Wednesday - 10 January 2024 - 1:58 PM

पटवारी परीक्षा में धांधली का मामला, इसे क्यों कहा जा रहा व्यापम 3.0?

जुबिली न्यूज डेस्क

देश का एक ऐसा राज्य जो परीक्षा धांधली को लेकर बदनाम रहा है. जी हां ये सच है मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो परीक्षों में धांधली के लिए बदनाम रहा है. लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि आज से 10 साल पहले घटी घटना का याद एक बार फिर ताजा हो गया है. पटवारी परीक्षा ने इस घाव को फिर से हरा कर दिया है.

दरअसल मध्य प्रदेश में इन दिनों पटवारी परीक्षा के परिणाम की गड़बड़ियों पर हंगामा मचा हुआ है. इस परीक्षा परिणाम के सामने आने के बाद आवेदकों का बड़ा समूह नतीजे में धांधली की शिकायत कर रहा है. दूसरी ओर चयनित आवदेकों का भविष्य भी अधर में लटक गया है.

चुनावी साल होने के कारण विपक्ष इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार पर हमलावर है.परिणाम आने के बाद हुए विवाद की वजह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फौरन ट्वीट करके इसकी नियुक्तियों पर रोक लगा दी. उन्होंने इसकी जांच के आदेश भी दे दिए हैं. शिवराज सिंह चौहान ने एक ट्वीट के ज़रिए 19 जुलाई को बताया कि, कर्मचारी चयन मंडल के माध्यम से आयोजित ग्रुप-2 , सब ग्रुप-4 और पटवारी भर्ती परीक्षा की जांच के लिए माननीय उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधिपति श्री राजेन्द्र कुमार वर्मा को नियुक्त किया गया है.

उन्होंने लिखा, पटवारी भर्ती में थोड़ा सा संदेह पैदा हुआ, तो मैंने तय कर दिया कि अभी नियुक्ति नहीं, जांच होगी. अगर गड़बड़ी मिली, तो दोषियों को मामा ठीक कर देगा.

आख़िर पूरा विवाद है क्या?

दरअसल प्रदेश सरकार ने 5 मार्च से लेकर 26 अप्रैल तक ग्रुप-2 (सब ग्रुप-4) सहायक संपरीक्षक, सहायक जनसंपर्क अधिकारी, सहायक नगर निवेक्षक, सहायक राजस्व अधिकारी, सहायक अग्नि शमन अधिकारी जैसे पदों की सीधी और बैकलॉग भर्ती परीक्षा हुई थी.इसके साथ ही पटवारियों के भर्ती परीक्षा का भी आयोजन किया गया था.यह परीक्षा प्रदेश के 13 शहरों में ऑनलाइन आयोजित की गई.इसके लिये 12.79 लाख परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था जबकि इसमें 9.78 लाख आवेदक इसमें शामिल हुए.इसके परिणाम 30 जून को ही जारी कर दिए गये थे लेकिन विवाद 10 जुलाई के बाद बढ़ा जब इसमें शामिल उम्मीदवारों के नामों की लिस्ट जारी की गई.इस लिस्ट से परीक्षा में धांधली की बात उठने लगी.इसकी पहली वजह यह रही कि जो मैरिट सूची जारी की गई उसमें 10 में से सात टॉपर्स एक ही सेंटर के हैं.

जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक यह सेंटर ग्वालियर का एनआरआई कॉलेज था.यह भाजपा के विधायक संजीव कुशवाहा का कॉलेज है.सवाल यही उठ रहा है कि एक ही सेंटर के बच्चे कैसे पहले 10 में से सात स्थान पा सकते हैं. वैसे इस सेंटर से कुल 114 लोगों का सिलेक्शन हुआ है.वही दूसरा मामला विकलांग कोटे का भी है.मिली जानकारी के मुताबिक मुरैना ज़िले की जौरा तहसील के 16 विकलांगों का चयन हुआ है और इन सबके सरनेम त्यागी हैं.इस परीक्षा में 9073 पदों में से 6 प्रतिशत यानी 405 पद विकलांगों के लिए आरक्षित थे.इनमें से दो प्रतिशत बहरे और कम सुनने वालों के लिये थे तो दो प्रतिशत सेरेब्रल पाल्सी और मस्कुलर डिस्ट्राफी के लिए थे.

