Monday - 22 January 2024 - 11:28 PM

क्या राजभर वोटरों को अपने पाले में कर पाएगी बीजेपी

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी एक साल से भी ज्‍यादा का समय बाकी हो, लेकिन सूबे का सियासी पारा अभी से बढ़ा हुआ है। सत्‍ताधारी दल बीजेपी समेत सभी दल अपने-अपने राजनीतिक समीकरण को मजबूत करने की कवायद में जुटे है।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की सियासी गलबहियां प्रदेश में खासतौर पर पूर्वांचल में सभी दलों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।

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बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस पिछड़े वोटरों को साधने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। महाराजा सुहेलदेव की जयंती के जरिए बीजेपी की नजर सूबे के राजभर समुदाय पर है। यूपी सरकार बहराइच के चित्तौरा में महाराजा सुहेलदेव स्मारक का भूमि पूजन कार्यक्रम कर रही है, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उपस्थित रहेंगे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली तौर पर इससे जुड़ेंगे। बीजेपी सुहेलदेव जयंती को भव्य तरीके से मनाकर ओम प्रकाश राजभर के मजबूत वोटबैंक को भेद कर अपने पाले में लाने की फिराक में है।

बीजेपी साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पूर्वांचल के मजबूत वोटबैंक माने जाने वाले राजभर समुदाय को साधने में जुटी है। यही वजह रही कि साल 2016 में अमित शाह खुद बहराइच गए थे और महाराज सुहेलदेव की मूर्ति का अनावरण किया था। इतना ही नहीं उन्होंने स्मारक बनाने की घोषणा भी की थी, जिसका योगी सरकार मंगलवार को बहराइच में भूमि पूजन कार्यक्रम कर रही है।

पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समुदाय का वोट राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखा है। यूपी में राजभर समुदाय की आबादी करीब 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है। राजभर समुदाय घाघरा नदी के दोनों पार की सियासत को प्रभावित करता है।

गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में इनकी अच्छी खासी आबादी है, जो सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं। इसी को देखते हुए बीजेपी राजभर समुदाय अपनी तरफ लाने का प्रयास लगातार कर रही है।

राजभर समाज यूपी में लंबे समय तक बसपा के सर्वाधिक निकट रहा है और बसपा ने इस समाज के कई नेताओं- सुखदेव राजभर, राम अचल राजभर, रमाशंकर राजभर, भीम राजभर जैसे नेताओं को आगे बढ़ाया। हालांकि, राजभर जाति के नेता चुनाव नहीं लड़ते थे, वहां इस समाज के लोग भाजपा, सपा व अन्य दलों को भी वोट देते थे।

ओम प्रकाश राजभर ने अपना सियासी सफर 1981 में बसपा से शुरू किया था, लेकिन बाद में अलग होकर सुहेलदेव भारतीय समाज नाम से पार्टी बना ली। ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी सपा, बसपा द्वारा राजभर नेताओं की अनदेखी का फायदा उठाया और धीरे-धीरे अपने समुदाय के लोगों को सुभासपा के पीले झंडे के नीचे एकजुट करना शुरू किया।

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बीजेपी ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राजभर समुदाय को अपने साथ जोड़ने के लिए ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन किया था। सूबे में बीजेपी की प्रचंड जीत में राजभर समुदाय की अहम भूमिका रही है, जिसके चलते पार्टी ने पूर्वांचल में क्लीन स्वीप किया था। ओम प्रकाश राजभर को योगी सरकार की कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में वो अलग हो गए। ओमप्रकाश राजभर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित आठ छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है।

ओमप्रकाश राजभर से दूरी के बाद यूपी की सत्ता पर काबिज बीजेपी ने राजभर वोटों को साधने के लिए अनिल राजभर को मोर्चे पर लगाया है। उन्हें राजभर के नेता के तौर पर बीजेपी लगातार प्रोजेक्ट कर रही है, जिसके लिए ओम प्रकाश को गृह जिला बलिया का प्रभारी भी पार्टी ने बना रखा है। हालांकि, अनिल राजभर अभी तक ओम प्रकाश राजभर की तरह अपनी मजबूत पकड़ नहीं बना सके हैं।

पूर्वांचल में राजभर और पिछड़ों में मजबूत पैठ रखने वाले हैं। इसको देखते हुए अब बीजेपी ने महाराजा सुहेलदेव के बहाने पूर्वांचल में राजभर वोटों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। महाराज सुहेलदेव की राजभर समाज में बड़ी मान्यता है, जिसे देखते हुए भाजपा उनके बहाने इस समुदाय को करीब लाने की कोशिश में जुटी है। बहराइच में महाराज सुहेलदेव का स्मारक बनाकर योगी सरकार 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक तौर पर बड़ा संदेश देना चाहती है। ऐसे में देखना है कि वो कितना कामयाब होती है।

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