डा0 संजय सिंह
इन दिनों पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत भी एक अभूतपूर्व आपदा – कोरोना महामारी – से जूझ रहा है। इस वैश्विक संकट ने न केवल हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि जीवन के मूलभूत संसाधनों और हमारी जीवन शैली पर भी गहरा प्रभाव डाला है। कोरोना जैसी महामारी की अचानक उपस्थिति ने पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम कितने असुरक्षित हैं — न केवल वायरस के प्रति, बल्कि संसाधनों के प्रबंधन को लेकर भी।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इस प्रकार की आपदा की पूर्व कल्पना नहीं की गई थी। इस महामारी के चलते देश की आर्थिक गतिविधियाँ रुक गईं, लाखों लोगों की नौकरियाँ चली गईं, और स्वास्थ्य संसाधनों की भारी कमी महसूस की गई। परंतु इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से जल, पर इसका सीधा और तीव्र प्रभाव पड़ा है।
जल जन जोड़ो अभियान के द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, कोरोना महामारी के दौरान प्रति व्यक्ति पानी की खपत में डेढ़ गुना से अधिक वृद्धि हुई है। सामान्यत: नगरीय क्षेत्रों में एक व्यक्ति औसतन 70 से 75 लीटर पानी प्रतिदिन उपयोग करता था, लेकिन अब यह मात्रा 125 लीटर तक पहुँच गई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अब लोग दिन में 5 से 7 बार हाथ धो रहे हैं, घर को सैनिटाइज और साफ रखने के लिए बार-बार पोछा और धुलाई कर रहे हैं, जिससे पानी की खपत कई गुना बढ़ गई है।
यह स्थिति ऐसे समय में उत्पन्न हुई है जब देश के कई हिस्से, विशेष रूप से बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, विदर्भ और राजस्थान, पहले से ही जल संकट से जूझ रहे हैं। जल संसाधनों पर बढ़ते इस बोझ का दूरगामी प्रभाव होगा, जिसकी आहट अभी से सुनाई देने लगी है।
पानी की बढ़ती माँग बनाम घटती उपलब्धता
आज भारत में 70 प्रतिशत पानी कृषि में, 15 प्रतिशत उद्योगों में तथा 12 से 15 प्रतिशत घरेलू उपयोग में आता है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार यदि जल प्रबंधन के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो 2030 तक भारत के कई शहर ‘डे जीरो’ (Zero Day) की स्थिति में पहुँच सकते हैं, यानी जब इन शहरों में भूजल और सतही जल स्रोत पूर्णतः शून्य हो जाएंगे। चेन्नई, शिमला, मेरठ, लखनऊ, बेंगलुरु जैसे शहरों में भूजल स्तर पहले ही खतरनाक हद तक नीचे जा चुका है।
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के समय में साफ पानी की जरूरत और भी ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन हमारे पास उसकी पूर्ति के लिए आवश्यक ढांचा, संसाधन और योजना का अभाव है। यदि यह संकट और लंबा खिंचता है, तो जल संकट और गहरा हो सकता है।
यह एक विडंबना है कि जिस समय हमें जल संरक्षण की दिशा में और अधिक काम करना चाहिए, उसी समय तालाबों की सफाई, पाइपलाइनों की मरम्मत, हैंडपंप सुधार जैसे जरूरी कार्य ठप पड़ गए हैं। लॉकडाउन के कारण प्रशासनिक गतिविधियाँ सीमित हो गईं और ग्राम पंचायतों द्वारा किए जाने वाले परंपरागत जल संरक्षण कार्य जैसे तालाब गहरीकरण, मेडबंदी, जल निकासी सुधार, समय पर शुरू नहीं हो पाए। इसका सीधा असर गर्मी के मौसम में जल उपलब्धता पर पड़ने वाला है।
बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में पहले से ही पीने योग्य जल की भारी कमी है। यहाँ की महिलाएँ और बालिकाएँ प्रतिदिन कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं। ऐसे में जल स्रोतों की मरम्मत में देरी और बढ़ती मांग, दोनों मिलकर एक गहरे मानवीय संकट का संकेत दे रहे हैं।
भारत सरकार ने वर्ष 2024 तक हर घर नल से जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है, लेकिन कोरोना महामारी ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने की राह को और कठिन बना दिया है। जहां एक तरफ संसाधनों की कमी आड़े आ रही है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य और राहत कार्यों में प्राथमिकता देने के कारण जल योजनाओं को अपेक्षित बजट नहीं मिल पा रहा है।
स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के अंतर्गत जल गुणवत्ता सुधार और आपूर्ति व्यवस्था में सुधार हेतु कई शहरों में काम शुरू किया गया था। उपभोक्ता मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार इसकी प्रारंभिक रूपरेखा तैयार कर ली गई थी, लेकिन कोरोना के चलते यह कार्य अधूरा रह गया।
जल संकट अभी पूरी तरह से सामने नहीं आया है, इसका एक बड़ा कारण यह है कि अभी प्रकृति — वर्षा, ग्लेशियर और मौसम चक्र — इस संकट को संतुलित कर रहे हैं। लेकिन यह संतुलन अनिश्चित और अस्थायी है। यदि हमने अभी से विवेकपूर्ण और सामूहिक प्रयास नहीं किए, तो आने वाला समय गंभीर जल युद्धों का समय हो सकता है।
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. संजय सिंह का कहना है कि हमें इस समय को चेतावनी के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “पानी का विवेकपूर्ण उपयोग ही इस संकट से लड़ने की असली कुंजी है।” उन्होंने अपील की कि प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह अपने घर से जल संरक्षण की शुरुआत करें, बच्चों को पानी की कीमत समझाएँ, और समाज को जागरूक बनाएं।
कोरोना महामारी ने हमें सिखाया है कि जीवन की सबसे जरूरी चीजें — जैसे हवा, पानी और स्वास्थ्य — को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि हम जल को केवल एक उपभोग की वस्तु नहीं, बल्कि एक जीवित संसाधन मानें और उसके संरक्षण को अपने नैतिक कर्तव्य के रूप में स्वीकार करें।
यदि आज हम सचेत नहीं हुए, तो कल हमें पानी के लिए संघर्ष, पलायन और महामारी से भी घातक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। यह संकट एक अवसर है — अपने व्यवहार, नीतियों और प्राथमिकताओं को सुधारने का अवसर।