डा. उत्कर्ष सिन्हा
पाकिस्तान आज एक ऐसे जटिल जाल में फंसा हुआ है जहां उसकी सीमाएं हर तरफ से खतरे में हैं। पूर्व में भारत के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद और तनाव, पश्चिम में अफगानिस्तान के साथ युद्ध जैसे हालात, आंतरिक रूप से बलूचिस्तान में बढ़ते विद्रोह, और अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साउथ एशिया में बढ़ते दखल ने इस्लामाबाद को और गहरे संकट में धकेल दिया है। अक्टूबर 2025 की शुरुआत में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर हुई हिंसक झड़पों ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया, जहां दर्जनों सैनिकों की मौत हुई और सीमा पार व्यापार ठप हो गया। ट्रंप की दूसरी पारी में साउथ एशिया की नीति ने पाकिस्तान को एक दोहरी तलवार की तरह काटा है—एक तरफ समर्थन का दिखावा, दूसरी तरफ क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा। क्या पाकिस्तान इन संकटों से उबर पाएगा, या ट्रंप का दखल नई समस्याओं को जन्म देगा?
भारत के साथ सीमा तनाव: एक कभी न खत्म होने वाली कहानी
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन 2025 में यह तनाव एक नए स्तर पर पहुंच गया। अप्रैल 2025 में कश्मीर में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 25 भारतीय नागरिकों और एक नेपाली की मौत हुई, ने भारत को सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाया। 7 मई 2025 को भारत ने पाकिस्तान में मिसाइल हमले किए, जिससे एक संक्षिप्त लेकिन घातक संघर्ष शुरू हो गया, जिसे “ऑपरेशन सिंदूर” कहा गया। पाकिस्तानी सेना ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें सीमा पर गोलीबारी, ड्रोन हमले और छोटे-मोटे संघर्ष शामिल थे। ट्रंप ने इस संघर्ष को शांत करने का श्रेय लिया, जिसमें उन्होंने टैरिफ की धमकी देकर दोनों देशों को वार्ता की मेज पर लाने की बात कही। हालांकि, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के दखल को खारिज करते हुए कहा कि सीजफायर द्विपक्षीय प्रयासों का नतीजा था।
यह तनाव केवल सैन्य स्तर पर नहीं है; यह कश्मीर विवाद, पानी के बंटवारे और परमाणु हथियारों की दौड़ से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान की सेना, जो हमेशा से ही भारत को मुख्य दुश्मन मानती रही है, अपनी अधिकांश संसाधनों को पूर्वी सीमा पर केंद्रित रखती है। लेकिन इस बीच, पश्चिमी मोर्चे पर अफगानिस्तान के साथ बढ़ते संघर्ष ने पाकिस्तान को दोहरी मार में डाल दिया है। यदि यह तनाव जारी रहा, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही मुद्रास्फीति और कर्ज के बोझ तले दबी है, और बिगड़ सकती है। अंतरराष्ट्रीय दबाव, विशेष रूप से अमेरिका और चीन से, पाकिस्तान को मजबूर कर सकता है कि वह अपनी ‘प्रॉक्सी वार’ की नीति छोड़कर वार्ता पर ध्यान दे। लेकिन वर्तमान में, यह तनाव पाकिस्तान के लिए एक स्थायी सिरदर्द बना हुआ है, जो उसके सैन्य बजट को और बढ़ा रहा है।
अफगानिस्तान मोर्चा: युद्ध के कगार पर
पाकिस्तान का पश्चिमी मोर्चा, यानी अफगानिस्तान के साथ दुरंद लाइन, आज सबसे गर्म क्षेत्र बन चुका है। अक्टूबर 2025 में शुरू हुए संघर्ष ने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है। 9 अक्टूबर को पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के काबुल, खोस्ट, जलालाबाद और पाक्तिका में हवाई हमले किए, जिसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ठिकानों को निशाना बनाया गया। इसके जवाब में तालिबान ने पाकिस्तानी सीमा चौकियों पर हमला किया, जिसमें पाकिस्तान के अनुसार 23 सैनिक मारे गए, जबकि तालिबान ने 58 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत का दावा किया। पाकिस्तान ने 200 अफगान लड़ाकों को मार गिराने का दावा किया है। चमन और तोरखम जैसे प्रमुख सीमा पारगमन बिंदु बंद हो गए, जिससे व्यापार ठप हो गया और हजारों ट्रक फंस गए।
