Tuesday - 9 January 2024 - 9:51 AM

गंगा उल्टी बहने लगी

शबाहत हुसैन विजेता

एक और बाबा सीखचों में पहुंच गया। आरोप वही पुराना घिसा-पिटा यौन उत्पीड़न। जेल अपराधियों की रिहाइश होती है, सन्यासियों की नहीं। सन्यासी जेल जाने लगे तो समझो गंगा उल्टी बहने लगी है।

ज़िन्दगी चार आश्रमों में बांटी गई थी, ताकि हर इन्सान ज़िन्दगी के हर पहलू को समझ ले। गृहस्थी व्यवस्थित हो जाये तब सन्यास की तरफ निगाह उठाई जाए ताकि हर रिश्ते का सम्मान हो, हर आश्रम की वैल्यू पता हो, औरत और मर्द के रिश्तों की मर्यादा मालूम हो, बच्चों को पालने का सलीका पता हो, छोटे-बड़े का भेद मालूम हो, स्नेह और आदर के बीच की लकीर में अतिक्रमण न होने पाए।

ज़िन्दगी के यह चार आश्रम दरअसल ज़िन्दगी रूपी मकान के चार खंभे थे। हर खंभे की अपनी मर्यादा थी और हर खंभे की अपनी ज़िम्मेदारी थी, लेकिन तरक्की की रफ्तार ने ज़िन्दगी में ऐसे बदलाव किए कि इमारत दरकने लगी, ज़िन्दगी की नींव कमज़ोर होने लगी।

नौकरियों में कुछ को सेवा विस्तार मिलने लगा तो कुछ के हिस्से से नौकरियां गायब हो गईं। कोई वानप्रस्थ की उम्र में मंत्री बन गया तो किसी ने विद्यार्थी की उम्र में गेरुआ पहन लिया।

खादी और गेरुआ ने भले ही एक नई पहचान दे दी लेकिन हाड़-मांस के शरीर की भावनाएं तो वही रहीं, उनका बदलाव कैसे होता। 22 साल के सन्यासी में भला लोभ और मोह का अभाव कैसे होगा ?

हिन्दू-मुसलमान, सिक्ख-इसाई, पारसी, जैन और बौद्ध तो हमारे खुद के ओढ़े हुए आवरण हैं। ईश्वर ने तो दो ही जातियां बनाईं स्त्री और पुरुष। दोनों जातियां एक दूसरे की पूरक। एक को कोमल दिल मिला तो दूसरे को ज़्यादा श्रम करने की ताक़त। एक के हाथों में शानदार स्वाद दिया तो दूसरे के हाथों में धन कमाने की ताकत।

सन्यास ज़िन्दगी का तीसरा पड़ाव था, परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्ति के बाद का पड़ाव था सन्यास।

युवावस्था में ही सन्यास का चलन आया क्योंकि सन्यास भी एक व्यवसाय में बदलता नज़र आने लगा। सन्यासी लग्ज़री गाड़ियों में चलने लगे, शानदार आश्रमों में रहने लगे। हज़ारों- लाखों भक्तों वाले सन्यासियों पर पैसा बरसने लगा तो भोग विलास के साधन भी बढ़ने लगे। हालात ऐसे हो गए कि साधू साधू नही रह गए, वह वीवीआईपी बन गए।

आश्रमों की चकाचौंध में पांच सितारा संस्कृति शर्माने लगी। वैभव बढ़ा, सुविधाएं बढ़ीं, फिर धीरे से कब अनाचार ने कदम रखा इसे खुद वह सन्यासी भी न समझ पाया जो समाज को त्यागकर आया था।

एक साधू बाबा जापान में रहते हैं। मैं उन्हें 25 साल से जानता हूँ। जापान में वह और भी पहले से हैं। उनके बच्चे वहीं पढ़ रहे हैं। वह क्लीन शेव रहते हैं। सुख-सुविधा की हर सीढ़ी वह पार कर चुके हैं। वह भारत मे हर साल भारतीय संस्कृति का ज्ञान देने के लिए आते हैं।

आचार्य रजनीश ओशो के रूप में ओरेगॉन में रहते थे। साधू के रूप में उन्होंने 50 साल में वह सुविधाएं हासिल कर लीं जिन्हें जुटाने के लिए 500 साल भी कम थे। ओशो खुद भी कहते थे कि मैं 200 साल आगे का जीवन जी रहा हूँ।

