Saturday - 6 January 2024 - 10:16 PM

साक्षी-अजितेश मामले के बहाने…

के पी सिंह 

अंतर्जातीय विवाह के औचित्य को लेकर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने 1929 में हुगली में आयोजित छात्रों के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अत्यंत महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया था। उन्होंने इसमें कहा था कि जब-जब भारतीय समाज जड़ता का शिकार बनकर मृत्यु शैया पर पहुंचा, नई ऊर्जा के साथ उसमें जीवन संचार विवाह के मामले में रक्त सम्मिश्रण से हुआ। इतिहास इसको प्रमाणित करता है।

उनका इशारा शक, यवन, हूण आदि बाहरी आक्रमणकारियों के साथ बाद में यहां के लोगों के रोटी बेटी के संबंध हो जाने जैसे प्रसंगों की ओर था। जातियों के निर्माण के इतिहास में इसे लेकर अनोखी और रोचक कहानियां शामिल हैं।

लेकिन अंतर्जातीय विवाह को मान्यता देना नेता जी के आवाहन के बावजूद उस जमाने में तो क्या आज भी समाज को आसानी से स्वीकार्य नहीं है। जाटों और राजस्थान के राजपूतों में तो जाति के बाहर तो छोड़िये जाति के अंदर सगोत्रीय शादी करने वाले जोड़ों तक की हत्या कर दी जाती है। आॅनर किलिंग के रवैये को लेकर न्यायपालिका से लेकर प्रबुद्ध समाज तक जबरदस्त नाराजगी जताई जा चुकी है। ले

किन इससे जिन लोगों ने यह विश्वास कर लिया था कि समाज का चरित्र और मानसिकता बदल रही है वे गलत फहमी में थे। सदियों के संस्कार और विश्वास ऐसे नहीं बदल जाते। एक ओर आधुनिकता की दौड़ में सबसे आगे रहने की ललक भी है दूसरी ओर अतीत के विचारों के प्रेतों की गलफांस से छुटकारे की भी इच्छा शक्ति नहीं है। इन विरोधाभासों के बीच भारतीय समाज फिलहाल अजाब में फंसा हुआ है।

समस्या केवल तब पैदा नहीं होती जब विवाह में जाति सोपान के अवरोही क्रम की ओर अग्रसरता दिखे। अगर कोई लड़की आरोही क्रम में भी जाति बंधन का उल्लंघन करती है तब भी परंपरागत अभिभावकों की क्रूरता जागे बिना नहीं रहती।

17 फरवरी 2002 को होनहार उ़द्यमी नीतीश कटारा की हत्या बाहुबली नेता डीपी यादव के बेटों विशाल यादव और विकास यादव ने इसी तरह की क्रूर मानसिकता के चलते कर दी थी। नीतीश के अपनी सहपाठी से प्रेम संबंध हो गये थे जो विकास यादव और विशाल यादव की बहन थी। दोनों विवाह करने वाले थे लेकिन यह बात पता चलने पर लड़की के भाइयों ने नीतीश को मार डाला।

इस क्रूरता का कारण जातिगत सोपान की ऊंच नीच होती तो नीतीश की हत्या नहीं होनी चाहिए थी। नीतीश ब्राह्मण था, लड़की का समवयस्क भी था, सुदर्शन भी था और सुशील भी। फिर भी डीपी यादव के बेटों को लगा कि उनकी बहन ने जाति के बाहर संबंध किया तो उनकी नाक कट जायेगी और वे हत्यारे बन गये। दोनों भाई सश्रम आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। दोनों ने अपना भी जीवन बर्बाद कर लिया और नीतीश का भी जीवन खत्म कर दिया।

बरेली के विधायक राजेश मिश्रा को भी अपनी बेटी का अंतर्जातीय स्वयंवर स्वीकार नहीं हुआ। यदि यह मामला तूल नहीं पकड़ता तो क्या वे अपनी बेटी साक्षी और उसके प्रेमी अजितेश के साथ कोई अनहोनी करा देते इस अनुमान को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन इसे ब्राह्मण दलित के चश्मे से देखना स्थिति का सरलीकरण है। अगर साक्षी किसी ओर जाति के जीवन साथी को भी चुनती तब भी राजेश मिश्रा सहज नहीं रह सकते थे।

सवर्ण दलित का मामला होता तो उत्तर प्रदेश में दर्जनों आईएएस जोड़े हैं जिनमें एक साथी सवर्ण और दूसरा अनुसूचित जाति का है लेकिन इस वजह से उनमें से किसी का बहिष्कार करने तक की हिम्मत समाज के किसी स्वयंभू ठेकेदार की नहीं है। जहां वर्गीय आधार पर जीवन साथी चुनने के लिए सक्षम जोड़े है वहां समाज उनके आगे नतमस्तक है।

भारतीय जनता पार्टी के निवर्तमान राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल ने जब अपनी भतीजी के अंर्तधार्मिक विवाह का न्यौता बांटा तो भाजपा और संघ के बड़े-बड़े नेता उनके कार्यक्रम में शामिल हुए। किसी ने यह कहने की जुर्रत नहीं की कि वे उनकी लड़की के गैर धर्म वाले युवक के साथ शादी को मान्यता देने नहीं जायेगे।

