Monday - 15 January 2024 - 1:50 PM

स्मृति शेष : मायूसी के खिलाफ मुस्कान की जंग थे विजय तिवारी

 शबाहत हुसैन विजेता

वह मस्तमौला शख्स जो घर से ठहाके बांटने निकलता था। हर बात को हंसी में उड़ा देना जैसे उनकी आदत थी। सरकारी दफ्तर में भी उनकी वजह से खुशनुमा माहौल रहता था। रंगमंच हो, टीवी हो, फ़िल्म हो या फिर दोस्तों की भीड़, वह हर जगह सुकून बांटने का काम करते थे। उन्हें देखकर यही लगता था कि जैसे इनके पास खुशियों का इतना बड़ा खज़ाना है कि इन्हें दर्द और दुख के बारे में जानकारी ही नहीं है। उनकी मौत ब्रेन हैमरेज की वजह से हुई है।

ब्रेन हैमरेज होने के बाद विजय तिवारी तीन दिन से मेडिकल कॉलेज में भर्ती थे। रात 11 बजे डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। एम्बुलेंस के ज़रिए उन्हें घर भिजवा दिया गया। लॉक डाउन की बंदिशों की वजह से मौत के बाद 10 घण्टों के भीतर उन्हें अग्नि के हवाले कर दिया गया।

यह सब इतनी जल्दी-जल्दी हुआ कि सभी दोस्तों को उनके जाने की खबर भी न हो पाई। रंगकर्म की सुपरिचित संस्था दर्पण से जुड़े विजय तिवारी अभिनय से लेकर निर्देशन तक में सिद्धस्थ थे।

दूरदर्शन और आकाशवाणी में बी ग्रेड के कलाकार विजय तिवारी का टीवी से उस दौर में जुड़ाव हुआ था जब टीवी ने सीरियल की दुनिया में क़दम रखा था। बीबी नातियों वाली, राग दरबारी और प्रेम सरोवर जैसे सीरियल में विजय तिवारी ने शानदार भूमिका निभाई थी। फ़िल्म अम्मा, कन्यादान और शक द मिस्ट्री में भी विजय तिवारी की भूमिकाएं उल्लेखनीय रहीं।

वह जितने बड़े कलाकार थे उतने ही बड़े दोस्त भी थे। दोस्ती की खातिर वह फिल्मों में प्रोडक्शन की ज़िम्मेदारी भी सम्भाल लेते थे। कई फिल्मों में वह बतौर प्रोडक्शन कंट्रोलर जुड़े।

वन विभाग में वह सरकारी नौकरी करते थे इस नाते अन्य रंगकर्मियों की तरह उनके सामने आर्थिक संकट नहीं था लेकिन सिर्फ रंगकर्म से जुड़े लोगों की दिक्कतें उन्हें खूब पता थीं। इसी वजह से कलाकार एसोसिएशन का गठन कर उन्होंने तमाम कलाकारों को एक छतरी के नीचे जमा कर दिया था।

लखनऊ महोत्सव में नाट्य समारोह की शुरुआत भी विजय तिवारी की कोशिशों का नतीजा थी। अपनी कला प्रतिभा के दम पर विजय तिवारी की पहचान सूबे के आला अफसरों से लेकर मंत्रियों तक थी। रंगकर्मियों की समस्याओं को वह इस अंदाज में उठा देते थे कि उनका हल निकल जाता था।

साल 2004 में जब मुझे ब्लड प्रेशर की शिकायत हुई और डॉक्टर ने रोज़ाना दवा खाने का निर्देश दिया तो मुझे बड़ी परेशानी हुई क्योंकि दवाओं से कोसों दूर भागने वाला इंसान रहा हूं। लखनऊ दूरदर्शन पर टीवी सीरियल की शुरुआत करने वाले मित्र सुनील बत्ता से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने बड़े सहज अंदाज़ में कहा कि विजय तिवारी तो कई साल से ब्लड प्रेशर की दवा खा रहे हैं। रोज़ एक टैबलेट खाते हैं और ठीक रहते हैं। सुनकर बड़ा अजीब लगा कि हर वक्त हंसने और हंसाने वाला इंसान ब्लड प्रेशर का मरीज़ है।

