Sunday - 7 January 2024 - 5:58 AM

बिना श्रमिकों के कैसे दौड़ेगा व्‍यापार का पहिया

न्‍यूज डेस्‍क

देश में कोरोना का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले 24 घंटों में कोरोना वायरस के रिकॉर्ड 6767 मामले सामने आए हैं। इस दौरान 147 लोगों की मौत भी हुई हैं। इस बीच देश में कोरोना के मामले बढ़कर 1.31 लाख के पार चले गए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, रविवार सुबह 8 बजे तक देश में कोरोना के कुल 1,31,868 मामले सामने आ चुके हैं।

वहीं कोरोना से मौत का आंकड़ा भी बढ़कर 3867 तक पहुंच गया है। देश में कोरोना के फिलहाल 73,560 एक्टिव केस हैं, वहीं 54,441 मरीज ठीक होकर अस्पतालों से डिस्चार्ज हो चुके हैं। सरकार के सामने तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस को रोकने के साथ-साथ ठप पड़ी अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी पर लाने की दोहरी चुनौती है।

ये भी पढ़े: देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या हुई 1,31,423

ये भी पढ़े:  यूपी: अब आइसोलेशन वार्ड में मोबाइल यूज पर बैन

 

लाकडाउन के वजह से सभी राज्‍यों में उद्योग बंद पड़े हैं। श्रमिकों और कामगारों का घर लौटना जारी है। ऐसे में उद्योग जगत से जुड़े लोगों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि जब सारे श्रमिक अपने घर लौट जाएंगे तो कामगारों की कमी हो जाएगी। तब सरकार के लोन और छूट देने के बाद वे अपने धंधे सुचारू रूप से नहीं चला पाएंगे।

दरअसल, लाकडाउन के चौथे चरण में सरकार ने व्यापक छूट दी है। इसका उद्देश्य कारोबारी गतिविधियों को बल देना है। हालांकि सिनेमा, रेस्त्रां, जिम के साथ स्कूल-कॉलेज बंद रखे गए हैं, लेकिन अन्य कारोबारी गतिविधियों को हरी झंडी देने के साथ रेल एवं हवाई यात्रा की भी शुरुआत की जा रही है। यह आवश्यक था, क्योंकि बिना आवाजाही कारोबार गति नहीं पकड़ सकता।

कारोबारी गतिविधियों को बल देना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया गया तो महामारी से अधिक नुकसान काम-धंधा ठप होने से हो सकता है। ऐसे आंकड़े सामने आ रहे हैं कि देश में लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं। दुनिया के अन्य देशों में भी यही हो रहा है। बताया जा रहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध में भी इतना नुकसान नहीं हुआ था जितना इस महामारी के चलते सब कुछ थम जाने से हो गया है।

ये भी पढ़े:  यूपी में खुलेंगे सभी सरकारी ऑफिस, 50 फीसदी स्टाफ को ही अनुमति

ये भी पढ़े: गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहा वैष्णो देवी मंदिर

चिंता की बात केवल यह नहीं कि कोरोना वायरस और लाकडाउन के कारण उद्योग बंद पड़े हैं, बल्कि इसके साथ इस बात की भी चिंता है कि जो अनुभवी श्रमिक और कामगार अपने घर लौट चुके हैं क्‍या वो वापस अपने काम पर लौटेंगे। मजदूरों की गांव वापसी का एक कारण तो कारोबारी कामकाज का गति न पकड़ पाना है और दूसरा, उन्हें यह आभास होना है कि उनको उनके हाल पर छोड़ दिया गया।

अच्छा होता कि उनके अंदर ऐसी भावना न घर कर पाती। और भी अच्छा यह होता कि शुरूआत में ही उन्हें ट्रेनों और बसों से भेजने की व्यवस्था की जाती। इससे वे न तो पैदल चलने को मजबूर होते, न अनियंत्रित होकर जैसे-तैसे गांव जाने की कोशिश करते और न ही उनकी दर्दभरी कहानियां सामने आतीं। सरकारों को उनकी सुरक्षित वापसी के साथ यह भी सोचना होगा कि जब श्रमिक गांव लौट चुके या फिर लौट रहे हैं तब उद्योग-व्यापार का पहिया कैसे घूमेगा?

दूसरे राज्‍यों से लौटे अधिकतर श्रमिकों का कहना है‍ कि हम अब वापस नहीं जाएंगे और अपने गांव में ही काम धंधा करेंगे। गुजरात से देवरिया लौटे गौरशंकर बताते हैं कि वह पिछले आठ साल से अहमदाबाद में फैक्‍ट्री में काम कर रहे थे। लेकिन पिछले दो महीनों से उनके पास कोई काम नहीं था। सारे पैसे खत्‍म हो जाने के बाद वापस लौटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था उनके पास। इस कठिन समय में उनके मालिक ने उन्‍हें पैसे देने से इंकार कर दिया। फिर किसी तरह ट्रक में बैठकर वो अपने घर पहुंचे। उनका कहना है कि उनके हाथ में हुनर है वो अब अपने गांव में काम करेंगे।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com