरणविद एवं जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचारक हैं.

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