वही दो अन्य प्रतिशत मंदबुद्धि और ऑटिज़्म से प्रभावित लोगों के लिए थे.परीक्षा परिणाम में एक चौंकाने वाली बात ये भी है कि बहरे लोगों की सूची जिन लोगों का चयन किया गया है उनमें से 80 प्रतिशत मुरैना ज़िले से ही हैं.जब इनमें से कुछ सफल आवदेकों से बात करने की कोशिश की गई तो इनके परिवार वालों ने इस पर बात करने से इंकार कर दिया.परिवार वालों ने ये भी कहा कि ये लोग विवाद के बाद कहीं दूसरे स्थान पर जाकर रह रहे हैं. हालांकि दूसरे वर्ग में चुने गए पटवारी आवेदकों का दावा है कि उन्होंने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी और सरकार को फौरन उन्हें नियुक्ति देनी चाहिए.

जो परीक्षा में चुने गए वो क्या कह रहे हैं

छात्सर रकार के कदम से नाराज़ हैं. उनका कहना है कि इस परीक्षा के लिए हमने बरसों पढ़ाई की है और यह कहना कि हम धांधली करके पास हुए हैं सरासर ग़लत है. हमारे परिवार की हमसे बड़ी उम्मीदें है और जब हम सफल हो गये तो इसलिये रोक दिया गया है कि हमने धांधली की है.”लेकिन जो इसमें कामयाब नहीं हुए हैं वो चाहते है कि इस परीक्षा को रद्द कर देना चाहिये क्योंकि इसमें बड़े स्तर पर धांधली की गई है.

जो तथ्य सामने आ रहे है वो सीधे तौर पर बता रहे है कि परीक्षा में धांधली की गई है. मुख्यमंत्री को हमारे हक़ में फैसला करके इस परीक्षा को फिर से करवाना चाहिए.”उन्होंने कहा, “आज के समय में सरकारी नौकरियां बची ही नहीं है. अगर इस तरह से कुछ पोस्ट निकलती है और उसमें भी धांधली कर दी जाए तो आख़िर हम लोग करेंगे क्या. परिवार भी कब तक हमारे लिए पैसा देगा. इस परीक्षा को रद्द कराने की मांग को लेकर प्रदेश में जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं वही चयनित उम्मीदवारों ने भी भोपाल में प्रदर्शन करके जल्द से जल्द नियुक्ति की मांग की है. काग्रेंस पार्टी ने भी भोपाल में इस मुद्दे पर एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया.

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हालांकि कांग्रेस नियुक्तियों पर रोक को अपनी जीत के तौर पर देख रही है. वही पार्टी ने इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है.पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के मुताबिक़, शिवराज सिंह ने नियुक्ति रोक कर स्वयं स्वीकार किया है कि पटवारी भर्ती परीक्षा में घोटाला हुआ है.

छात्रों ने इसे व्यापम 3.0 कहा

इस मामले में 13 जुलाई को सामाजिक कार्यकर्ता ने परीक्षा परिणामों पर सवाल उठाते हुए इंदौर हाईकोर्ट की खंडपीठ में एक जनहित याचिका दाखिल की थी. 21 जुलाई को न्यायालय ने इसे ख़ारिज करते हुए उन पर दस हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया था. न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट के महत्वपूर्ण समय को ख़राब किया है.

राज्य सरकार ने इससे दो दिन पहले ही परीक्षा परिणाम की जांच के आदेश दे दिए थे. रघु परमार कहते हैं, “सरकार से जांच की मांग कर रहे थे तो सरकार ने उसका आदेश दे दिया है. यह मामला इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जो सरकार नौकरी में चयन और परीक्षाओं को लेकर बदनाम रहा है.

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प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापम 2010 के बाद से ही विवादों में रहा है. उसके बाद सरकार ने इसका नाम बदलकर प्रोफेशनल एग्जामिनेश बोर्ड कर दिया था. लेकिन जब मामला ख़त्म नही हुआ तो उसका नाम बदलकर कर्मचारी चयन मंडल कर दिया गया. लेकिन विवाद हैं कि ख़त्म नहीं हो रहा है. इस परीक्षा में हुई धांधली को लेकर प्रदर्शन करने वाले आवेदक इसे व्यापम 3.0 बता रहे हैं. व्यापम घोटाले को लेकर निशाने में रही शिवराज सरकार के लिए चुनावी साल में यह मुद्दा बेचैन करने वाला है.

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