डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक छोटा सा देश, अपनी राजनीतिक अस्थिरता और निरंतर सत्ता संघर्षों के लिए जाना जाता है। स्वतंत्रता के बाद से ही यहां की राजनीति में राजतंत्र से लोकतंत्र की ओर संक्रमण, माओवादी विद्रोह और बहुदलीय व्यवस्था के उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। लेकिन 2025 का वर्ष नेपाल के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस वर्ष Gen Z के युवाओं द्वारा संचालित बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन ने देश की राजनीति को नई दिशा दी। पुराने नेताओं की भूमिका अब लगभग समाप्ति की ओर है, जबकि युवा पीढ़ी सत्ता के केंद्र में उभर रही है। यह बदलाव केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, सामाजिक और मानसिक परिवर्तन का प्रतीक है। इस लेख में हम नेपाल की राजनीति में इस पीढ़ीगत संक्रमण को गहराई से समझेंगे, पुराने नेताओं की गिरती साख, नई पीढ़ी के उदय, वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
पुराने नेताओं की गिरती साख और राजनीतिक विरासत
नेपाल की राजनीति लंबे समय से कुछ चुनिंदा पुराने नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा, सीपीएन-यूएमएल के के.पी. ओली और माओइस्ट सेंटर के पुष्प कमल दहल (प्रचंड) जैसे नेता दशकों से सत्ता के खेल में सक्रिय रहे हैं। ये नेता राजतंत्र के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई से लेकर माओवादी विद्रोह और संविधान निर्माण तक में शामिल रहे। लेकिन बीते वर्षों में उनकी साख बुरी तरह प्रभावित हुई है। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सत्ता का केंद्रीकरण इनकी प्रमुख समस्याएं रहीं। उदाहरण के लिए, ओली और देउबा पर बार-बार आरोप लगे कि उन्होंने परिवारवाद को बढ़ावा दिया और सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया। प्रचंड पर भी माओवादी युग के दौरान मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप हैं।
इन नेताओं की राजनीतिक शैली पुरानी है—सत्ता बदलती रही, लेकिन संरचनात्मक सुधार नहीं हुए। नेपाल में गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दे जस के तस बने रहे। 2020 के दशक में सोशल मीडिया के प्रसार ने इन नेताओं की कमजोरियां उजागर कीं। युवाओं ने देखा कि ये नेता चुनाव जीतते हैं, सरकार बनाते हैं, लेकिन वादे पूरे नहीं करते। परिणामस्वरूप, सार्वजनिक भरोसा टूटा। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2024 तक 70% से अधिक युवा मतदाताओं ने पुराने नेताओं को “अक्षम और भ्रष्ट” माना। यह गिरावट केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संस्थागत थी। पुरानी पार्टियां जैसे नेपाली कांग्रेस और सीपीएन-यूएमएल अब भी इन नेताओं के अधीन हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता घट रही है। भ्रष्टाचार के कई मामलों में जांच हुईं, जैसे कि ओली सरकार के दौरान हुए मेडिकल उपकरण खरीद घोटाला, जिसने उनकी छवि को और धूमिल किया।
इस गिरावट का एक प्रमुख कारण जनता की बढ़ती जागरूकता है। नेपाल में इंटरनेट और सोशल मीडिया का विस्तार हुआ, जिसने युवाओं को वैश्विक राजनीतिक बदलावों से जोड़ा। श्रीलंका के 2022 आंदोलन और बांग्लादेश के छात्र आंदोलनों से प्रेरित होकर नेपाली युवा सड़कों पर उतरे। पुराने नेता अब “डायनासोर” की तरह देखे जा रहे हैं—जो बदलते समय के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे।
नई पीढ़ी का उदय: Gen Z का राजनीतिक जागरण
2025 का सितंबर महीना नेपाल के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। शुरू में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ उठा आंदोलन जल्द ही राजनीतिक बदलाव की मांग में बदल गया। Gen Z—जिनकी उम्र 18 से 25 वर्ष के बीच है—ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। ये युवा टिकटॉक, इंस्टाग्राम और एक्स (पूर्व ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय थे, जहां उन्होंने भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अभियान चलाए। आंदोलन इतना व्यापक हुआ कि हजारों युवा काठमांडू की सड़कों पर उतर आए, और पुराने नेताओं को सत्ता छोड़नी पड़ी।