विजय तिवारी रंगकर्मी थे लेकिन पत्रकारों के साथ उनके ऐसे रिश्ते थे जिसमें दोस्ती हावी हो गई थी। हर दुख-सुख में विजय तिवारी का साथ रहता था। ठहाके लगाकर हंसना और धाराप्रवाह गालियां देना विजय तिवारी की पहचान थी। गालियां देने का विजय तिवारी का अंदाज़ ऐसा था कि गाली सुनने वाला भी मुस्कुराता रहता था।

वन विभाग मुख्यालय में चाय लाने वाले से लेकर बड़े बाबू तक दिन में कई बार विजय तिवारी की गलियां सुनते थे। एक दिन विभाग के प्रमुख सचिव का फोन आया तो विभागीय जानकारी देते-देते विजय तिवारी ने उन्हें न जाने कितनी गालियां सुना दीं। उधर से फोन कट गया। विजय तिवारी को निलम्बन आदेश मिल गया।

निलम्बित होने के बाद तीन महीने तक विजय तिवारी नाटकों में व्यस्त रहे। राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में उनका नाटक था। प्रदेश सरकार के एक मंत्री बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। नाटक के बाद मंत्री ने पूछा कामकाज कैसा चल रहा है तो विजय तिवारी ने कहा कि रात-दिन नाटक चल रहा है क्योंकि दफ्तर से निलंबित हूँ। मंत्री ने दूसरे दिन विजय तिवारी के बारे में प्रमुख सचिव से बात की। विजय तिवारी से सॉरी लिखवाकर वापस बुला लिया गया।

निलम्बन खत्म होने के बाद विजय तिवारी फिर दफ्तर जाने लगे। उधर इनके बारे में विभाग के बड़े अफसर जानकारियां जुटा रहे थे। उन्हें पता चला कि यह आदमी दिन भर गाली फक्कड़ी करते हुए अपने विभाग का कोई काम अधूरा नहीं रहने देता।

विजय तिवारी इतने फक्कड़ और मस्तमौला थे कि अपने तीन बेटों के नाम उन्होंने चवन्नी, अठन्नी और रुपया रखे थे। चवन्नी इन दिनों एक फोन कम्पनी में काम करता है।

कुवैत, मस्कट, अबुधाबी, बहरीन, शारजाह और पाकिस्तान तक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके विजय तिवारी अपनी पूरी ज़िन्दगी ठहाके ही बांटते रहे। देश के अधिकांश बड़े नाट्य समारोहों में उनकी शिरकत रही। वह दर्पण के पदाधिकारी थे लेकिन कलाकार एसोसिएशन के ज़रिए हर नाट्य संस्था को उन्होंने जोड़ रखा था। लखनऊ महोत्सव नाट्य समारोह में क्योंकि सिर्फ सात संस्थाओं को ही मौका मिल सकता था इसलिए उन्होंने लाटरी सिस्टम से संस्थाएं तय करने का काम शुरू किया था।

विजय तिवारी की खासियत यह थी कि वह जहां भी खड़े होते उनके चारों तरफ लोगों का झुंड लग जाता। श्मशान घाट पर भी वह मरने वाले के वह किस्से सुनाते थे जिससे लोगों के चेहरों पर मुस्कान तैर जाती थी। भीड़ कितनी भी हो लेकिन विजय तिवारी हमेशा भीड़ में अलग नज़र आते थे।

इसी 13 फरवरी को विजय तिवारी को उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी सम्मान मिला तो मैंने उनसे कहा कि आप जैसों को पुरस्कार मिल रहा है, ढंग के कलाकार नहीं हैं क्या तो विजय तिवारी ने जोर का ठहाका लगाया फिर बहुत गंभीर होकर मुंह कान के पास लाये और बोले कि जब ढंग के लोग नहीं रहेंगे तो मेरे जैसे सम्मान पाएंगे ही।

बड़ी-बड़ी बातों को बहुत हल्के ढंग से कहकर व्यवस्था पर जोरदार चोट करने वाले विजय तिवारी आज अग्नि को समर्पित किये गए तो लॉक डाउन की बंदिशों की वजह से वह दोस्त साथ नहीं थे जो उम्र भर उनके आसपास रहे।

मौत की खबर सुनकर दोस्त अपने घरों में मायूस बैठे रहे और मुस्कान व ठहाकों की चिता अकेले ही जलती रही। विजय तिवारी की मौत वास्तव में ठहाकों की मौत है। यह ऐसे सहारे की मौत है जो मुश्किल घड़ी में कंधे पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता था यह मौत है उस फक्कड़पन की जो इतने बड़े कलाकार को बहुत साधारण बनाये रखता है।

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