Sunday - 7 January 2024 - 5:56 AM

पैदल मार्च को बीजेपी के खिलाफ हथियार बनायेंगी ममता

न्यूज डेस्क

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नागरिकता संसोधन कानून और मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वह सीएए के बहाने से पश्चिम बंगाल के वोटरों का नब्ज को टटोलने की कोशिश कर रही हैं। पिछले तीन दिनों से वह सीएए के खिलाफ पैदल मार्च कर रही है और इस दौरान वह वोटरों का मिजाज जानने की कोशिश कर रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पिछले तीन दिन से नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ सड़क पर उतर गई है। वह प्रतिदिन 10 किलोमीटर पैदल चल रही है। इस दौरान वह लोगों से इस कानून पर उनके विचार भी पूछ रही है। दरअसल ममता पैदल मार्च के बहाने से एक तीर से कई निशाने साधने की जुगत में हैं।

इससे पहले भी मुख्यमंत्री बनर्जी पैदल मार्च निकालकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं। जब शारदा चिट फंड स्कैम में कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के खिलाफ सीबीआई कार्रवाई की थी तब भी वह धरने पर बैठ गई थीं।

बीते दिनों ममता बनर्जी सीएए के खिलाफ साउथ और नॉर्थ कोलकाता में पैदल मार्च किया। इस दौरान उन्होंने कहा है कि पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार को नेशनल रजिस्ट्रर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) और नागरिकता (संशोधित) कानून लागू करने के लिए उनकी लाश से गुजरना होगा।

 

टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी पैदल मार्च में कम से कम 10 किलो मीटर पैदल चल रही हैं। उनके पैदल मार्च के कई मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल इससे वह अल्पंसख्यकों को अपने पक्ष में करना चाह रही हैं। इसके अलावा बंगाली शिक्षित समाज, जिसे भद्रलोक कहा जाता है, उसे भी अपने साथ जोडऩा चाह रही हैं।

मालूम हो कि पूरे देश के छात्र नागरिकता कानून के खिलाफ है और वह प्रदर्शन कर रहे हैं। ममता बनर्जी इसका विरोध कर युवा शक्ति को भी अपने साथ लाने की कोशिश में जुट गई हैं।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी की अच्छी पकड़ हो गई है। इसका अंदाजा लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली सीटों से लगाया जा सकता है। ममता के गढ़ में बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत हासिल की।

ममता की चिंता समझी जा सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां टीएमसी के 34 सांसद थे वहीं 2019 के चुनाव में 22 रह गए। टीएमसी को 12 सीटों का नुकसान हुआ है। ममता को इसका आभास हो चुका है कि अगर मध्यम वर्ग, शिक्षित वोट बैंक को फिर से अपने पक्ष में लाना है तो सीएए और एनआरसी के खिलाफ मुखर होना पड़ेगा। उन्हें इसका बखूबी एहसास है कि इसके जरिए एंटी-बीजेपी वोटर्स को अपने पक्ष में लाया जा सकता है।

इसके अलावा टीएमसी यह भी उम्मीद कर सकती है कि सीएए-एनआरसी जैसा भावनात्मक मुद्दा पार्टी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोपों से लोगों का ध्यान भटकाएगा। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में 2 साल से भी कम समय का वक्त रह गया है ऐसे में तमाम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए आक्रामक बयानों के जरिए और पैदल मार्च की आदत को बीजेपी के खिलाफ हथियार बनाने जा रही हैं।

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