इस आंदोलन की सफलता का परिणाम था न्यायाधीश सुशिला कार्की की अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति। वे नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, जो एक बड़ा प्रतीकात्मक बदलाव था। युवाओं ने अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से रखा: पारदर्शिता, भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन, नई आर्थिक नीतियां और पर्यावरण संरक्षण। ये मांगें पुरानी राजनीति से अलग थीं—ये केवल सत्ता नहीं, बल्कि सिस्टम बदलने की थीं। Gen Z ने दिखाया कि वे संगठित हो सकते हैं, बिना किसी पारंपरिक पार्टी के। सोशल मीडिया ने उन्हें एकजुट किया, और हैशटैग जैसे #NepalYouthRevolution ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया।
यह उदय केवल विरोध तक सीमित नहीं। युवाओं ने स्थानीय स्तर पर कमेटियां बनाईं, जहां उन्होंने नीतियों पर चर्चा की। उदाहरण के लिए, वे डिजिटल गवर्नेंस की मांग कर रहे हैं, जहां सरकारी निर्णय ऑनलाइन ट्रैक किए जा सकें। यह पीढ़ी वैश्वीकरण से प्रभावित है—वे जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अधिकार और समावेशी विकास जैसे मुद्दों पर फोकस कर रही है। पुराने नेता जहां जाति और क्षेत्रवाद पर निर्भर थे, वहीं युवा योग्यता और विचारधारा पर जोर दे रहे हैं।
वर्तमान परिदृश्य: उपलब्धियां और चुनौतियां
वर्तमान में नेपाल की राजनीति संक्रमण काल में है। संसद भंग होने के बाद अंतरिम सरकार बनी, जिसमें युवाओं की भूमिका निर्णायक है। लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं। पुरानी पार्टियों के संगठनात्मक ढांचे अब भी पुराने नेताओं के नियंत्रण में हैं। कुछ नेता, जैसे देउबा और ओली, ने दबाव के बावजूद इस्तीफा नहीं दिया, जिससे आंतरिक द्वंद्व बढ़ रहा है। युवा नेतृत्व में अनुभव की कमी है—वे ऊर्जावान हैं, लेकिन स्पष्ट संगठन और रणनीति की जरूरत है।
संस्थागत स्तर पर रुकावटें हैं। प्रशासन, सेना और न्यायपालिका अब भी पुरानी पीढ़ी के हाथों में हैं। उदाहरण के लिए, सेना प्रमुख जैसे पदों पर पुराने अधिकारी हैं, जो बदलाव का विरोध कर सकते हैं। आर्थिक चुनौतियां भी हैं—नेपाल की अर्थव्यवस्था पर्यटन और रेमिटेंस पर निर्भर है, और राजनीतिक अस्थिरता से निवेश प्रभावित हो रहा है। युवाओं को इन संस्थाओं में प्रवेश करना होगा, लेकिन यह आसान नहीं।
फिर भी, सकारात्मक पहलू हैं। अंतरिम सरकार ने कुछ सुधार शुरू किए, जैसे भ्रष्टाचार जांच आयोग की स्थापना और डिजिटल वोटिंग सिस्टम की चर्चा। युवाओं ने गठबंधन बनाए, जो विभिन्न जातियों और क्षेत्रों से हैं, जो नेपाल की विविधता को दर्शाता है। लेकिन अगर ये चुनौतियां हल नहीं हुईं, तो आंदोलन कमजोर पड़ सकता है।
भविष्य की संभावनाएं: एक नया नेपाल
भविष्य में नेपाल की राजनीति पूरी तरह बदल सकती है, अगर युवा लोकतांत्रिक प्रक्रिया से आगे बढ़ें। पुराने नेताओं की वापसी मुश्किल है, क्योंकि सार्वजनिक भरोसा टूट चुका है। यह संक्रमण केवल सत्ता का परिवर्तन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक बदलाव है—जहां ईमानदारी और पारदर्शिता प्राथमिकता होंगी।
बाबुराम भट्टराई जैसे पुराने नेता इस बदलाव में अपवाद हैं। पूर्व प्रधानमंत्री भट्टराई ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और कहा, “पुरानी राजनीतिक पीढ़ी अब अपनी उपयोगिता खो चुकी है। नए नेतृत्व को ऊर्जा के साथ दूरदृष्टि और ठोस नीतियों की जरूरत है।” वे युवाओं को सलाह दे रहे हैं, जो एक सकारात्मक हस्तांतरण दर्शाता है। अगर ऐसे नेता युवाओं का मार्गदर्शन करें, तो अनुभव और ऊर्जा का संयोजन सफल होगा।
नेपाल के लिए यह मौका है—नए युग में प्रवेश करने का। अगर सही कदम उठाए गए, तो देश आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय की ओर बढ़ेगा। लेकिन अगर पुरानी आदतें लौटीं, तो यह अवसर गंवा दिया जाएगा। युवा नेतृत्व को संगठित होना होगा, नीतियां बनानी होंगी और वैश्विक सहयोग लेना होगा।
निष्कर्ष: संक्रमण से प्रगति की ओर
नेपाल की राजनीति में यह पीढ़ीगत संक्रमण एक निर्णायक मोड़ है। पुराने नेताओं की भूमिका समाप्त हो रही है, जबकि युवा शक्ति उभर रही है। यह बदलाव जन आंदोलनों से प्रेरित है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करता है। चुनौतियां हैं, लेकिन संभावनाएं अधिक। नेपाल अब एक ऐसे देश की ओर बढ़ रहा है जहां राजनीति युवा, ईमानदार और समावेशी होगी। सवाल यह है—क्या युवा पुराने से सीखकर नया निर्माण कर पाएंगे? समय बताएगा, लेकिन वर्तमान संकेत सकारात्मक हैं। यह नेपाल की प्रगति का नया अध्याय है, जहां पुराना इतिहास बन रहा है और नया भविष्य गढ़ा जा रहा है।