
न्यूज डेस्क
ईवीएम की विश्वसनीयता पर लगातार सवाल उठ रहा है। पिछले दिनों मुंबई हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका की सुनवाई में भी खुलाया हुआ था कि 20 लाख ईवीएम चुनाव आयोग के कब्जे में ही नहीं पहुंचा।
विपक्षी दल भी लगातार ईवीएम पर सवाल उठा रहे है। इस बीच नागरिक समाज के सदस्यों ने एक बयान जारी कर लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सभी वीवीपीएटी पर्चियों की गिनती की मांग की है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ये सिफारिश की है कि वीवीपीएटी की पर्चियों को बैलेट पेपर के रूप में माना जाए और हर एक मतदाता पर्ची की गिनती की जाए।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि वोट एक नागरिक का मूल अधिकार है जो लोगों की इच्छा को वैधता और शक्ति देता है। मांग करने वालों में अरुणा रॉय, जयति घोष, जस्टिस एपी शाह, संजय पारिख और सैयदा हमीद जैसे लोग शामिल है। इन सभी लोगों का एक हस्ताक्षरित बयान जारी कर मांग की है।
इन लोगों ने कहा कि मतदाता को एक एलियन उपकरण (ईवीएम) में विश्वास रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
मांगपत्र में कहा गया है कि जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने साल 2009 में दिए अपने एक फैसले में ईवीएम के जरिए मतदान की व्यवस्था को खारिज कर दिया था और पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता के उद्देश्यों के लिए पेपर बैलट के जरिए मतदान कराने का आदेश दिया था।
इसी फैसले का हवाला देते हुए नागरिक समाज के सदस्यों ने कहा कि मशीनों में हेरफेर और खराबी के बारे में उठाई जाने वाली शंकाओं को खत्म करने के लिए सभी मतपत्रों को गिना जाना चाहिए।
सदस्यों ने यह भी सुझाव दिया कि चुनाव में पारदर्शिता और मतदाताओं के विश्वास को मजबूत करने के लिए भविष्य में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जहां मतदाता के द्वारा वीवीपीएटी पर्ची उत्पन्न और प्राप्त की जाएगी। इसके बाद मतदाता उस पर्ची को ले जाकर बैलट बॉक्स में डाल देगा।
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