लेकिन राजेश मिश्रा बरेली के शक्तिशाली विधायक होने के बावजूद इतने रसूखदार नहीं हुए कि वे संस्कृतिकरण में अपने आरबिट के पार जा सके हो इसलिए उनकी लड़की के रिश्ते से समाज में उनके अस्तित्व का गहरा संबंध है। इस व्यवहारिक पक्ष को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

नतीजतन समाज के एक बड़े वर्ग की सहानुभूति उनके साथ होना स्वाभाविक है। पर इसके कारण जो उग्रता और उत्तेजना दिखाई जा रही है उसका कोई औचित्य नहीं है। गनीमत होती अगर उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग ही ऐसा करते लेकिन जो बरेली से बहुत दूर है वे भी भड़ास निकालने में सारी हदे पार किये जा रहे है। कोई सोशल मीडिया पर लिख रहा है कि इसके कारण अभिभावक अब अपनी लड़कियों को भ्रूण में ही खत्म करने की सोचेंगे।

कोई लिख रहा है कि अब कोई अभिभावक लड़कियों को छुटटा नहीं छोड़ेगा भले ही उसकी पढ़ाई हो या न हो। साक्षी को कुल कलंकिनी और कुलक्षणी के साथ-साथ गालियों तक से नवाजा जा रहा है जो बहुत ज्यादा प्रतिक्रियाशीलता का नतीजा है। पुनरूत्थानवादी भाजपा के सत्ता के केन्द्र में पहुंचने के बाद रूढ़िवादिता को नये बल के साथ नया जीवन मिला है। इन प्रतिक्रियाओं में इसी की झलक है।

दरअसल बदलाव की मौजूदा बयार में भारतीय समाज के पुराने नियम कानून ध्वस्त हो रहे हैं। एक ओर समाज के साथ चलने के लिए लोग इस बदलाव के साथ कदमताल भी कर रहे हैं दूसरी ओर पुरानी मान्यताओं को लेकर उनकी सुसुप्तावस्था में पड़ चुकी हठधर्मिता भी अवसर आने पर फिर कब्र से बाहर आने से नहीं चूकती। उपभोक्तावाद के इस दौर में जब पति पत्नी दोनों के कमाऊ हुए बिना ग्रहस्थी चलाना दुश्वार होने लगा है ऐसे समय लड़कियां घर की चैखट से निकलकर बाहरी दुनिया में अपना वजूद बनाने के लिए आगे बढ़ चली हैं।

अभिभावक लड़की के पढ़ाने से लेकर उसकी नौकरी तक की फिक्र करने लगे है। आज की लड़कियों की इस स्थिति की वजह से आगत परिवार के सामने द्विध्रुवीय शक्ति संतुलन को सीखने की नौबत आ गई है। पहले जहां खानदान के हित के लिए शादी संबंध किये जाते थे जिसमें लड़की की सहमति की कोई जरूरत नहीं थी और लड़कियां भी इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार किये हुए थी वहीं अब न केवल लड़का बल्कि लड़की की पसंद का भी ख्याल रखना अपरिहार्य हो गया है।

यह क्रम जहां ज्यादा आगे बढ़ चुका है वहां लड़की के अंतर्जातीय चुनाव को भी अभिभावक सहज होकर स्वीकार्य कर रहे हैं। साक्षी प्रकरण की वजह से न तो भ्रूण हत्या की अमानवीयता को दोहराने की हिम्मत समाज अब कर सकता है, न ही लड़कियों को अच्छी शिक्षा दिलाने से लेकर अच्छी नौकरी के मुकाम तक पहुचाने की लोगों की आकांक्षा बदली जाना संभव है। यह भी नहीं हो सकता है कि पहले की तरह अभिभावक विवाह को लेकर लड़की पर अपनी मर्जी थोपने के अधिकारी बन जाये।

हालांकि राजेश मिश्रा जैसे परंपरागत परिवारों की विडंबना को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। साक्षी अजितेश प्रकरण में इस नजाकत का ख्याल रखा जाना चाहिए था। यह सही है कि कुछ चैनलों ने इसे बड़ा तमाशा बनाने की कोशिश अपने व्यवसायिक उददेश्यों के लिए की जबकि ऐसे प्रसंगों को उसके पूरे परिप्रेक्ष्य के साथ पेश किया जाना चाहिए था, जिससे समाज में हो रहे बदलाव की स्वीकार्यता का और अधिक विस्तार किया जा सके जबकि चैनलों की हरकत ने एक बड़े वर्ग को चिढ़ने का मौका मुहैया करा दिया जिससे अर्थ का अनर्थ हो रहा है।

इसी बीच यह भी बात सामने आयी है कि बरेली के भाजपा के ही दो विधायकों ने राजेश मिश्रा को पस्त करने के लिए इस मामले को गहरी साजिश के तहत उभारा। मुख्यमंत्री इसकी जांच भी करा रहे हैं।

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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