प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. कोरोना महामारी के दौर में सबसे बुरे हालात सड़कों को पैदल नापते हुए घर जा रहे मजदूरों और गरीबों के हैं. जेब भी खाली है और पेट भी खाली है. पैदल जा रहे मजदूरों की दुर्घटनाओं में मौतें तो गिनी भी जा सकती हैं मगर जो मौतें सदमे और थकान की वजह से हो रही हैं उनकी तो कहीं लिखा-पढ़ी हो ही नहीं रही.
औरैया में जो सड़क हादसा हुआ उसने तो लोगों को ज़रूर दहलाया मगर कितने लोगों ने झांसी में हुए ऐसे ही दर्दनाक हादसे को सुना. पैदल सफ़र करता हुआ एक मजदूर का परिवार आज झांसी पहुंचा था, झांसी पहुँचते ही मजदूर की पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया. बच्चे ने कुछ ही देर में दम तोड़ दिया. बच्चा नहीं रहा तो माँ ने भी हमेशा के लिए आँखें मूँद लीं. पत्नी और बच्चे की मौत का मंज़र वह गरीब बर्दाश्त नहीं कर पाया. सदमे की वजह से उसकी भी मौत हो गई.
लखनऊ से लगे शहर उन्नाव में आगरा एक्सप्रेस वे पर जा रहा एक ऑटो अचानक लोडर से टकरा गया. इस हादसे में माँ-बाप की मौत हो गई मगर ज़माने की ठोकरें खाने के लिए पांच साल का मासूम जिन्दा बच गया.
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गोंडा के क्वारंटीन सेंटर में सांप के काटने से आज एक मौत हुई है. कानपुर में एक व्यक्ति अपने बच्चो को भूख से बदहाल नहीं देख पाया और उसने फांसी लगाकर जान दे दी. यह सिर्फ आज के आंकड़े हैं. बदहाली की यह दास्तान सड़कों पर पैदल सफ़र के दौरान रोज़ ही नज़र आ रही है. गरीबों के पैर बुरी तरह से फट चुके हैं. उनमें से खून रिस रहा है मगर सफ़र है कि खत्म होता नज़र नहीं आता. प्यास से जान निकली जाती है. शहर करीब आता है तो जान में जान आती है मगर यहाँ पुलिस की लाठियां भी तनी हुई दिख जाती हैं.
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