Saturday - 13 January 2024 - 5:26 AM

पत्रकारों के लिए काल बना कोरोना, 300 से ज्यादा मीडियाकर्मीयों की गई जान

जुबिली स्पेशल डेस्क

देश में कोरोना वायरस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना की पहली लहर के बाद दूसरी लहर काफी खतरनाक है। लोग जिंदगी की जंग कोरोना के आगे हार रहे हैं।

पिछले साल कोरोना की चपेट में फ्रंट लाइन वर्कर जैसे डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, पुलिसकर्मियों का ज्यादा आए थे और इस वजह इन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसके बाद जब वैक्सीन आई तो सरकार ने सबसे पहले फ्रंट लाइन वर्कर को वैक्सीन लगाने की प्राथमिकता दी थी।

सरकार के इस कदम की हर किसी ने तारीफ की लेकिन दूसरी लहर में मीडियाकर्मी ज्यादा कारोना की चपेट में आए है और लगातार मीडियाकर्मी की जिंदगी को कोरोना निगल रहा है।

जानकारी के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर में जान गंवाने वालों में इन फ्रंटलाइन वर्कर्स की संख्या अपेक्षाकृत भले ही कम हो लेकिन मीडियाकर्मी की जाने कोरोना से जा रही है।

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दरअसल मीडियाकर्मी पहली और दूसरी लहर में लगातार फील्ड पर रिपोटिंग कर रहे थे और लगातार ऑफिस जा रहे थे। इस वजह से कोरोना की चपेट में आसानी से आ गए। दूसरी ओर इन्हें न तो फ्रंट लाइन वर्कर समझा गया और न ही उनको वैक्सीन में प्राथमिकता दी गई।

इस वजह से अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों से 300 से ज्यादा मीडियाकर्मी कोरोना की वजह से अपनी जान गवां चुके है। आलम तो यह रहा कि अप्रैल के महीने में हर रोज औसतन तीन पत्रकारों ने कोरोना के चलते अपनी जिंदगी खत्म की है जबकि मई में और बढक़र हर रोज चार तक जा पहुंचा।

दिल्ली आधारित इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि अप्रैल 2020 से 16 मई 2021 तक कोरोना संक्रमण से कुल 238 पत्रकारों की मौत हो चुकी है।

इस दौरान देश के बड़े और वरिष्ठ पत्रकारों ने कोरोना की वजह से दुनिया को अलविदा कह दिया है। इतना ही नहीं जिले, कस्बे, गांवों में काम कर रहे छोटे-बड़े पत्रकार कोरोना के आगे जिंदगी जंग हार गए है।

 

रिपोर्ट में

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान यानी अप्रैल 2020 से 31 दिसंबर 2020 तक के बीच 56 पत्रकारों ने दम तोड़ा है। दूसरी लहर में तस्वीर और खतरनाक हो गई है। 1 अप्रैल 2021 से 16 मई की बीच 171 पत्रकारों ने दुनिया को अलविदा कहा है जबकि शेष 11 पत्रकारों का निधन जनवरी से अप्रैल के बीच हुआ।

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दिल्ली आधारित इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज ने यह भी बताया है कि रिकॉर्ड में 82 पत्रकारों के नाम और हैं, जिनका वेरीफिकेशन नहीं हो सका है। इस रिपोर्ट में मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर से लेकर, स्ट्रिंगर, फ्रीलांसर, फोटो जर्नलिस्ट और सिटिजन जर्नलिस्ट तक शामिल किया गया है।

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