यह संघर्ष केवल सीमा विवाद नहीं है; यह टीटीपी जैसे आतंकी समूहों की मौजूदगी, अफगान शरणार्थियों के निर्वासन और ऐतिहासिक डूरंड लाइन विवाद से जुड़ा है। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान टीटीपी को शरण दे रहा है, जो पाकिस्तान में हमले कर रहा है। वहीं, तालिबान पाकिस्तान पर अपनी संप्रभुता का उल्लंघन करने का आरोप लगाता है। रूस ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है, जबकि अमेरिका और अन्य शक्तियां इस क्षेत्र में अस्थिरता से चिंतित हैं। पाकिस्तान के लिए यह मोर्चा विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि उसकी सेना पहले से ही भारत के साथ तनाव में व्यस्त है। यदि यह संघर्ष लंबा खिंचा, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा—अफगानिस्तान के साथ व्यापार सालाना अरबों डॉलर का है। इसके अलावा, टीटीपी की बढ़ती गतिविधियां पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में अस्थिरता फैला रही हैं, जहां सितंबर 2025 में आतंकी हमलों में 27% की वृद्धि दर्ज की गई। पाकिस्तान की सरकार को अपनी ‘सामरिक गहराई’ की नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिसमें उसने तालिबान को समर्थन दिया था। अब वही तालिबान उसके लिए खतरा बन चुका है। यदि मध्यस्थता (जैसे कतर या सऊदी अरब से) सफल नहीं हुई, तो पूर्ण युद्ध की स्थिति पाकिस्तान को आर्थिक रूप से तोड़ सकती है।
बलूचिस्तान में विद्रोह: आंतरिक घाव जो नहीं भर रहा
पाकिस्तान के आंतरिक संकटों में बलूचिस्तान सबसे पुराना और गहरा है। यहां का विद्रोह 1940 के दशक से चला आ रहा है, लेकिन 2025 में यह और तेज हो गया है। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे समूहों ने मार्च 2025 में एक ट्रेन को हाईजैक किया, जो इस विद्रोह का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल 2025 में पाकिस्तान से बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों को रोकने की अपील की, जिसमें जबरन गायब करने और दमन शामिल हैं। अमेरिका ने अगस्त 2025 में बीएलए को विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया, जो पाकिस्तान के लिए एक राहत थी लेकिन समस्या का समाधान नहीं।
बलूचिस्तान की समस्या राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक है। प्रांत की प्राकृतिक संसाधनों (गैस, खनिज) का शोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि स्थानीय लोगों को लाभ नहीं मिलता। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना, जो 60 अरब डॉलर की है, बलूचिस्तान से गुजरती है लेकिन स्थानीय विद्रोहियों द्वारा हमलों का शिकार हो रही है। यह विद्रोह अब गुरिल्ला युद्ध का रूप ले चुका है, जिसमें सैन्य अभियान और नागरिक विरोध दोनों शामिल हैं। पाकिस्तान की सेना यहां दमनकारी कार्रवाइयों पर निर्भर है, लेकिन इससे समस्या और बढ़ रही है। यह विद्रोह पाकिस्तान को आंतरिक रूप से कमजोर कर रहा है, क्योंकि संसाधन पहले से ही बाहरी मोर्चों पर खर्च हो रहे हैं। यदि बलूचिस्तान में अलगाववाद बढ़ा, तो पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा अस्थिर हो सकता है, जो उसके अस्तित्व के लिए खतरा है।
ट्रंप का साउथ एशिया में बढ़ता दखल: नई समस्याओं का जन्म