ओशो की वाक्पटुता का हर कोई कायल था। गज़ब के ज्ञान से वह भरे थे। जब उन्होंने सेक्स पर ज्ञान बांटा उस वक़्त यह वर्जित सा विषय था। कोई इस विषय पर बोलता नहीं था। तब ओशो ने इस विषय पर पुस्तकें लिखीं। ओशो पर भी यौन उत्पीड़न के आरोप लगे। उनके आश्रम में रहने वाली महिलाओं ने समय-समय पर उन पर काफी गंभीर आरोप लगाए।

बाबा राम रहीम ने तो सन्यासी रहते हुए फ़िल्म तक बनाई। उनके रहस्यमय लोक में अनेक दास्तान आज भी दफ़्न हैं। यौन उत्पीड़न के इल्ज़ाम ने उन्हें जेल पहुंचा दिया।

संत आसाराम बापू की चरणरज लेने के लिए देश की सरकारें आती थीं, लेकिन बाबा को देहसुख भी चाहिए था। देहसुख के लिए बाबा ने अपने आश्रम में बहुत सुरक्षित इंतज़ाम किये लेकिन बुरे काम का बुरा नतीजा। जिसका बापू के नाम से सम्मान था वह जेल काट रहा है।

स्वामी चिन्मयानंद इस सीरीज का सबसे नया नाम है। चिन्मयानंद पढ़े-लिखे संत हैं, इंजीनियर रहे हैं। सन्यासी बनकर उन्होंने करोड़ों कमाए तो भी कालेज ही खोला और शिक्षा का प्रसार उनके एजेंडे में रहा, लेकिन सन्यास की वजह से कुछ इच्छाएं जो मन के भीतर मर गई थीं वह फिर से ज़िन्दा हो गईं। धन से वैभव मिला, संसद मिली, कालेज का मालिकाना हक मिला तो अपने ही कालेज में पढ़ने वाली बेटी समान शिष्याओं से सम्बंध बनाने का सिलसिला शुरू कर दिया।

सन्यासी के लिए पहली शर्त मर्यादा पालन की होती है। जो स्त्री उस पर भरोसा करके उसकी शरण में आती है, जब उसका भरोसा टूटता है तो बहुत कुछ टूट जाता है। चिन्मयानंद के मामले में भी यही हुआ।

ठीक ऐसा ही आसाराम बापू के साथ भी हुआ था। आसाराम बापू से जुड़े बहुत से किस्से ज़ेहन में हैं। थोड़ी सी चर्चा उनके ग्रीन एल्डिको में हुए कार्यक्रम के बाद की घटना की कर देता हूँ। लखनऊ के अमौसी हवाई अड्डे पर खड़े विमान में सवार आसाराम बापू ने वीवीआईपी क्लास मांगा। एयरहोस्टेस ने बताया कि विमान में और कोई सीट खाली नहीं है। एक यात्री को उतारकर यह सीट मुहैया कराई गई है।

बापू इस जवाब से बिफर गए। एयरहोस्टेस से बोले कि लड़की अभी तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा। रनवे पर खड़े मेरे भक्त एक इशारे पर यज जहाज़ फूंक देंगे। बाबा को खूब समझाया गया लेकिन वह नहीं माने और लगातार एयरहोस्टेस को खरी-खोटी सुनाते रहे। बाद में एयरलाइंस के मैनेजर ने विमान में घुसकर जब उन्हें पीटते हुए ले जाने की बात कही तब वह शांत हो गए।

एयरलाइंस मैनेजर ने कहा कि जो महिलाएं आपकी आरती उतारती हैं, उनके लिए अगर आपके मन में सम्मान नहीं है तो आप संत नहीं हैं। आपको सीट पर बांधकर पीटते हुए ले जाना चाहिए।

यही बात सभी आरोपित बाबाओं पर लागू होती है। सन्यास के बाद भी अगर मन में महिलाओं को लेकर गंदी भावनाएं भरी हैं तो कुछ दिन का भोग विलास और सम्मान भले मिल जाये लेकिन सदगति नहीं मिल सकती । यह रास्ता जाता जेल ही है।

संन्यास कपड़ों से नहीं मन के विकार दूर करने से आता है। खुद सम्मानित होने के लिए स्नेह और आदर बांटना पड़ता है। सम्मान बांटने से बढ़ता है।

संन्यासी वेशभूषा के पीछे अगर मन भी निर्मल हो, मर्यादा के दायरे पता हों, हासिल करने से ज़्यादा देने की ललक हो और खुद को ईश्वर मानने की भूल करने के बजाय खुद को ईश्वर का पेशकार मानकर संंन्यासी का धर्म निभाने को खड़ा होने वाला ही संंन्यासी होगा। उम्र के आखरी पड़ाव में भी जो स्त्री देह को ही अपनी मंज़िल मानता हो वह कुछ भी हो सकता है संंन्यासी नहीं हो सकता।

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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