ट्रंप की दूसरी पारी में साउथ एशिया की नीति ने पाकिस्तान को एक नई चुनौती दी है। जनवरी 2025 में सत्ता संभालने के बाद ट्रंप ने क्षेत्र को “ट्रांजैक्शनल रीयलपॉलिटिक” की नजर से देखा है, जहां अमेरिकी हित सर्वोपरि हैं। उन्होंने मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में दखल देकर सीजफायर का श्रेय लिया, लेकिन इससे पाकिस्तान को फायदा हुआ—ट्रंप ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच दिया, अमेरिका-पाकिस्तान इकोनॉमिक पार्टनरशिप को मजबूत करने की बात की, और सऊदी अरब-पाकिस्तान डिफेंस एग्रीमेंट को हरी झंडी दी। साथ ही, ट्रंप ने भारत पर टैरिफ्स लगाए, H1B वीजा रिजीम को हिला दिया, और भारत-रूस संबंधों पर सजा दी।
यह दखल पाकिस्तान के लिए तात्कालिक फायदेमंद लगता है, लेकिन इससे नई समस्याएं पैदा हो रही हैं। सबसे पहले, ट्रंप की नीति ने क्षेत्रीय संतुलन बिगाड़ दिया है—पाकिस्तान को सपोर्ट देकर भारत को अलग-थलग करने की कोशिश से इंडिया-चीन टेंशन बढ़ सकता है, क्योंकि चीन पहले से ही पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के जरिए भारत को घेर रहा है। दूसरा, न्यूक्लियर फियर्स: ट्रंप के अधिकारियों ने मई 2025 में परमाणु युद्ध की आशंका से दखल दिया, लेकिन पाकिस्तान की निर्भरता बढ़ने से उसकी स्वतंत्र विदेश नीति कमजोर हो सकती है। तीसरा, आर्थिक दबाव: ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” पॉलिसी से पाकिस्तान को ट्रेड डील्स मिल सकती हैं, लेकिन अगर अमेरिका पाकिस्तान को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करे, तो अफगानिस्तान और बलूचिस्तान में अस्थिरता बढ़ेगी।
आखिरकार, ट्रंप का दखल कश्मीर मध्यस्थता जैसे मुद्दों को फिर जिंदा कर सकता है, जो पाकिस्तान के लिए घरेलू राजनीतिक फायदा लेकिन अंतरराष्ट्रीय अलगाव का कारण बनेगा। इससे पाकिस्तान चीन-अमेरिका की बड़ी खेल में पिस सकता है, जहां ट्रंप पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।
बहुमुखी संकटों का विश्लेषण: पाकिस्तान का क्या होगा?
ये मोर्चे पाकिस्तान को एक ऐसे जाल में फंसा रहे हैं जहां से निकलना मुश्किल लगता है। सैन्य रूप से, पाकिस्तान की सेना 6 लाख से ज्यादा सैनिकों वाली है, लेकिन बहुमुखी चुनौतियां उसके संसाधनों को बांट रही हैं। आर्थिक रूप से, देश पहले से ही आईएमएफ बेलआउट पर निर्भर है; सीमा बंद होने से व्यापार प्रभावित हो रहा है। राजनीतिक रूप से, सरकार की वैधता संकट में है—आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं और शासन संकट ने जनता का विश्वास खो दिया है। ट्रंप का दखल इस संकट को और जटिल बना रहा है, क्योंकि यह पाकिस्तान को अमेरिकी हितों का मोहरा बना सकता है।
यदि पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं लाया—जैसे प्रॉक्सी समूहों का समर्थन बंद करना, बलूचिस्तान में राजनीतिक समाधान अपनाना, भारत-अफगानिस्तान के साथ वार्ता, और ट्रंप के दखल से दूरी—तो अस्थिरता बढ़ सकती है। पूर्ण युद्ध की स्थिति में, पाकिस्तान अलग-थलग पड़ सकता है, क्योंकि चीन और अमेरिका दोनों ही क्षेत्रीय शांति चाहते हैं। लेकिन सकारात्मक पक्ष यह है कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता (जैसे ट्रंप की पहल) काम कर सकती है।
पाकिस्तान को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी: आंतरिक विकास पर ध्यान, लोकतांत्रिक सुधार और पड़ोसियों के साथ शांति। अन्यथा, यह बहुमुखी संकट और ट्रंप का दखल उसे एक असफल राष्ट्र की ओर धकेल सकता है। भविष्य अनिश्चित है, लेकिन निर्णय पाकिस्तान के हाथ में है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, और अन्तराष्ट्रीय राजनीती पर टिप्पणीकार हैं )